Auto immune liver disease spreads genetically after liver inflammation fatty liver to avoid liver transplant focus on symptoms
हाइलाइट्स
ऑटो इम्यून लिवर डिजीज लिवर की खतरनाक और गंभीर बीमारियों में से एक है.
लिवर की बीमारी कुछ ही महीनों में तेजी से बढ़ जाती है और ट्रांस्प्लांट की जरूरत पड़ती है.
Autoimmune Liver Disease: आजकल लिवर (Liver) की बीमारी आम हो गई है. चाहे बुजुर्ग हों, युवा हों या बच्चे ही क्यों न हों, हर उम्र के लोगों में लिवर की परेशानी देखने को मिल रही है. जरूरी नहीं है कि व्यक्ति एल्कोहॉलिक हो, सादा खान-पान वाले लोगों को भी लिवर से जुड़ी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं. लिवर में थोड़ी सी दिक्कत कई बार कुछ ही महीनों में लिवर ट्रांस्प्लांट (Liver Transplant) तक पहुंच जाती है. फैटी लिवर डिजीज, लिवर में इन्फेक्शन, लिवर टिश्यूज में परेशानियों का अगर समय पर इलाज न हो तो ये गंभीर रोग बन जाते हैं. इन्हीं में से एक खतरनाक बीमारी है ऑटोइम्यून लिवर रोग. इसे ऑटो इम्यून लिवर इन्फ्लेमेशन (Autoimmune Liver Inflammation) भी कहा जाता है. आज आपको बताते हैं कि कैसे यह बीमारी सिर्फ मरीज को नहीं बल्कि उसकी कई पीढ़ियों को बर्बाद कर सकती है.
दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के लिवर ट्रांस्प्लांट विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. नीरव गोयल बताते हैं कि ऑटोइम्यून लिवर रोग लगातार बढ़ने वाली समस्या है. जो लिवर इन्फ्लेमेशन का कारण बन सकती है. ऐसा तब होता है जब शरीर का इम्यून सिस्टम लिवर की कोशिकाओं पर हमला करने लगता है और व्यक्ति ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस से पीड़ित हो जाता है. इसमें लिवर की स्वस्थ कोशिकाएं धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं, जिससे लिवर के फंक्शंस में रुकावट आने लगती है और मरीज लिवर सिरोसिस का शिकार हो जाता है. इस बीमारी के इलाज में थोड़ी सी भी देरी इसको खतरनाक स्तर तक पहुंचा देती है.
डॉ. नीरव कहते हैं कि ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस का कारण ठीक से मालूम नहीं है, लेकिन माना जाता है कि आनुवंशिक और पर्यावरण की वजह से यह बीमारी पैदा होती है. देखा गया है कि परिवार में पीढी-दर पीढ़ी यह रोग पनप सकता है. जीन्स के माध्यम से एक परिवार में ऑटोइम्यून लिवर रोग अगली पीढ़ी में आ सकते हैं. जिन परिवारों में इस रोग का इतिहास रहा है, वहां इसकी संभावना अधिक होती है.
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इसके अलावा वे लोग जो ऑटोइम्यून रोगों जैसे र्यूमेटॉइड अर्थराइटिस, सेलियक रोग एवं हाइपर थॉयराइडिज़्म से पीड़ित हैं, उनमें ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस की संभावना ज्यादा होती है. अगर एक व्यक्ति में ऑटोइम्यून रोग जैसे मीजल्स, हर्पीज या एपस्टीन वायरस का इतिहास है तो उनमें ऑटोइम्यून लिवर रोगों की संभावना भी अधिक होती है. साथ ही जिन लोगों में हेपेटाइटिस ए, बी सी इन्फेक्शन हो उन्हें भी ये रोग हो जाता है. पुरुषों की बजाय महिलाओं में ऑटोइम्यून लिवर रोगों की संभावना ज्यादा होती है.
डॉ. नीरव कहते हैं कि ऑटो इम्यून लिवर रोग के लक्षणों को देखकर आप इसका पता लगा सकते हैं और बिना देर किए इलाज ले सकते हैं.
. थकान एवं उर्जा की कमी
. पेट में असहज महसूस होना
. पीलिया या त्वचा का पीला पड़ना
. लिवर का बड़ा होना
. रक्त वाहिकाओं में आसामान्यता
. त्वचा में जलन और रैश
. जोड़ों में असहजता
. मासिक धर्म में गड़बड़ी
लिवर की बीमारी के मरीज को उपचार की शुरूआती अवस्था में स्टेरॉयड और इम्युनोसप्रेसिव दवाएं जैसे प्रेडनीसोन और अजाथिओप्रिन दिए जाते हैं, ताकि इम्यून सिस्टम लिवर को और अधिक नुकसान न पहुंचाए. कुछ महीनों तक मरीज पर निगरानी रखी जाती है और अगर ठीक परिणाम दिखने लगें तो दवा की खुराक कम की जाती है. वहीं अगर दवा से इलाज न हो, तो लिवर ट्रांसप्लान्ट या सर्जरी की जाती है. ऑटोइम्यून लिवर रोग के निदान एवं इलाज के लिए ऐसे लक्षणों पर ध्यान देना ज़रूरी है जो लिवर की सेहत को प्रभावित करते हैं. बेहतर निदान के लिए एंटी-बॉडी ब्लड टेस्ट और लिवर बायोप्सी की जा सकती है. इसी के आधार पर इलाज किया जाता है. इसके अलावा खाने-पीने की आदतों में बदलाव लाना और सेहतमंद जीवनशैली अपनाना जरूरी है ताकि लिवर जल्दी ठीक हो और बीमारी के आगे बढ़ने की संभावना को रोका जा सके.
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Tags: Health News, Lifestyle, Liver transplant, Trending news
FIRST PUBLISHED : February 26, 2023, 14:40 IST