Rajasthan

राजस्थान में भी जलियांवाला बाग की तरह हुआ था नरसंहार, 1200 किसानों की गई थी जान

उदयपुर. स्वतंत्रा दिवस (Independence Day) के मौके पर आज हम आपको एक ऐसे आन्दोलन के बारे में बतायेंगे जिसने राजस्थान के आदिवासी अंचल में जाग‌ृति ला दी. इस जागृति के बाद आदिवासी अंचल में राजनैतिक जागरण हुआ और फिर आदिवासियों ने देश की आजादी में भी महत्वपुर्ण योगदान दिया. दरअसल,  उदयपुर के झाडोल क्षेत्र (Jhadol Area) को भोभट क्षेत्र कहा जाता हैं.  भोभट क्षेत्र में भी जलियांवाला बाग की तरह नरसंहार हुआ था. इस नरसंहार में करीब 1200 किसानों की मौत हुई थी. मोतीलाल तेजावत (Motilal Tejawat) के नेतृत्व में भोभट आंदोलन हुआ था. भोभट आंदोलन को भील आंदोलन और एकी आन्दोलन के नाम से भी याद किया जाता है. कहा जाता है कि मोतीलाल तेजावत वनवासियों के मसीहा थे.

गुजरात की विजयनगर रिसायत और राजस्थान के भोभट क्षेत्र में साल 1921 में शुरू हुए भोभट आंदोलन को एक शताब्दी पुरी हो चुकी है. सौ साल पुराने इस आन्दोलन के मुख्य सुत्रधार मोतीलाल तेजावत रहे, जिन्होंने जनजाति अंचल में राजनैतिक जागरण का कार्य किया. आदिवासी अंचल में सामाजिक कुरितियां खत्म करने के लिये कई लोगों ने पहल की. लेकिन राजनैतिक जागरण लाने के लिये पहले सुत्रधार मोतीलाल तेजावत रहे. मोतीलाल तेजावत ने किसानों के लिये आन्दोलन का नेतृत्व किया. फिर भले ही उन्हें इस आन्दोलन में महात्मा गांधी का साथ नहीं मिला. मोतीलाल तेजावत ने भोभट आंदोलन का आगाज चित्तोडगढ जिले के मातृकुंडियां से किया और उसके बाद 21 सुत्रीय मांग पत्र तात्कालिन महाराणा को सौंपा गया. महाराणा ने भी इस मांगपत्र से 18 मांगे मान ली लेकिन मुख्य तीन मांगे जिसमें बेगारी, वन भूमि पर आदिवासी का अधिकारी और सूअर की उपज कर उनकी संख्या में वृद्धि की मांगे नहीं मानी गई. इन मांगों को लेकर ही भोभट क्षेत्र में भी किसान आन्दोलन का आगाज हुआ.

कुछ सहयोगी उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गए
इतिहासकार चन्द्रशेखर शर्मा बताते हैं कि मोतीलाल तेजावत ने जनजाति अंचल के लोगों में क्रांति का संचार किया. कोलयारी में जन्में तेजावत झोडोल क्षेत्र के कामदार थे. मोतीलाल तेजावत ने जनजाति अंचल में राजनीतिक जागरण के साथ- साथ आदिवासियों के अधिकार के लिये भी उन्हें जागृत किया. मोतीलाल तेजावत ने इन्हीं मुद्दो को लेकर विजयनगर रिसासत के नीमडा गंव में एक सभा का आयोजन किया. यह सभा सन 1921 में आयोजित हुई थी. अंग्रेजों को इस सभा की जानकारी हुई. उन्हें बताया गया कि यह सभा अंग्रेजों के खिलाफ षडयंत्र रचने के लिये बुलाई गई थी. उस दौरान अंग्रेजी हुकुमत में मेजर शटन ने सभा पर गोलीबारी के आदेश दिये और किसानों ने कुएं में कुदकर जान बचाने की कोशिश की. लेकिन कहा जाता हैं कि किसानों की शहादत से पुरा कुआं भर गया. अंग्रेजों की इस हमले में मोतीलाल तेजावत के विवाह में गोली लगी लेकिन कुछ सहयोगी उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गए.

राजनीतिक जागृत करने का प्रयास किया
कहा जाता है कि इस आंदोलन को महात्मा गांधी का साथ नहीं मिला. लेकिन गांधी जी के द्वारा बिजोलिया के विजय सिंह के मार्फत मोतीलाल तेजावत का आत्मसमर्पण कराया गया. हालांकि गांधी के प्रयासों से पुन: मोतीलाल तेजावत जेल से रिहा भी हुए थे. मोतीलाल तेजावत ने अपने आंदोलन को गुजरात के विजयनगर क्षेत्र के अलावा राजस्थान के झाडोल और सिरोही क्षेत्र में भी चलाया और उससे किसानों को राजनीतिक जागृत करने का प्रयास किया.

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