Famous Qawwal Saeed Sabri Passed Away In Jaipur – जाने-माने कव्वाल सईद साबरी का इंतकाल, ‘देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए’ गाने से मिली थी पहचान

क़व्वाली के पर्याय रहे राजस्थान के मशहूर क़व्वाल उस्ताद सईद साबरी के इंतकाल की ख़बर से कलाजगत में शोक की लहर दौड़ गई। 85 वर्षीय सईद साबरी ने इस दुनिया-ए-फानी को अलविदा कह दिया।

इमरान शेख़/जयपुर। क़व्वाली के पर्याय रहे राजस्थान के मशहूर क़व्वाल उस्ताद सईद साबरी के इंतकाल की ख़बर से कलाजगत में शोक की लहर दौड़ गई। 85 वर्षीय सईद साबरी ने इस दुनिया-ए-फानी को अलविदा कह दिया। रविवार सुबह उन्हें कार्डियक अटैक आया। जिसके चलते उन्होंने घर पर ही अंतिम सांस ली। सईद साबरी को शाम यहां घाटगेट स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द ख़ाक किया गया। उनके इंतकाल से जयपुर के घाटगेट स्थित मथुरा वालों की ‘हवेली’ में सुर शोक में और हारमोनियम उदास हो गया। क़व्वाल सईद साबरी अक्सर हवेली की बारादरी में बैठकर रियाज किया करते थे और युवा पीढ़ी को क़व्वाली के साथ-साथ उर्दू और फारसी में एक से बढ़कर एक अशआर सुनाया करते थे।
सईद साबरी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्होंने कोरोना काल में लोगों से मिलना जुलना भी कम सा कर दिया था। हालांकि अपने शार्गिद और पोतों को क़व्वाली की बारीकियां सीखा रहे थे। भारतीय सिनेमा में राजस्थान का नाम रोशन करने वाली मशहूर कव्वाल जोड़ी साबरी बंधुओं के सरपरस्त उस्ताद सईद साबरी के साथ में उनके बेटे फरीद और अमीन साबरी उनके जोड़ीदार के रूप में गाया करते थे।
लेकिन अफसोस तीन मुख्य गायकों की इस सुरीली माला का एक और मोती बिखर गया। अभी अप्रेल में ही सईद साबरी के बड़े बेटे फरीद साबरी का भी निधन हुआ था और अब सईद साबरी के जाने से क़व्वाली जगत को गहरा आघात लगा है। सईद साबरी ने लता मंगेशकर सहित अनेक गायकों के साथ अपने सुरों को मिलाया। फिल्म ‘हिना’ की क़व्वाली ‘देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए’ से साबरी बंधुओं को अलग पहचान मिली। 85 साल की उम्र में सईद साबरी अपनी दखखम भरी आवाज में गा रहे थे।
साबरी बंधुओं में अकेले रह गए क़व्वाल अमीन साबरी का कहना है कि मेरे बड़े भाई फरीद साबरी के बाद पिता सईद साबरी भी इतनी जल्दी हमारा साथ छोड़कर चले जाएंगे, यह सोचा नहीं था। हम दोनों भाई हमारे वालिद उस्ताद सईद साबरी की देखरेख में संगीत की सेवा करते आए हैं। अमीन साबरी ने बताया कि उनके पिता सईद साबरी खुशमिजाज तबियत के इंसान थे, दौलत-शौहरत की चमक से एकदम दूर। सुनने वाला छोटा हो या बड़ा उनके लिए सभी एक समान हैसियत रखते थे।
हर सुनने वाले का दिल से सम्मान करना, उनकी शान में शेर नज़र करना हम तीनों की फितरत रही है। मेरे पिता सईद साबरी ने क़रीब 50 साल से भी ज़्यादा अरसे तक क़व्वाली से दुनियां भर में नाम कमाया। ध्रुवपद के डागर घराने से भी आपने संगीत की तालीम ली। आपने बॉलीवुड में भी अपना नाम कमाया। आपको भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी के अवार्ड से भी राष्ट्पति द्वारा सम्मानित किया गया था। क़व्वाली के असली रंग से दुनिया को रूबरू करवाने वाले पिता सईद साबरी के जाने से उनके चाहने वालों को भी गहरा आघात लगा है।
सूफी-संतों के जीवन-दर्शन में माहिर थे साबरी
ख़्वाजा गरीब नवाज, हजरत अमीर खुसरो, हजरत निजामुउद्दीन औलिया जैसे सूफी संतों के जीवन-दर्शन पर रोशनी डालने में सईद साबरी काफी माहिर थे। उन्होंने अपने समय के दिग्गज क़व्वाल उस्ताद मोहम्मद सिद्दीक की सौबत में रहकर भी सूफियाना कलामों से धूम मचाई। सईद साबरी प्रदेश की कई दरगाहों में पगड़ीबंध क़व्वाल रहे। उन्हें अजमेर में ख़्वाजा गरीब नवाज के दम पर सुनने के लिए लोग दूरदराज से आया करते थे। हजरत अमीर खुसरो के सूफियाना कलाम ‘छाप तिलक सब छीनी तोसे नैना मिलाके’ को वें खास अंदाज में पेश करते थे। उनकी आवाज के सैकड़ों दीवाने थे, जो उन्हें सुनने के लिए क़व्वाली की महफिल भी आयोजित करवा लिया करते थे।
साबिर बंधुओं को फिल्मों से मिली पहचान
साबरी बंधुओं की इस अजीम जोड़ी ने कई फिल्मों में दर्जनों कव्वालियां गाकर देश-दुनिया में अलग पहचान बनाई। उन्होंने सूफियाना क़व्वाली की परंपरा को परवान चढ़ाते हुए कई शार्गिदों को भी तैयार किया। साबरी बंधुओं ने सबसे पहले स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ अपनी आवाज मिलाई। उन्होंने क़व्वाली ‘देर ना हो जाए कहीं देर ना हो जाए’ से भारतीय सिनेमा में एक खास पहचान छोड़ी। जिसके बाद उन्होंने सुभाष घई की 1997 में आई फिल्म ‘परदेस और उसके बाद बोनी कपूर की 1999 में ‘सिर्फ तुम’ की क़व्वाली ‘जिंदा रहने के लिए तेरी कसम, इक मुलाकात जरूरी है सनम के जरिए सूफियाना कव्वाली के क्षेत्र में काफी शोहरत हासिल की। सईद साबरी ने ध्रुवपद के डागर घराने से भी आपने संगीत की तालीम ली। सईद साबरी को भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी के अवार्ड से भी राष्ट्पति के जरिए सम्मानित किया गया था।