Rajasthan

Cross-integration Is Essential To Enable The Differently-abled – दिव्यांगों को सक्षम बनाने के लिए जरूरी है क्रॉस-इंटीग्रेशन और समन्वित प्रणाली

देश में दिव्यांगों ( disabled ) और सामान्य आबादी, दोनों के लिए समान अवसर की व्यवस्था है, लेकिन दिक्कत है दिव्यांगों की अक्षमता, विशेष रूप से दिव्यांग महिलाएं ( Disabled Women ) समान अवसरों और स्वास्थ्य तक पहुंच में सक्षम नहीं हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में इसका असर ज्यादा है जहां शहरी हिस्सों की स्थिति की तुलना में न्यूनतम स्वास्थ्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं होती हैं। दुनिया की 15 फीसदी आबादी दिव्यांगता से ग्रस्त है।

जयपुर। देश में दिव्यांगों और सामान्य आबादी, दोनों के लिए समान अवसर की व्यवस्था है, लेकिन दिक्कत है दिव्यांगों की अक्षमता, विशेष रूप से दिव्यांग महिलाएं समान अवसरों और स्वास्थ्य तक पहुंच में सक्षम नहीं हैं। देश के ग्रामीण इलाकों में इसका असर ज्यादा है जहां शहरी हिस्सों की स्थिति की तुलना में न्यूनतम स्वास्थ्य आवश्यकताएं भी पूरी नहीं होती हैं। दुनिया की 15 फीसदी आबादी दिव्यांगता से ग्रस्त है। 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के 19 करोड़ (3.8 फीसदी) लोग स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी जटिलताओं से जूझ रहे हैं, जिन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की बार-बार और अधिक जरूरत पड़ती है। इससे भी जटिल है बढ़ती उम्र वाली आबादी में नई अक्षमताओं का बढऩा और पुरानी स्वास्थ्य स्थितियों का बने रहना। कोरोना काल में उनकी जटिलताएं और बढ़ गई थी, क्योंकि आइसोलेशन-प्रोटोकॉल से दिव्यांगों को परेशानी हुई और उनके बीच मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां भी पसर गई।
नारायण सेवा संस्थान (एनएसएस) के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल का कहना है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, महिला दिव्यांगों में 55 फीसदी निरक्षर हैं। यह आंकड़ा कोविड-19 के बीच बढ़ गया है, क्योंकि कई लड़कियों के स्कूल छूट गए। अधिकांश परिवार बेरोजगारी के कारण शिक्षा को बनाए नहीं रख सके। दूसरी ओर केंद्र सरकार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओÓ जैसे अभियानों के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही है, जिसने बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित किया है। सरकार को दिव्यांग महिलाओं या एक निश्चित प्रतिशत दिव्यांगता वाली लड़कियों को प्रोत्साहित करने और सशक्त बनाने के दृष्टिकोण से भी विभिन्न पहलुओं को देखना चाहिए।
दिव्यांग बन सकते हैं सक्षम
व्यावसायिक कार्यक्रमों और समावेशी एआई विषयों से लड़कियों को कौशल प्रदान करना भविष्य का कदम है। जैविक उत्पादों के माध्यम से कालीन बनाना और डिजाइन करना या यहां तक कि आभूषण डिजाइन करना भी विकलांग लड़कियों के लिए एक बढिय़ा विकल्प है। बड़े निगम और संगठन या यहां तक कि गैर सरकारी संगठन भी ऐसी परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए आगे आ सकते हैं, जो विकलांग महिलाओं की मदद करेंगे और उन्हें आशा की भावना देंगे।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में शिक्षा के अवसर
नर्सिंग भूमिकाएं सबसे अच्छी भूमिकाएं हैं जो दिव्यांग लोगों को दी जा सकती है। कोरोना महामारी के संकट के बीच अस्पतालों में सपोर्टिंग स्टाफ की सबसे ज्यादा जरूरत थी। ऐसे में पैर से विकलांग महिलाओं को नर्सिंग का प्रशिक्षण दिया जा सकता है और वे अस्पतालों में स्वास्थ्य प्रबंधन, प्रशासन और नर्सिंग स्टाफ में अवसरों की तलाश कर सकती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाता
कोविड-19 अवधि के दौरान अधिकांश दिव्यांगों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कुछ इस तनाव से हार गए, जबकि कुछ ने इस तनाव को समझा और बहुत अच्छी तरह से इसका मुकाबला किया। जो लोग हमेशा चिकित्सा में कुछ करना चाहते थे और करने में असमर्थ थे, उनके लिए यह आपदा एक अवसर है। दूसरे शब्दों में अब वे मनोविज्ञान और तनाव परामर्श में हाथ आजमा सकते हैं। इसका मतलब यह भी होगा कि अधिक से अधिक संस्थानों में तनाव प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में कार्यक्रम होने चाहिए।
दिव्यांग महिलाओं के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में शिक्षा के अवसर
भारत में विकलांग महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रमुख चिंता का विषय है दुर्गमता और गैर-मित्रतापूर्ण पुस्तकें। कई दिव्यांग महिलाएं इसलिए चिकित्सा की पढ़ाई नहीं कर पाई, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उचित सुविधाएं नहीं थी। साथ ही, जमीनी स्तर पर उनके लिए सामाजिक सुरक्षा भी उनके लिए शून्य जैसी है, यही कारण है कि योजना के स्तर पर उनका सामाजिक समावेशन गायब है, जिसका आज के दौर में होना बहुत जरूरी है।
कोविड-19 से मिली सीख
लोगों का समस्या की वास्तविकता से सामना तब हुआ, जब उन्होंने पाया कि महामारी में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा लोगों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है। कमजोर चिकित्सा सेवाएं भारत के ग्रामीण हिस्से में कठिन बाधा उत्पन्न कर रही थी। कोरोना के इसी आतंक में दिव्यांग महिलाएं अपने बच्चे को दुनिया में लाते हुए डर रही थीं। केंद्र सरकार ने गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कार्ययोजनाओं की घोषणा की है, लेकिन फिर भी बड़े पैमाने पर समस्या का समाधान नहीं हुआ।
सभी दिव्यांगों, विशेषकर महिलाओं के लिए सामाजिक समुदायों के माध्यम से एक संघ बनाना चाहिए और उन्हें तलाशने वालों के लिए अवसर पैदा करना चाहिए। इसे संस्थानों और बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा वित्त पोषित किया जा सकता है। साथ ही, नारायण सेवा संस्थान राजस्थान के उदयपुर में अनाथ और गरीब बच्चों के लिए स्कूल चला रहा है, उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता।

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