Navratri Special: जयपुर का जमवाय माता मंदिर कहलाता ‘शक्तिपीठ’, जहां गिरी थी सती माता की तर्जनी उंगली | Jamvay Mata Temple of Jaipur is called ‘Shaktipeeth’,know the history

मन्नत का डोरा बांधते हैं श्रद्धालु
माता का मंदिर वट वृक्ष की छत्रछाया में है, जिस पर श्रद्धालु मन्नत का डोरा भी बांधते हैं। मंदिर के गर्भगृह के मध्य में जमवाय माता की प्रतिमा है। दाहिनी ओर धेनु और बछड़े जबकि बायीं ओर मां बुढवाय की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में शिवालय, चौसठ योगिनी, भैरव का स्थान, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और भोमिया जी महाराज भी विराजमान हैं। राज्यारोहण और बच्चों के मुंडन संस्कारों के लिए कछवाहा वंश के लोग यहां आते हैं। राजा ने अपने अराध्य देव रामचंद्र और कुलदेवी जमवाय के नाम पर क्षेत्र का नाम जमवारामगढ़ रखा था। प्राचीन मान्यता के अनुसार राजकुमारों को निवास के बाहर तब तक नहीं निकाला जाता था, तब तक कि जमवाय माता के धोक नहीं लगवा ली जाती थी। वहीं कुछ लोगों की मान्यता है कि ये एक शक्तिपीठ भी है, जहां सती माता की तर्जनी उंगली गिरी थी।
रणक्षेत्र में माता ने राजा को दिए थे दर्शन
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि दुल्हरायजी ने 11वीं सदी के अंत में मीणों से युद्ध किया। शिकस्त खाकर वे अपनी फौज के साथ में बेहोशी की अवस्था में रणक्षेत्र में गिर गए। राजा समेत फौज को रणक्षेत्र में पड़ा देखकर विपक्षी सेना जीत का जश्न मनाने लगी। रात्रि के समय देवी बुढवाय रणक्षेत्र में आई और दुल्हराय को बेहोशी की अवस्था में पड़ा देख उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा- उठ, खड़ा हो। तब दुल्हराय खड़े होकर देवी की स्तुति करने लगे। इसके बाद माता बुढ़वाय बोली कि आज से तुम मुझे जमवाय के नाम से पूजना और इसी घाटी में मेरा मंदिर बनवाना। तेरी युद्ध में विजय होगी। तब दुल्हराय ने कहा कि माता, मेरी तो पूरी फौज बेहोश है। माता के आशीर्वाद से पूरी सेना खड़ी हो गई। दुल्हराय रात्रि में दौसा पहुंचे और वहां से अगले दिन आक्रमण कर दुश्मन की सेना को परास्त किया। रणक्षेत्र के उस स्थान पर दुल्हराय ने जमवाय माता का मंदिर बनवाया। इस घटना का उल्लेख कई इतिहासकारों ने भी किया है।