इस गांव में गधों का भी आता है दिन! 60-70 सालों से दुल्हन की तरह सजाकर की जाती है पूजा, जानें क्यों

भीलवाड़ा : सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार दिवाली के मौके पर वैसे तो कई परंपराएं निभाई जाती है लेकिन भीलवाड़ा में एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है जो उसे अपने आप में बहुत खास बनाती है जहां एक ओर दिवाली के एक दिन बाद गाय – बैलों की पूजा की जाती है तो वहीं भीलवाड़ा का मांडल ऐसा गांव है जहां खास तौर पर गधों की पूजा की जाती हैं. सबसे पहले तो गधों की साज सजावट की जाती हैं उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता हैं और पूजा अर्चना करके दौड़ाया जाता हैं सबसे बड़ी खासियत यह इस कस्बे के युवा आज भी इस परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं.
गधों की पूजा करने वाले गोपाल कुम्हार बताते हैं कि हमारा परिवार करीब 60 से 70 सालों से यह परंपरा निभाते हुए आ रहा है पुराने दौर में जिस प्रकार किसान बेल की पूजा करता है. इस प्रकार हमारा समाज गधों की पूजा करता है जब आवागमन और माल परिवहन का कोई जरिया नहीं था. तब गधों के माध्यम से ही सामान का परिवहन किया जाता था. तभी यह परंपरा शुरू हुई बताई जाती है. कुम्हार (प्रजापति) समाज वर्षों से गधों (बैशाखी नंदन) के पूजन की परंपरा निभा रहा है.
इस दिन हमारा पूरा समाज एक जगह इकट्ठा होता है और यही नहीं हमारा पूरा परिवार भी दूर-दूर से यहां पर यह आनंद मय माहौल देखने के लिए पहुंचता है पुराने समय में कुम्हार समाज के लोग तालाब से मिट्टी घर तक पहुंचाने में गधों को उपयोग करते रहे. गधों की संख्या कम हो रही है. इसके बावजूद हमारा कुम्हार समाज यह परंपरा निभा रहा हैं. इनका कहना है कि कई बार गधे कम पड़ने पर इस आयोजन के लिए दूसरी जगहों से मंगवाए जाते हैं.
लुप्त हो गई थी यह परंपरा –गोपाल कहते हैं कि पुराने दौर मे तालाब कि पाल से मिट्टी लाने के लिए संसाधनों के रूप में जड़ों को इस्तेमाल किया जाता था लेकिन बदलते वक्त के साथ आधुनिक वहां आ गए जिसके वजह से गधे भी अब धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं जिसके वजह से हमारी यह प्राचीन परंपरा भी खत्म हो गई थी लेकिन हम युवाओं ने एक बार फिर इस परंपरा को जीवित रखने का प्रयास किया है और हम हर साल दिवाली के दूसरे दिन गधों की पूजा करते हैं आज के दौर में गधों का मिलना मुश्किल हो गया है. लेकिन हम फिर भी कही दे गधे लेकर आते हैं और इन्हें पूजते हैं.
FIRST PUBLISHED : November 3, 2024, 19:09 IST