Corona warrior story Despite spoiled lungs Premchand of Bundi kept beating death on ventilator from 8 months rjsr

कोटा. कोरोना (Corona) की जंग जीतने के बाद भी करीब साढ़े 8 माह से वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे बूंदी निवासी प्रेमचंद (Premchand) ने आखिरकार कोटा के अस्पताल में दम तोड़ दिया. प्रेमचंद पिछले मई माह में कोरोना पॉजिटिव हुआ था. उसके बाद उसके दोनों फेफड़े खराब हो गए थे. डॉक्टर्स के मुताबिक प्रेमचंद को चंद मिनट के लिए भी वेंटिलेटर से अलग करना मुश्किल था. इलाज के दौरान उसे लाखों लीटर से ज्यादा ऑक्सीजन दी गई लेकिन वह बच नहीं सका. कोटा मेडिकल कॉलेज के इतिहास का यह संभवतया पहला ही मामला होगा जब कोई मरीज वेंटिलेटर के सहारे इतने वक्त जिंदगी और मौत बीच जूझता रहा.
बूंदी के हिंडौली के अकलोड गांव निवासी प्रेमचंद साढ़े 8 महीने पहले कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमित हुआ था. उससे थोड़े समय पहले ही बीमार हो चुका था. उसके बाद मई में उसे कोरोना हो गया. पहले तो उसका हिंडौली में इलाज चला फिर उसे बूंदी लाया गया. लेकिन जब बूंदी में भी वह ठीक नहीं हो पाया तो कोटा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था.
दोनों फेफड़े हो चुके थे खराब
हालांकि प्रेमचंद कोरोना से उबर गया था लेकिन उसके दोनों फेफड़ों ने जवाब दे दिया था. प्रेमचंद के दोनों फेफड़े खराब होने के कारण लंग्स ट्रांसप्लांट ही उसकी जिंदगी बचाने का एकमात्र जरिया था. लेकिन लंबी बीमारी से टूट चुके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे उसके लंग्स ट्रांसप्लांट करवा पाते. इसके चलते शुक्रवार को प्रेमचंद ने वेंटिलेटर से ही दुनिया को अलविदा कह दिया.
6 माह की दूधमुंही बच्ची को भी अच्छी तरह से देख नहीं सका
करीब साढ़े आठ माह से जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा प्रेमचंद अपनी 6 माह की दूधमुंही बच्ची को भी अच्छी तरह से निहार नहीं सका और मात्र 26 साल की उम्र में ही उसने दम तोड़ दिया. प्रेमचंद को 2 मिनट भी वेंटिलेटर से दूर नहीं रखा जा सकता था. ऐसे में पिछले आठ माह प्रेमचंद ने इसी तरह वेंटिलेटर पर निकाल दिए. इस दौरान उसे लाखों लीटर से ज्यादा ऑक्सीजन दी गई लेकिन वह बच नहीं सका.
अस्पताल में पत्नी कर कर रही थी रात दिन सेवा
प्रेमचंद की बीमारी के दौरान उसकी पत्नी ने पलभर के लिये भी उसका साथ नहीं छोड़ा. पत्नी साये की तरह उसके साथ रही. पति की सेवा में ऐसे लगी रही जैसे वह दिन भी आएगा जब वह अपनी 6 महीने की दूधमुंही बेटी को गोद में खिलाएगा. लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. प्रेमचंद आठ माह की लंबी चली लड़ाई को वेंटिलेटर पर ही खत्म कर हमेशा हमेशा के लिए चल बसा.
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