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एक साधारण उंगली के टेस्ट से पता कर लीजिए आपके फेफड़े में कितनी जान है, कई बीमारियों के बारे में पता चल जाएगा

Last Updated:May 07, 2025, 17:41 IST

Finger test for lung disease: अगर आपकी उंगलियां बहुत ज्यादा लचीली है तो इसे बहुत अच्छा नहीं मानना चाहिए. यह फेफड़े की बीमारी के संकेत भी हो सकते हैं.एक साधारण उंगली के टेस्ट से पता कर लीजिए आपके फेफड़े में कितनी जान है

फिंगर टेस्ट.

Finger test for lung disease: लग्स हमारे लिए जीवन देने वाली ऑक्सीजन की छन्नी है. यह हमें शुद्ध ऑक्सीजन छानकर दे देता है और खराब वायु को बाहर निकाल देती है. अगर लंग्स मजबूत होगा तो हमें ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति होती रहेगी. लेकिन आपके फेफड़े कितने मजबूत है, यह कैसे जानेंगे. दरअसल, एक अध्ययन में कहा गया है कि इसे आप उंगली की जांच से भी जान सकते हैं. इसके लिए किसी डॉक्टर के पास भी जाने की जरूरत नहीं है. आइए जानते हैं कि इस टेस्ट को कैसे करना है.

कैसे करें इसकी जांच मायो क्लीनिक के मुताबिक अगर आपके हाथों की उंगलियों में जरूरत से ज्यादा लचीलापन है तो यह लंग्स डिजीज के संकेत हो सकते हैं. जोड़ों में ज्यादा लचीलेपन को इहलर डानलोस सिंड्रोम (EDS) कहा जाता है. इसमें आपको 5 तरह के काम करने होते हैं. सबसे छोटी उंगलियों को 90 डिग्री पर पीछे की ओर मोड़िए, अंगूठे को अग्रभाग से छूने की कोशिश कीजिए, कोहनी और घुटनों को 10 डिग्री से ज्यादा सीधा करने की कोशिश कीजिए और अंत में बिना घुटने मोड़े हाथों की हथेलियां ज़मीन पर रखने की कोशिश कीजिए. अगर आप इन पांचों तरह के टेस्ट को कर लेते हैं तो इसका मतलब है कि आपके लंग्स में गंभीर समस्या है. वयस्कों में 5 अंक से अधिक का स्कोर होना हाइपरमोबिलिटी का संकेत है. यह EDS (एलर्स-डैनलोस सिंड्रोम) को बढ़ा देता है. एक्सपर्ट के मुताबिक जोड़ों में अत्यधिक लचीलापन एक दुर्लभ आनुवंशिक स्थिति एलर्स-डैनलोस सिंड्रोम का संकेत हो सकते हैं. इस बीमारी में सांसों से जुड़ी बीमारियों का खतरा जटिल हो सकता है. घर पर किया गया एक सरल लचीलापन परीक्षण इस छिपे हुए जोखिम को उजागर कर सकता है. यह जांच यह समझने के लिए की जाती है कि क्या आपके ज्वाइंट सामान्य गति सीमा से परे जाकर मुड़ सकते हैं.

कई गंभीर समस्याओं के संकेतहालांकि ज़्यादातर लोगों में यह कोई चिंता की बात नहीं होती, लेकिन कुछ मामलों में यह EDS एक गंभीर स्थिति का संकेत हो सकता है. यह रोग आपके कनेक्टिंग टिशू, स्किन, जोड़ और ब्लड वैसल्स की दीवारों को प्रभावित करता है. मायो क्लिनिक के मुताबिक इस स्थिति वाले लोगों की स्किन भी बहुत पतली, कोमल और नाजुक होती है और इसकी वजह से नुकसान उठाना पड़ता है. अगर ऐसे व्यक्ति को किसी कारण टांके लगाने की ज़रूरत पड़े तो कमजोर स्किन की वजह से टांके ठीक से नहीं टिकते और घाव जल्दी नहीं भरता. कनेक्टिंग टिशू शरीर को संरचना, मजबूती और लचीलापन देते हैं. अगर वे कमज़ोर हो जाएं तो शरीर की भरपाई की क्षमता भी घट जाती है. इस स्थिति का गंभीर रूप ब्लड वैसल्स आंतों या गर्भाशय की दीवारों को फाड़ सकता है. ऐसे मरीजों में सांस से संबंधित समस्याएं जैसे कि सांसें फूलना, गहरी सांस लेने में कठिनाई, स्लीप एपनिया, खांसी, घरघराहट और सांस लेते के दौरान दर्द की समस्या हो सकती है.

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