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Chaitra Navratri 2021: Worship Maa Kushmanda on the fourth day | चैत्र नवरात्रि 2021: चौथे दिन करें मां कूष्माण्डा की पूजा, रोगों से मिलेगी मुक्ति

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र नवरात्रि का आज (15 अप्रैल, गुरुवार) चौथा दिन है। यह दिन मां कूष्माण्डा देवी को समर्पित है, जो कि मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है। कूष्मांडा माता ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। माता का निवास स्थान सूर्यमंडल के भीतर लोक में मना जाता है। सूर्यमंडल में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं देवी में है। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में कूष्मांडा देवी की ही छाया है। 

इस दिन साधक को पवित्र और स्थिर मन से माता कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर साधना पूजा-उपासना करना चाहिए। पुराणों के अनुसार, शून्यकाल में जब सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था, तब कूष्मांडा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। आइए जानते हैं मां के स्वरूप और पूजा विधि के बारे में…

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स्वरूप
कूष्मांडा माता की आठ भुजाएं हैं। माता अष्टभुजाधारी नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इनके सात हाथों में तो कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सिद्धि और निधि को देने वाली जपमाला है। कूष्मांडा देवी का वाहन सिंह है। इनके शरीर की कांति और प्रभा-प्रभा भी सूर्य के समान ही प्रकाशमान हैं। 

रोगों को दूर करने वाली 
देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग,शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। माँ कूष्माण्डा अत्यंत अल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली हैं। यदि प्रयासों के बावजूद भी मनोनुकूल परिणाम नहीं मिलता हो तो कूष्माण्डा स्वरुप की पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होने लगते हैं।

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पूजा विधि 
इस दिन हरे वस्त्र धारण करके मां कूष्मांडा का पूजन करें। पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें। इसके बाद उनके मुख्य मंत्र “ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः” का 108 बार जाप करें। यदि आप चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। आज के दिन माता को मालपुए बनाकर विशेष भोग लगाएं। इसके बाद उसको किसी ब्राह्मण या निर्धन को दान कर दें।  

मंत्र 
मंत्र: या देवि सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: 

या

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

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