देर आए पर दुरस्त आए गहलोत


लम्बे अंतराल के बाद पिंकसिटी प्रेस क्लब का रूख मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया तो सभी आश्चर्यचकित रह गए,क्योंकि अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर पिंकसिटी प्रेस क्लब एवं मीडिया को लेकर किया गया कटाक्ष किसी से छुपा नहीं है। हस साल सरकार की वर्षगांठ पर आयोजित पत्रकार वार्ता में किसी न किसी विषय पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पत्रकार साथियों पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते,साथ ही मीडिया फ्रैंडली होने का गर्व से दम भी भरते हैं। इस बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे अंतिम सांस तक मीडिया के प्रति फ्रैंडली रहेंगे।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पिंकसिटी प्रेस क्लब में पदार्पण ऐसे समय हुआ जब प्रेस क्लब की गरीमा को दीमक लगा हुआ था लेकिन गहलोत के आने से प्रेस क्लब की धुमिल होती छवि में रातोंरात ईजाफा हुआ है और वर्तमान कार्यकारिणी इसे कैसे सारसंभाल कर रखती है यह अब उस पर निर्भर करता है। यह वहीं गहलोत है जिन्होंने अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर पत्रकारों को कहा था कि आप लोगों ने प्रेस क्लब की ऐसी दुर्दशा कर रखी है कि किसी ओर का क्या मेरा भी आने का मन नहीं करता।
तीसरे कार्यकाल पूर्ण होने पर चौथे कार्यकाल में नववर्ष में पहला सप्ताह पत्रकार साथियों के बीच मीट द प्रेस कार्यक्रम में हंसी-ठिठौली के बीच मुख्यमंत्री का यह कार्यक्रम अपने आप में यादगार बन गया। यादगार शब्द का इस्तेमाल इसलिए है कि करीब आठ-दस साल बाद मीडिया फ्रैंडली मुख्यमंत्री की पिंकसिटी प्रेस क्लब के मामले में घर वापसी हुई है यानि कि देर से आए पर दुरस्त आए।
मुझे आज भी याद है गहलोत का वह समय जब वे पिंकसिटी प्रेस क्लब के रास्ते से निकलते थे तो घंटा-आधा घंटा प्रेस क्लब रूक कर जाया करते थे। उस दौरान प्रेस क्लब में कोई उनका स्वागत करने उपस्थित हो या नहीं उससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था।
प्रेस क्लब आने के बाद सहजता से फोन करके पत्रकार साथियों को बुला लिया करते थे कि भाई आप लोग कहां हो मैं तो आप लोगों के पास चाय पीने आ गया।
इस बार तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पत्रकारों की समस्या एवं अन्य मांगों को लेकर यहां तक कह दिया कि आप जितना चाहते हैं मैं उससे कही ज्यादा देना चाहता हूं।
अब उन पत्रकार साथियों को चाहिए कि मुख्यमंत्री गहलोत एवं कमेटियेां के अध्यक्ष के सम्पर्क में रहकर पत्रकारों समस्याओं के निदान एवं आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं को अमली जामा पहना में कोई कोरकसर बाकी न रखें। क्योंकि गहलोत साहब सबकुछ देकर भी हमें सिर्फ कमेटियों का झुनझुना पकडा कर चलते बने। बहुत कुछ देना का वादा भी किया और जाते जाते आश्वासन के सिवां कुछ देकर भी नहीं गए।अब इन कमेटियों के माध्यम से पत्रकार साथियों के कार्यों का निष्पादन कराना कमेटी में शामिल साथियों के हाथ में हैं। अगर इस में ढिलाई बरती गई तो मायने उस कहावत को चरितार्थ करते नजर आएंगे जिसे लेकर कहा जाता है कि नाच न जाने आंगन टेढा। मुख्यमंत्री गहलोत के पास तो एक ही जवाब होगा कि आपके साथी कुछ कर ही नहीं पाएं। मैने तो हर तरह की सुविधा उपलब्ध हो उसके लिए कमेटियां तक गठित कर दी। अब आपके साथी ही नाकारा साबित हो तो मैं क्या करूं?
- प्रेम शर्मा