Rajasthan

Gangaur procession is taken out wearing jewelery worth Rs 4 crore and 2 kg gold – News18 हिंदी

रिपोर्ट-कृष्णा कुमार गौड़
जोधपुर. गणगौर का 16 दिन का उत्सव खत्म हो गया. आखिरी दिन गावर और ईसरजी की पूजा के साथ शोभायात्रा का अपना अलग महत्व है. गणगौर राजस्थान का खास पर्व है. यहां महिलाओं में बड़ा उल्लास रहता है. यहां हर जिले में गणगौर पूजा की अपनी अलग कहानी और परंपरा है. जोधपुर में एक गणगौर 2 करोड़ के गहने पहनकर निकलती है. ये इतनी मालदार है कि इसका अपना अलग अकाउंट भी है.

गणगौर के लिए पूरे देश की महिलाओं में गजब का उत्साह रहा. हर जिले में पूजी जाने वाली गणगौर की एक अलग कथा है. इसका एक अलग इतिहास है. बात जोधपुर के राखी हाउस गणगौर की करें तो इसका अपना बैंक अकाउंट है. जोधपुर में गुरुवार देर रात गणगौर के दिन निकाली जाने वाली शोभायात्रा में करीब 7 लाख लोग दर्शन करने भी आए.

साल में सिर्फ एक दिन बाहर आती हैं गणगौर
राखी हाउस की सोने-चांदी के व्यापारी बंशी लाल भैया, नारायण दास सोनी और अमरचंद मुंदडा ने जिम्मेदारी उठाई और गणगौर की सवारी शुरू की. तब से लगातार इस गणगौर की सवारी निकाली जाती है. पिछली 3 पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है. कमेटी के संचालक मनमोहन बताते हैं 1952 में राखी हाउस से मेरे दादा बंशीलाल भैया ने गणगौर के आयोजन की इच्छा अपने मित्र नारायण दास सोनी और अमरचंद मूंदड़ा को बताई. तब से उन्होंने जिम्मेदारी संभाली. इस गणगौर को लेकर यह मान्यता है कि इससे जो भी मुराद मांगें वह पूरी होती है. यह भी एक कारण है कि वर्ष भर में एक दिन जब यह गणगौर बाहर आती है और मेला भरता है तब मन्नत मांगने हजारों श्रृद्धालु पहुंचते हैं.

2 करोड़ के आभूषण
राखी हाउस की इस गणगौर को सजाने संवारने के लिए करीब 2 किलो सोने के गहने पहनाए जाते हैं. इसकी कीमत 2 करोड़ रुपए से अधिक है. सोने के ये आभूषण गणगौर नाम से ही हैं. आयोजन कमेटी ने इसी नाम से गणगौर का बैंक में अकाउंट और लॉकर खुलवाया है. सारे गहने माता के नाम से लॉकर में सुरक्षित रखवाए जाते हैं. गणगौर को सिर पर मुकुट, बोर, रखड़ी, नाक में नथ, कानों के झुमके, गले में तीन टीक, इसके साथ तीन चंद्रहार पहनाए जाते है. हाथों में हथफुल, पैरों में पायल और कड़े, चूड़ी कंगन, पाटले, गोखरु, भुजबंद और बाजूबंद पहनाए जाते हैं. अंगूठी और हाथ में गोल्ड का अर्धचंद्र रहता है. सिर का मुकुट हर वर्ष अलग-अलग डिजाइन में बनता है.

चांदी की पालकी पर सोने की परत
गणगौर की सवारी धूमधाम से निकलती है. इसमें 5 बैंड के साथ गोल्ड प्लेटेड पालकी में गणगौर सवार होते हैं. इस बार इस सवारी में 30 से अधिक झांकियां भी शामिल हुईं. शोभायात्रा के दौरान रास्ते में आने वाले हर घर में गवर की पूजा होती है. सवारी को हर घर में रोका जाता है. शोभायात्रा जिस रास्ते से गुजरती है वहां सब इसकी पूजा करते हैं. आयोजन समिति ने गवर माता की पालकी को भी गोल्ड प्लेटेड बनवाया है. गणगौर की सवारी जिस पालकी में निकाली जाती है उस पर सोने की परत चढ़ाई गई है. कमेटी के संयोजक के अनुसार इस पालकी पर 40 हजार रुपए गोल्ड प्लेटेड के लिए खर्च किए गए है. सिल्वर कलर की पालकी को इस वर्ष गोल्ड प्लेटेड किया गया है. पालकी की कीमत 60 हजार के करीब है.

शोभायात्रा पर 9 लाख रुपए खर्च
मनमोहन ने बताया राखी हाउस गणगौर सज-धज कर निकाली जाती है. पिछले 72 वर्ष से यही परंपरा चली आ रही है. उस समय इस आयोजन पर 74 रुपए खर्च हुए थे. अब इस पर करीब 9 लाख रुपए खर्च हुए. पहली शोभायात्रा में पुरुष पैदल ही सवारी लेकर जाते थे और राजा-रानी, दरोगा आदि के वेश बना कर निकलते थे. धीरे-धीरे हाथी-घोड़े और पालकी के साथ इसका आयोजन होने लगा. 1952 में शोभा यात्रा के रास्तों में अंधेरा रहता था आज पूरे 10 किमी के एरिया में रोशनी से जगमग रहती है.

36 कौम में पूजा
गणगौर इस दिन हट्डियों के चौक अपने ससुराल से राखी हाउस अपने पीहर आती है. यहां प्रतिदिन पूजा और मिष्ठान भोग लगता है. यहां वो पुंगलपाडा राजू लोहिया गोपी किशन लोहिया के घर रहती हैं. 2 दिन बाद भोलावणी होती है. इसके बाद गणगौर पीहर राखी हाउस लौट आती हैं. शिव पुराण में भी गणगौर का जिक्र है और छत्तीस कौम में इसकी पूजा होती है.

Tags: Jodhpur News, Local18

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