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Explained: श्रीलंका में भी वामपंथी सरकार… चुनाव में चमके अनुरा कुमारा दिसानायके, जानिए भारत के लिए कितनी बुरी खबर?

नई दिल्ली: श्रीलंका में चुनाव हो गया. राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके की कुर्सी बच गई. यूं कहिए कि दिसानायके की आंधी में सभी उड़ गए. श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके की एनपीपी ने संसद में बहुमत हासिल कर लिया. नतीजों के मुताबिक, 225 सदस्यों वाली संसद में राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके की एनपीपी यानी नेशनल पीपुल्स पावर ने 141 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर लिया है. अब यह तय हो गया है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है और वह आराम से श्रीलंका में सरकार चलाते रहेंगे. इस चुनावी रिजल्ट का मतलब है कि श्रीलंका में वामपंथी सरकार ने जड़ मजबूत कर ली है.

सितंबर महीने में अनुरा कुमारा दिसानायके ने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. मगर उनके पास बहुमत नहीं था. इसलिए राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही अनुरा कुमारा दिसानायके ने संसद भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव के आदेश दे दिए थे. उन्होंने नए सिरे से चुनाव कराने का फैसला इसलिए लिए था, ताकि उन्होंने जो वादा किया था, उसे पूरा करने में किसी तरह की बाधा न आए. श्रीलंका की संसद में कुल 225 सीटें हैं. संसद में बहुमत के लिए 113 सीटों की जरूरत होती है. मगर 196 सीटों पर ही जनता डायरेक्ट वोटिंग कर उम्मीदवारों को चुनती है. बाकी 29 सीटों पर वोट फीसदी के आधार पर हार-जीत तय होता है.

क्या सच में भारत के लिए चिंता की बात?बहरहाल, अब यह तय हो गया कि श्रीलंका में वामपंथी राष्ट्रपति दिसानायके की ही सरकार रहेगी. तो ऐसे में यह समझना जरूरी है कि क्या श्रीलंका में दिसानायके का जीतना क्या सच में भारत के लिए बुरी खबर है और अगर है भी तो कितनी? दरअसल, 55 वर्षीय वामपंथी नेता दिसायनाके एकेडी के नाम से मशहूर हैं. वे मार्क्सवादी विचारधारा वाले जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के प्रमुख हैं. उनकी पार्टी पहले श्रीलंका में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए जानी जाती है. एकेडी यानी अनुरा कुमारा दिसानायके को चीन का करीबी माना जाता है. श्रीलंका की गद्दा पर दिसानायके का बैठना हिंद महासागर द्वीप में नई दिल्ली के हितों के लिए कतई अच्छा संकेत नहीं है. अनुरा कुमारा दिसानायके की जीत का भारत पर क्या होगा असर? आइए जानते हैं.

अनुरा का चीन प्रेम जगजाहिरअनुरा कुमारा दिसानायके की चीनी से करीबी जगजाहिर है. एकेडी को चीन का काफी करीबी माना जाता है. दिसानायके की जीत चीन के लिए मौके की तरह है. क्योंकि चीन लगातार श्रीलंका देश में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. श्रीलंका पहले ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर बीजिंग को सौंप चुका है. लंबे समय से श्रीलंका पर नजर रखने वाले आर भगवान सिंह का मानना है कि अनुरा कुमारा दिसानायके की जीत नई दिल्ली के लिए एक चुनौती है. क्योंकि दिसानायके के नेतृत्व वाली श्रीलंका का स्वाभाविक सहयोगी स्पष्ट रूप से चीन होगा.

दिसानायके का रहा है भारत विरोधी स्टैंडअनुरा कुमार दिसानायके का जो इतिहास रहा है, उसे देखकर समझा जा सकता है कि उनका झुकाव भारत कम और चीन की ओर अधिक होगा. दिसानायके को 1987 में जेवीपी के भारतीय शांति सेना के खिलाफ विद्रोह के दौरान रही प्रसिद्धि मिली थी. उस वक्त भारतीय सेना लिट्टे यानी तमिल ईलम के लिबरेशन टाइगर्स का सफाया करने श्रीलंका में उतरी थी. दिसानायके की पार्टी जेवीपी ने 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते का विरोध किया था, जिस पर तत्कालीन श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने हस्ताक्षर किए थे.

श्रीलंका हमारे लिए क्यों जरूरीश्रीलंका, तमिलनाडु के पास होने की वजह से भारत के लिए बहुत अहमियत रखता है. इस द्वीपीय देश के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में तमिलों की संख्या अच्छी-खासी है, जो कि वहां की कुल आबादी का 11 प्रतिशत हैं. भारत सरकार श्रीलंका पर 13वें संविधान संशोधन को लागू करने का दबाव बना रही है. यह संशोधन तमिलों के साथ सत्ता में भागीदारी की बात करता है. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के तमिलों को डर है कि दिसानायके 13वें संविधान संशोधन को ही खत्म कर सकते हैं. भारत और श्रीलंका दशकों से एक-दूसरे के दोस्त रहे हैं. भारत ने आर्थिक तंगी से उबारने के लिए श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर की मदद दी है. इतना ही नहीं, श्रीलंका में रुकी हुई कई भारतीय परियोजनाओं को फिर से शुरू किया गया है.

चीन बहुत होगा खुशअब डर इस बात का है कि दिसानायके की जीत से श्रीलंका में कुछ भारतीय कंपनियों के प्रोजेक्ट्स को खतरा पैदा हो सकता है. अब जब अनुरा ने प्रचंड जीत हासिल कर श्रीलंका में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है. ऐसे में इससे चीन बहुत खुश होगा क्योंकि वामपंथी राष्ट्रपति का झुकाव कम्युनिस्ट राष्ट्र की ओर ही ज्यादा होगा. हालांकि, अनुरा कुमारा दिसानायके के लिए भारत को इग्नोर करना इतना आसान भी नहीं होगा. दिसानायके की पार्टी भले ही भारत विरोधी और चीन समर्थक रुख रहा है, बावजूद इसके वह भारत को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं. यही वजह है कि बीते कुछ समय से उन्होंने भारत विरोधी बयानबाजी को कम किया है और नई दिल्ली के साथ बेहतर रिश्ते की वकालत की है. बीते महीने भी उन्होंने कहा था कि चीन और भारत के बीच में श्रीलंका सैंडविच नहीं बनना चाहता.

अब जानते हैं कौन हैं एकेडी?एकेडी यानी अनुरा कुमारा दिसानायके ने सितंबर में हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में ‘बदलाव’ के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव प्रचार किया था. ये चुनाव 2022 के आर्थिक संकट के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद पहली बार हुए थे, जिसने राजपक्षे कुनबे को सत्ता से बाहर कर दिया था. दिसानायके का जन्म नवंबर 1968 को अनुराधापुरा जिले के थंबुट्टेगामा में हुआ है. श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके का जन्म मजदूर माता-पिता के घर हुआ था. वामपंथी नेता के रूप में मशहूर दिसानायके अपने कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति का हिस्सा थे. वे 1987 में जेवीपी के सरकार विरोधी आंदोलन के दौरान पार्टी में शामिल हुए थे. एकेडी पहली बार 2001 में संसद के लिए चुने गए. उन्होंने अपनी मेहनत से तरक्की की और 2019 में जेवीपी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने. हालांकि, पिछले चुनावों में एकेडी को सिर्फ 3.2 प्रतिशत वोट मिले थे.

Tags: Special Project, Sri lanka, World news

FIRST PUBLISHED : November 15, 2024, 14:11 IST

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