Barmer : 700 साल पहले ऐसे बसा यह गांव, आज कोई नहीं विरासत को सहेजने वाला
मनमोहन सेजू/ बाड़मेर.बाड़मेर-जोधपुर सीमा पर बसे गंगावास गांव के जर्रे-जर्रे में इतिहास के कीर्ति स्तम्भ बिखरे पड़े है.अपने दर्दनाक इतिहास की वजह से अपनी जमी कुलधरा से हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहने वाले कुछ पालीवाल परिवार 700 साल पहले गंगा नामक मुखिया की अगुवाई में इस जगह आकर बस गए और गांव का नाम गंगावास पड़ गया, लेकिन कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है और आज इस गांव में ऐतिहासिक धरोहरों के कुलधरा सरीखे हालात है.
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गांव के सबसे बड़े तालाब के आस-पास बेशकीमती पत्थरो पर उकेरे गये शिलालेख और कीर्ति स्तम्भ उदासीनता और बेकद्री की धूल में अटे पड़े है. गांव के बुजुर्ग बताते है कि इस गांव का नाम आज से 700 वर्ष पूर्व कुलधरा जैसलमेर को त्याग कर आए गंगाराम पालीवाल के नाम पर पड़ा. उन पालीवाल परिवारों का वास्तु शास्त्र और गृह निर्माण बेहद विकसित था ऐसे में इस गांव में भी कई जगहों पर तत्कालीन शिल्प की छाप साफ़ तौर पर नजर आता है लेकिन इन सभी पर वक्त की मार भारी पड़ी है.
इसी गांव के लोग बताते है कि मारवाड़ के सबसे बड़े तालाब का अपना अनूठा धार्मिक समन्वय है. इस तालाब का निर्माण भी पालीवाल परिवारों ने करवाया था. ऐसे में इस तालाब के किनारे जलखम्भ और गजखम्भ आज भी मौजूद है. लेकिन सरकार और पुरातत्व विभाग की तरफ से कभी इस तरफ ध्यान नही दिया गया.
गंगावास गांव के गंगावास तालाब, बाली नाडी ,ढ़ंड नाडी, निम्बाला नाडा, लोपली नाडी, बबलाई नाडी, धौला नाडा, सोनाड़िया नाडा, कोरणा का बड़ा तालाब, आलालाई नाडी, खबडाला नाडी के आस पास के कई इलाके ऐतिहासिक धरोहरों से भरे हुए है. ऐसे में पर्यटन दृष्टि के साथ-साथ इतिहास की जानकारों के लिए भी यह जगह बेहद ख़ास है, बावजूद इसके अभी इस तरफ किसी भी तरह का कोई भी संरक्षण का काम गंगावास की तरफ नहीं हुआ है.
दरअसल जैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित कुलधरा नाम का एक छोटा सा गांव है। कहते हैकि सन 1291 के आसपास रईस और मेहनती पालीवाल ब्राह्मणों ने 600 घरों वाले इस गांव को बसाया था. यह भी माना जाता है कि कुलधरा के आसपास 84 गांव थे और इन सभी में पालीवाल ब्राह्मण ही रहा करते थे. दीवान सालम सिंह की पालीवालों की एक युवती पर बुरी नजर के बाद सभी ने एक साथ कुलधरा को छोड़ दिया और इसी कुलधरा के उजड़ने के बाद गंगावास गांव में कुछ पालीवाल परिवार आकर ठहरे थे जिससे यह गांव बस गया.
गंगावास गांव के आस पास बिखरे पड़े ऐतिहासिक कीर्ति स्तम्भ और शिल्प मारवाड़ में अभी तक मिले सभी ऐतिहासिक शिल्प से अलग तरह के है. यहांवक्त की मार झेल रहे अधिकतर स्तम्भ एक पत्थर पर उकेरे हुए है जिनमे वीणा लिए देवी की मूरत, एक साथ तीन और छः के जोड़े में देवियो की मूर्तियां , वीरो के पराक्रम को दर्शाती अश्व सवार मूर्तिया है. इन मूर्तियों की स्थापना अकेले से कही ज्यादा दो, तीन, छः और सात सात के जोड़े में है जोकि मारवाड़ में और कहींनजर नहीं आती है.
बरसो पहले यहांआकर बसे कुलधरा के पालीवालों को अच्छे से पता था की इस इलाके में बरसात का जल एकत्रित करना ही सर्वाधिक उपयोगी साबित होगा. ऐसे में यहांतालाबो के निर्माण के साथ साथ उन्होंने संकेतक जलथम्भ और गजथम्भ भी स्थापित किए थे. यह स्तम्भ पानी की स्थिति के साथ साथ अधिक बरसात होने पर गांव वालों को बाढ़ के खतरे से अवगत करवाती थी. यह सभी आधार सिंधु घाटी सभ्यता में मिलते है. ऐसे में इस इलाके में सिंधु घाटी सभ्यता के शिल्प का प्रभाव था यह भी साफ़ नज़र आता है.
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FIRST PUBLISHED : June 04, 2023, 12:58 IST