जाना तो दूर..इस भूत गली की तरफ देखने में भी डरते हैं लोग, ये है कहानी

राजस्थान की छोटी-छोटी गलियों तक की अपनी कहानी और उनके रहस्य हैं. वैसे तो यहां बारियों की गली, सिनेमा हॉल वाली गली और बूरे-बताशे वाली गली नाम वाली तमाम गलियां हैं. लेकिन राजस्थान के करौली में एक ऐसी गली भी है जिसे भूत गली कहते हैं. यह गली में रात के अंधेरे में ही नहीं बल्कि दिन के उजाले में भी सुनसान और डरावनी दिखती है. इस गली में हमेशा सन्नाटा पसरा रहता है. इस गली का नाम भूत गली कैसे पड़ा इसके पीछे एक बड़ा गहरा राज है. चलिए जानते हैं क्या है इस गली की रहस्यमयी कहानी.
करौली में दो चौराहों के बीचों-बीच में मेन मार्केट से होकर एक संकरी से गली निकलती है. इस गली में कदम रखना तो दूर, लोग गली को देखना तक पसंद नहीं करते. इस गली का नाम ही भूतों की गली है. पहली बात तो गली का नाम ही सुनकर पसीना छूट जाता है. कहते हैं इस गली में पहले भूतों की संतान रहा करती थी और गली में रोजाना भूत आते थे.
भूत गली की प्रचलित कहानीलोगों का कहना है कि इस गली में रहने वाली एक औरत के पास भूत आया करते थे और उस औरत को भूतों की संतान पैदा हुई थी. बाद में उसका परिवार धीरे-धीरे और बढ़ता गया. इसी मान्यता के चलते उस परिवार और गली दोनों का नाम ही भूत की गली पड़ गया. इस भूत गली में आज भी उन परिवारों की कई खंडहर हवेलियां मौजूद है जो आज एकदम भूतिया घरों जैसी दिखती हैं.
हालांकि, वहां के लोगों का कहना है कि इसका नाम भले ही भूतों की गली है लेकिन गली में कोई डर नहीं है. उस गली में आज तक न तो किसी ने भूत देखा है और ना ही ऐसा कुछ महसूस किया है. गली के सुनसान रहने के पीछे का कारण लोग बताते हैं कि रोजगार की तलाश में कई परिवार यहां से बाहर चले गए इसलिए यह गली सुनसान रहती है.
वैसे तो करोली जिले में कई संकरी गलियां हैं जिनसे सिर्फ पैदल ही निकल सकते हैं. बहुत ज्यादा एक बाइक निकल सकती है. इन गलियों में खासियत यह भी है कि इनमें भटकने की आशंका काफी ज्यादा रहती है, क्योंकि ज्यादातर गलियां एक जैसी ही नजर आती हैं. ये गलियां भी करौली की एक पहचान हैं. इन गलियों के अलावा करौली के दरवाजे और खिड़कियों की भी चर्चा होती है. इन सभी गलियों, दरवाजों और खिड़कियों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है.
ये सब डॉक्टरनी की गली, सेवा सिंह की गली, गणेश दरवाजा, हिंडौन दरवाजा, वजीरपुर दरवाजा, मेला दरवाजा, नदी दरवाजा, मासलपुर दरवाजा, साईनाथ खिड़कियां, परशुराम खिड़कियां, कायस्थ खिड़कियां, होली खिड़कियां, गुसाई खिड़कियां, चोर खिड़कियां, शुक्ल खिड़कियां, पठान खिड़कियां, चमर खिड़कियां, गुसाई खिड़कियां, होली खिड़कियां, हनुमान खिड़कियां नाम से प्रसिद्ध हैं. कहते हैं जिस इलाके में जिस समुदाय के लोग रहते थे, वहां की गली का नाम उसी समुदाय या किसी चर्चित व्यक्ति के नाम पर रख दिया जाता था.
कैसे बनीं इतनी गलियांकरौली की स्थापना 1348 में यादव वंश के राजा अर्जुन पाल ने की थी. पुराने समय में यह नगर ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बीहड़ों से घिरी हुई थी. उस समय के राजाओं ने गलियां बनवाई और इसी वजह से यहां गलियों की संख्या काफी ज्यादा है. करौली का पुराना नाम कल्याणपुरी था, जो कल्याण जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध था. इसको भद्रावती नदी के किनारे होने की वजह से भद्रावती नगरी भी कहा जाता था.
करौली के रेड स्टोन या लाल पत्थर देश भर में प्रसिद्ध हैं. करौली भी चारों तरफ से इन्हीं लाल पत्थरों से बना है. करौली में भी 6 दरवाजे 12 खिड़कियां हैं. बस स्टैंड की तरफ से आने वालों के लिए शहर में एंट्री के लिए एक गेट भी बना है जिसे हिंडौन दरवाजा कहते हैं.
कितनी ही कहानियां हैं हमारे आसपास. हमारे गांव में-हमारे शहर में. सामाजिक कहानी, लोकल परंपराएं और मंदिरों की कहानी, किसानों की कहानी, अच्छा काम करने वालों कहानी, किसी को रोजगार देने वालों की कहानी. इन कहानियों को सामने लाना, यही है लोकल-18. इसलिए आप भी हमसे जुड़ें. हमें बताएं अपने आसपास की कहानी. हमें व्हाट्सएप करें हमारे नंबर- 08700866366 पर.
Tags: Premium Content
FIRST PUBLISHED : August 11, 2024, 13:42 IST