Agriculture news: भीलवाड़ा में किसानों की किस्मत पलटी… अरबी की खेती से एक फसल में डबल मुनाफा!

Last Updated:October 30, 2025, 13:20 IST
Agriculture news: भीलवाड़ा के किसान अब पारंपरिक खेती छोड़ आधुनिक और मुनाफे वाली खेती की ओर बढ़ रहे हैं. अरबी की खेती किसानों के लिए डबल मुनाफे का सौदा साबित हो रही है – जहां जड़ें और पत्ते दोनों ही आय का जरिया बन गए हैं. कम लागत, ज्यादा उत्पादन और बढ़ती मांग ने किसानों की किस्मत बदल दी है.
भीलवाड़ा – आज के आधुनिक दौर में किसान भी अब आधुनिक हो गए हैं और ऐसे में किसान इन दिनों अपने खेतों में डबल मुनाफे वाली खेती कर रहे हैं जिससे किसानों को एक खेती में ही डबल मुनाफा हो रहा है जिससे किसानों को दुगनी आमदनी हो रही है. भीलवाड़ा जिले सहित पूरे राजस्थान में खेती का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है. अब किसान पारंपरिक फसलों के साथ ऐसी वैकल्पिक फसलों की ओर रुख कर रहे हैं, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकें. इसी कड़ी में अरबी की खेती किसानों के लिए एक नया अवसर बनकर उभरी है. पहले इसे सिर्फ सब्जी के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब इसके पत्तों से लेकर जड़ों तक की बाजार में मांग बढ़ने लगी है. यही कारण है कि अरबी की खेती को डबल मुनाफे वाली फसल कहा जाने लगा है.

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक इंद्र सिंह संचेती का कहना है कि भीलवाड़ा जिले में अब कई किसान अरबी की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. एक बीघा जमीन से औसतन 25 से 30 क्विंटल तक अरबी की उपज ली जा सकती है. इसके साथ ही खेत से दो ट्रॉली तक पत्ते भी निकल आते हैं, जिन्हें आसपास की सब्जी मंडियों में तुरंत खरीदार मिल जाते हैं. पत्तों से बने पकवान जैसे पत्तोड़े और अरबी की सब्जी लोगों की रसोई में काफी लोकप्रिय हैं, जिससे इनकी कीमत भी प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये तक पहुंच जाती है. इस खेती से अरबी की सब्जी के साथ ही इसके पत्ता का भी उपयोग किया जा सकता है.

अरबी की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसान एक ही खेत से दो तरह की आमदनी कर सकते हैं एक बार जड़ों की खुदाई से और बार-बार पत्तों की बिक्री से भी. खास बात यह है कि अरबी की जड़ों की तुलना में अब उसके पत्तों की मांग अधिक बढ़ गई है. यह फसल स्वाद और पौष्टिकता दोनों के लिहाज से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसके पत्ते कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होते हैं, जिससे यह स्वास्थ्यवर्धक भी है.

खेती के तौर-तरीके भी अपेक्षाकृत आसान हैं. खेत को पहले अच्छी तरह जोतकर उसमें गोबर की खाद मिलाई जाती है. बीज के रूप में देशी किस्म का चयन बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह जल्दी पकती है और स्वाद में भी अच्छी होती है. बीजों को कतार में 1 से 1.5 फीट की दूरी पर लगाया जाता है. अंकुरण के बाद शुरुआती 30 दिनों में 3 से 4 बार निराई-गुड़ाई जरूरी होती है ताकि खरपतवार फसल को नुकसान न पहुंचा सके. अरबी को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, बस समय-समय पर हल्की सिंचाई से यह तेजी से बढ़ती है.

अरबी की फसल लगभग 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है. जब फसल की खुदाई की जाती है तो जड़ों और पत्तों को अलग-अलग कर बाजार भेजा जाता है. अच्छी गुणवत्ता वाली अरबी की कीमत बाजार में 15 से 20 रुपये प्रति किलो तक मिल जाती है, जबकि हरे पत्ते भी प्रति क्विंटल 300 से 500 रुपये तक बिक जाते हैं. इस तरह किसान को एक ही फसल से दोहरा लाभ मिलता है. यह फसल न तो अत्यधिक खाद मांगती है और न ही ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे इसकी लागत काफी कम आती है.

भीलवाड़ा के कई प्रगतिशील किसान अब इसे नकदी फसल के रूप में देखने लगे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अरबी की खेती धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर फैल रही है, खासकर जहां भूमि की नमी और तापमान अनुकूल हो. कृषि विभाग किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन दे रहा है ताकि वे अरबी की वैज्ञानिक खेती अपना सकें. कई जगह किसान समूह बनाकर सामूहिक रूप से इसकी पैदावार और विपणन की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं.

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक इंद्र सिंह संचेती ने बताया कि जो किसान पारंपरिक खेती से हटकर नई दिशा में कदम रखना चाहते हैं, उनके लिए अरबी की खेती एक शानदार विकल्प है. इससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है. कम लागत, बाजार में बढ़ती मांग और बेहतर लाभ के चलते अरबी की खेती आने वाले वर्षों में भीलवाड़ा जिले में किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है.
First Published :
October 30, 2025, 13:20 IST
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भीलवाड़ा में अरबी की खेती से किसानों को डबल मुनाफा, जानें फायदे…



