Rajasthan

Bisalpur – बीसलपुर बांध—9 महीने का पानी तो भाप बन कर उड जाता है हवा में,,,,इंजिनियर नहीं तलाश पाए कारगर तकनीक

बांध में पानी का हो हल्ला खूब,लेकिन इस तरह पानी की बर्बादी को रोकने की कोई पहल नहीं
जल संसाधन विभाग के इंजिनियर बोले—पानी को भाप बन कर उडने से रोकने का कोई उपाय फिलहाल नहीं

जयपुर।
बीसलपुर बांध जयपुर,अजमेर और टोंक जिले की लगभग 1 करोड की आबादी की जीवन रेखा है। क्योंकि इन तीनों की इतनी बडी आबादी की प्यास यही बांध बुझा रहा है। लेकिन इस बार मानसून की सुस्ती के कारण काम चलाने लायक भी पानी नहीं आया है। जिससे अब बांध से पानी की कटौती भी शुरू हो गई है। जिससे अगले वर्ष अगस्त तक इन तीनों जिलों की पेयजल जरूरतों को पूरा किया जा सके। लेकिन चौकाने वाली बात यह भी है कि बांध से पूरे 12 महीने में 9 टीएमसी पानी तो भाप बन कर उड जाता है। जितना पानी भाप बन कर उड जाता है उससे जयपुर अजमेर और टोंक के लिए 9 महीने पेयजल सप्लाई हो सकती है। लेकिन बांध में पानी कम होने का हो हल्ला मचा रहे जल संसाधन और जलदाय विभाग के अफसर पानी के भाप बन कर उडने से रोकने को लेकर पूरी तरह से बेबस ही नजर आ रहे हैं। इंजिनियर्स यही कह रहे हैं कि भाप बन कर उड रहे पानी को रोकने की तकनीक फिलहाल उनके पास नहीं है।
मान कर ही बैठे हैं—9 टीएमसी पानी तो उडेगा ही
बीसलपुर बांध की भराव क्षमता 33 टीएमसी के लगभग है। जिसमें से जयपुर,अजमेर और टोंक की पेयजल जरूरतों के लिए 16 टीएमसी पानी आरक्षित है। 8 टीएमसी पानी टोंक जिले में सिचाई के काम आता है। वहीं लगभग 9 टीएमस पानी प्रत्येक वर्ष भाप बन कर उड जाता है। जल संसाधन विभाग व जलदाय विभाग के इंजिनियर कह रहे हैं कि पानी के भाप बन कर उडने से रोका नहीं जा सकता। इस नुकसान को तो उठाना ही होगा।
तकनीक अभी परीक्षणों में ही
पत्रिका ने बांध से इस तरह तीनों शहरों के 9 माह काम आने वाले पानी के इस तरह उडने पर जल संसाधन विभाग व जलदाय विभाग के इंजिनियरों से बात की। बातों में सामने आया कि बेलून या फोमिंग तकनीक से पानी को भाप बन कर उडने से रोकने का प्रयोग परीक्षण में है। किसी छोटे तालाब में बेलून डाल कर पानी के भाप बनने से कुछ हद तक रोका जा सकता है। लेकिन बडे बांधों में यह तकनीक कारगर नहीं है।
वर्जन
बांध से बडी मात्रा में प्रत्येक पानी भाप बन कर उड जाता है। जितना पानी भाप बन रहा है उससे पेयजल जरूरतें काफी हद तक पूर हो सकती हैं। लेकिन यह नुकसान हमे उठाना ही होगा। कोई कारगर तकनीक अभी तक नहीं आई है।
रवि सोलंकी
मुख्य अभियंता
जल संसाधन विभाग







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