प्रेमिका के प्यार में नाखून से खोद डाली नक्की झील, साजिश होने पर रसिया बालम ने दे दी जान
ताजमहल ही नहीं बल्कि इस दुनिया में कई ऐसी चीजें हैं जो प्यार की निशानी हैं. ये अलग बात है कि कुछ लोगों ने अपने प्यार की याद में बड़ी पहचान बना दी और कुछ ऐसे भी रह गए जिन्हें उनका प्यार नहीं मिला लेकिन उस प्यार को पाने के लिए उनके द्वारा बनाई गई चीजें आज भी प्रसिद्ध हैं. इसी तरह अधूरे रह गए एक प्यार की निशानी है राजस्थान की नक्की झील. नक्की झील को एक मजदूर ने अपनी राजकुमारी प्रेमिका को पाने के लिए खोदा था, लेकिन उसके बाद उस मजदूर के साथ धोखा हुआ. न तो उसे प्रेमिका मिली और न ही वह मजदूर रहा. इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक है. तो चलिए जानते हैं क्या है नक्की झील और उसके बनने की पूरी कहानी.
माउंट आबू में बनी नक्की झील समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह राजस्थान की सबसे ऊंची झील है. ढाई किलोमीटर एरिया में फैली यह झील चारों तरफ पहाड़ों से घिरी है. यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. यह झील ठंड के मौसम में अक्सर जम जाया करती है. इस झील की रोचक कहानी आज भी राजस्थानी लोक गीतों और कहानियों में सुनने को मिलती है.
रसिया बालम ने नाखून से खोद डाली झीलबात लगभग 5 हजार साल पहले की है जब रसिया बालम नाम का एक व्यक्ति माउंट आबू में काम करने आया था. वहां उसने एक कन्या को देखा जो राजकुमारी थी. रसिया बालम को राजकुमारी से प्यार हो गया और इधर राजकुमारी का भी हाल कुछ ऐसा ही था. धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. कहते हैं कि यह बात जब राजा को पता चली तो राजा ने अपनी कन्या की शादी के लिए एक शर्त रखी दी. शर्त यह थी कि जो भी व्यक्ति बिना किसी औजर के भोर यानी सुबह होने से पहले झील खोद देगा, उसी से राजकुमारी की शादी कर दी जाएगी. रसिया बालम ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और अपने नाखूनों से झील खोदना शुरू कर दिया.
राजकुमारी की मां को रसिया ने दिया श्रापइधर, राजकुमारी की मां को यह प्रस्ताव किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था. राजकुमारी की मां ने इस शर्त को पूरा होने से रोकने के लिए छल-कपट का सहारा लिया. रसिया बालम भोर होने से पहले झील की खुदाई कर जैसे ही राजकुमारी के पिता के पास जाने के लिए निकला, वैसे ही राजकुमारी की मां ने मुर्गे की बांग दे दी. रसिया बालम को लगा कि मुर्गे ने बांग दे दी यानी भोर हो गया जबकि झील रात में ही खोदने की शर्त थी. इससे निराश होकर उसने वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए. लेकिन कहते हैं कि मरते-मरते वह राजकुमारी की मां के मायाजाल को समझ गया था और उसे श्राप दे दिया था. रसिया बालम के श्राप से राजकुमारी की मां उसी जगह पर पत्थर की मूर्ति बन गई.
ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां की वजह से रसिया बालम की प्रेम कहानी अधूरी रह गई इसलिए यहां आने वाले प्रेमी जोड़े राजकुमारी की मां को पत्थर मारते हैं और वहां पत्थरों का ढेर भी लगा है. माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है.
रसिया बालम और राजकुमारी की पूजा करते हैं लोगझील के पास ही जैन मंदिर के पीछे रसिया बालम और राजकुमारी का मंदिर भी है. लोग रसिया बालम को शिव का रूप भी मानते हैं और राजकुमारी को देवी का रूप मानते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में प्रेमी जोड़ों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुहागन महिलाओं को भी अमर सुहाग का आशीर्वाद मिलता है. प्रेमी जोड़े और नव-विवाहित दंपती उनका आशीर्वाद लेने आते हैं. यह मंदिर 5 हजार साल से भी अधिक पुराना है. 1453 से 1468 तक महाराणा कुंभा यहां रुके थे और उस दौरान उन्होंने मंदिर की मरम्मत भी कराई थी.
लोकगीतों में आज भी जिंदा है रसिया बालमरसिया बालम की प्रेमकथा माउंट आबू सहित पूरे मारवाड़-गोडवाड़ जिले में रसियो आयो गढ़ आबू रे माय लोकगीत के जरिए आज भी जिंदा है. इस लोक गीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्ति बनाने का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर राजकुमारी से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी कहानी है. यह भी कहते हैं कि नाखून से खोदे जाने की वजह से शुरू में इसे नख की झील कहा जाता था लेकिन समय के साथ इसका नाम नक्की झील पड़ गया.
गुजरात का भी है यहां पर प्रभावराजस्थान और गुजरात की सीमा में स्थित होने से माउंट आबू के बाजारों में गुजरात की झलक भी दिखती है. झील के किनारे ही एक मुख्य बाजार है. यहां राजस्थान और गुजरात की बने सामान खूब मिलते हैं. राजस्थानी ड्रेस से लेकर जूते, कढ़ाई किए हुए बैग आदि मिलते हैं. यहां से लोग किराये पर राजस्थानी और गुजराती डिजाइन वाले कपड़े खरीदकर फोटो भी खिंचवाते हैं. इसके अलावा माउंट आबू में समर फेस्टिवल भी होता है जो काफी फेमस भी है.
मीठे पानी की यह झील चारों तरफ से अरावली पहड़ों से घिरी है जो बहुत सुंदर दिखती हैं. यहां से डूबते सूर्य को देखा जा सकता है. सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों को देखने के लिए लोग काफी इकट्ठे होते हैं. इस झील में लोग नाव पर सवार होकर झील की सैर करते हैं.
कैसे पहुंचेंमाउंट आबू रेल, सड़क और हवाई रूट से पहुंचा जा सकता है. हवाई मार्ग से माउंट आबू जाने के लिए उदयपुर एयरपोर्ट सबसे नजदीक है. उदयपुर से माउंट आबू करीब 185 किलाेमीटर दूर है. यहां से माउंट आबू के लिए टैक्सी उपलब्ध है. सड़क से आने के लिए भी राजस्थान के प्रमुख शहरों से बस और टैक्सी की सुविधा है. रेल मार्ग से आने वालों के लिए सबसे नजदीक स्टेशन आबू रोड है जो कि माउंट आबू से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर है.
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FIRST PUBLISHED : August 10, 2024, 11:59 IST