Children will take rounds of Holika in the lap of maternal uncle and uncle, will be dressed like bride and groom…. – News18 हिंदी
सोनाली भाटी/जालौर. राजस्थान में आज भी गांवों में पहने जाने वाली पारंपरिक वेशभूषा विशेष त्योहारों और मान्यताओं पर पहनी जाती है. आज लोकल 18 आपको बचाने जा रहा है होली के इस त्योहार पर मनाए जाने वाले ढूंढोउत्सव के बारे में. जी हां, राजस्थान के जालौर जिले में होली के त्योहार को लेकर शहरवासीयो में बहुत ही उत्साह देखने को मिल रहा है, खासकर उन घरों में जहां बच्चों की ढुंढ है उन घरों में पूरा शादी जैसा माहौल होता है. ढूंढोउत्सव में बच्चों को उनके मामा या काका हाथ में लेकर होली दहन पर होलिका के फेरे करवाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे बुरी नजर से बचे रहते हैं और स्वस्थ रहते हैं.
दरअसल, जन्म के बाद पहली होली पर बच्चों की ढुंढ करवाने की परंपरा है. होली दहन के बाद बच्चों को होली के फेर लगवाए जाते हैं इसके लिए बच्चों को शेरवानी, साफा और मोजड़ी पहनाकर दूल्हे की तरह तैयार किया जाता है. शहर के बाजारों में पारंपरिक शेरवानी ₹200 से लेकर 2000 तक मिलती है. पैर में पहनने वाली जूतियां, साफा और मालाएं भी मिल रही है.
कई साल से चली आ रही ये परंपरा
दुकानदार योगेश ने बताया कि होली के त्यौहार में नन्हे दूल्हा-दुल्हन के लिए तरह-तरह की डिजाइन की शेरवानी, साफे, मोजडिया और मालाएं लोगों को बहुत पसंद आ रही हैं. वहीं नन्ही दुल्हनों के लिए तरह-तरह की फ्रॉक्स, लहंगा चुन्नी, सैंडल भी उपलब्ध है. यह पारंपरिक ड्रेस है जो बच्चों को होलिका दहन के दौरान पहनाई जाती है. दुकान पर बच्चों के पारंपरिक वेशभूषा के साथ बहुत से खिलौने भी लोगों को बहुत पसंद आ रहे हैं, जिन्हें खरीदने के लिए जालौर के आसपास के गांवों के लोग यहां आ रहे हैं. धुलंडी के दिन समाज के लोग जिस घर में ढूंढ है वह इकट्ठा होकर फाग गीत गाते हुए ढूंढ करते हैं और परिवार के सदस्यों को बधाई देते हैं, बच्चों को गोदी में लेकर मामा या काका पाट पर बैठते हैं, फिर समाज के लोग लकड़ी बजाकर ढुंढ का गीत गाते हैं. बदले में परिवार का मुखिया यथासंभव उपहार देता है, यह परंपरा सालों से चली आ रही है.
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FIRST PUBLISHED : March 24, 2024, 11:36 IST