Rajasthan

Gawar-Isar, the symbol of Gangaur, is worshiped across the seven seas and in foreign countries – News18 हिंदी

रिपोर्ट-कृष्णा कुमार गौड़
जोधपुर. मारवाड़ में एक कहावत प्रचलित है, फागन मर्दो का तो चैत लुगाइयों रो. होली के बाद मारवाड़ सहित पूरे प्रदेश में महिलाएं गणगौर के उल्लास में रम जाती हैं. ये महिलाओं का प्रमुख पर्व माना जाता है. होलिका दहन के अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक गणगौर मनाया जाता है. सात समंदर पार विदेश में रहने वाले राजस्थानी परिवार भी गणगौर के प्रतीक गवर-ईसर की पूजा करते हैं. लकड़ी के आइटम्स के लिए प्रसिद्ध जोधपुर से गवर-ईसर की प्रतिमाएं दुनिया भर में भेजी जाती हैं.

विदेश में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी और भारतीय गणगौर पर इन प्रतिमाओं की पूजा करते हैं. गवर माता और ईसरजी की प्रतिमाओं की देश-विदेश में डिमांड बढ़ी है. खास बात यह है कि इन्हें बनाने के लिए विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है. विदेशों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी भी इस पर्व को अपनी परपंराओं के लिहाज से मनाते हैं. गणगौर पर करोड़ों रुपए की मूर्तियां जोधपुर और पूरे राजस्थान के अलग-अलग जिलों से विदेश भेजी जाती हैं.

विशेष लकड़ी से बनती हैं प्रतिमाएं
गवर माता की छोटे कद से लेकर आदमकद प्रतिमाओं को बारीक कलाकारी से तैयार करने में कई दिन लगते हैं. ये आम और सागौन की लकड़ी से बनती हैं. पहले लकड़ी पर प्रतिमाओं को आकार देकर सुखाया जाता है. लकड़ी जितनी फटनी होती है, उतनी फट जाती है. फिर इन दरारों में मिक्सर भर कर उन्हें पक्का रूप दिया जाता है. जोधपुर का हैंडीक्राफ्ट विदेश तक अपनी मजबूती के लिए पहचान रखता है. खास बात यह है इस तरीके से बनी प्रतिमाएं दो से तीन दशक तक चलती हैं.

सात समंदर पार डिमांड
मारवाड़ के गवर-ईसर का अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, यूरोप, कनाडा, गल्फ, घाना सहित करीब बीस से अधिक देशों में निर्यात होता है. भारत के विभिन्न राज्यों में भी इन प्रतिमाओं की मांग के अनुसार सप्लाई की जाती है. होली के पहले से ही इसका निर्माण और निर्यात शुरू हो जाता है. पिछले वर्ष बात की जाए तो बकायादा लंदन में विशेष आयोजन किया गया था. जिसमें गणगौर की सवारी निकाली गई थी और उस वक्त भी प्रतिमाएं राजस्थान के जोधपुर से ही एक्सपोर्ट हुई थीं.

आम सागौन से बनते हैं ईसर गवर
सुंदर आर्ट इंडिया से जुड़े एक्सपोर्टर गिरीश जैन बताते हैं हर बार सीजन में 100 से 200 प्रतिमाएं जाती हैं. इनकी कीमत हजारों रुपए से लेकर लाखों रुपए तक होती है. खास बात यह है कि सामान्य लकड़ी की प्रतिमाओं पर सोने का घोल तक लेपा जाता है. गवर-ईसर की प्रतिमा तैयार करने में आम, सागौन की लकड़ी का उपयोग होता है. अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, यूरोप, कनाडा में इसकी डिमांड ज्यादा रहती है.

Tags: Jodhpur News, Local18

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