Bharatpur News: भपंग वादक गफरुदीन की विदेशों में भी धाक, कला को जीवित रखने अगली पीढ़ी को सिखा रहे है गुर
रिपोर्ट- ललितेश कुशवाहा
भरतपुर. देश के कोने-कोने में एक से बढ़कर एक कलाकार हैं, जो विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन अब उनकी कला के महत्व को समझने वाले कम ही लोग बचे हैं. एक ऐसे ही कलाकार हैं भरतपुर जिले के कैथवाड़ा कस्बा निवासी गफरुदीन मेवाती जोगी. जिन्हें भपंग वादक के साथ-साथ लोक गायन विधा पंडून के कड़े में महारथ हासिल है. वह अपनी कला का प्रदर्शन देश के विभिन्न प्रांतों सहित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कर चुके हैं.
उनका कहना है कि जिस तरह से पहले इस कला को लेकर लोगों से सम्मान और प्यार मिलता था, अब वह दूर होता जा रहे हैं. फिर भी वह इस कला को जीवित रखने के लिए अपने बेटे के बाद अपने पोतों को गुर सिखा रहे हैं. गफरुदीन देश के पीएम नरेंद्र मोदी और राजस्थान सरकार की ओर से सम्मानित हो चुके हैं.
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1993 में किया विदेश में पहला शो
अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार गफरुदीन ने बताया कि यह कला उन्होंने अपने पिता बुद्ध सिंहृ जोगी से सीखी थी. वह अपने पिता के साथ गांव-गांव जाकर लोगों का मनोरंजन करते थे. साल 1990 में भपंग और पंडून के कड़े की कला की प्रस्तुति को लेकर बृज महोत्सव के तहत पहला शो किया था. उसके बाद उन्हें इस कला में एक अलग पहचान मिली और देश-विदेश के शो के लिए आमंत्रण आने लगे. उनका विदेश में पहला शो 1993 में भारत महोत्सव के तहत ऑस्ट्रेलिया में हुआ था. उन्होंने बताया कि भारत का प्रत्येक राज्य और जिला ऐसा कोई अछूता नहीं रहा है, जहां वह अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर चुके हो. अब तक वह लंदन, पेरिस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में प्रस्तुति दे चुके है.
कला को जीवित रखने के लिए पोतो को सिखा रहे है गुर
उनका कहना है कि जिस तरह से पहले इस कला को सम्मान और प्यार मिलता था, वह कम हो गया है. इसकी मुख्य वजह युवा पीढ़ी का सोशल मीडिया पर समय बिताना है. एक समय ऐसा था जब लोग इस कला को सुनने के लिए बेसब्री से इंतजार करते थे, लेकिन अब यह कला सरकारी कार्यक्रमों तक ही सीमित रह गई है. इस कला को बचाना बेहद जरूरी है. युवा पीढ़ी को अपनी भारतीय कला के महत्व को समझना चाहिए, जिससे इसे विलुप्त होने से बचाया जा सके. उनका कहना है कि इस कला से परिवार तो नहीं चलता, लेकिन पीढ़ियों की इस विरासत को जीवित रखने के लिए बेटे शाहरुख खान को सिखाने के बाद अब अपने दोनों पोतों दानिश जोगी और बंदील जोगी को निपुण कर रहे हैं.
ऐसे बनता है भपंग
सबसे पहले लौकी के तुम्बे के पैंदे पर पतली खाल मढ़ी जाती है. खाल के बीच में प्लास्टिक का तार पिरोया जाता है. इस तार पर लकड़ी के गुटखे से तान देकर विभिन्न प्रकार की आवाज निकाली जाती है, जो लोगों को मंत्रमुंग्ध कर देती है.
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FIRST PUBLISHED : April 20, 2023, 12:50 IST