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Capgras Syndrome, Cause, Symptoms And Treatment: आजकल लोगों के पास खाने-पीने, किसी से मिलने या खुल कर जीने का समय ही नहीं है. इसकी बहुत बड़ी वजह है व्यस्त लाइफस्टाइल. इसी कारण लोगों में तनाव भी बढ़ने लगा है. जो आगे चलकर अवसाद (Depression) या खराब मेंटल हेल्थ (Mental Health) का कारण भी बन जाता है. लोग न खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रख पाते हैं और न ही किसी और की मदद कर पाते हैं. किसी मानसिक विकार से पीड़ित मरीज को जितनी तकलीफ होती है, उसका तो शायद अंदाजा भी आम लोग नहीं लगा सकते हैं लेकिन कई बीमारियां ऐसी भी हैं, जिनके कारण न सिर्फ मरीज, बल्कि उसके परिवार को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसी ही एक बीमारी है कैपग्रास सिंड्रोम (Capgras Syndrome).
न्यूज़18 से कैपग्रास सिंड्रोम (Capgras Syndrome) और मेंटल हेल्थ पर बात करते हुए फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट (Forensic psychologist) अजिंक्य भस्मे (Ajinkya Bhasme) ने जरूरी जानकारी साझा की. उन्होंने इसका कारण (Cause), लक्षण (Symptoms) और मरीज की देखभाल करने का तरीका भी बताया.
क्या होता है कैपग्रास सिंड्रोम? (What is Capgras Syndrome)
एक्सपर्ट के मुताबिक कैपग्रास सिंड्रोम (Capgras Syndrome) सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) का एडवांस वर्जन (Advance version) यानी रूप है. उनसे से मिली जानकारी के मुताबिक सिजोफ्रेनिया कैपग्रास का रूप तब ले लेता है जब उसे ढंग से ट्रीट न किया जाए. सिजोफ्रेनिया को करेक्ट न किया जाए तो वो कुछ मामलों में कैटाटोनिक (Catatonic) बन जाता है. पेशे से फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट (Forensic psychologist) और लेखक अजिंक्य भस्मे (Ajinkya Bhasme) ने बताया कि यह एक मानसिक विकार (Mental disorder) है जिसमें मरीज को लगने लगता है कि उसके परिवार के सदस्य में से कोई बहरूपिया है यानी उसका पति, पत्नी या माता-पिता में से कोई कहीं चला गया है या उन्हें किडनैप कर लिया गया है और उनकी जगह, उनके जैसा दिखने वाला और उनके जैसा ही व्यवहार करने वाला कोई हमशक्ल आ गया है.
उन्होंने एक उदहारण देते हुए समझाया, ‘इस स्थिति में अगर कोई महिला है तो हो सकता है कि उसे अपनी सगी मां बहरूपिया लगने लगे. उसे लग सकता है कि उसकी मां की तरह दिखने वाला शख्स या औरत बिल्कुल उसकी मां की तरह ही सब कुछ कर रही है, उनकी तरह ही बात कर रही है और दिखती भी वैसी ही है लेकिन महिला को लगेगा कि वह उसकी मां नहीं है. ये कोई और है जो उसे नुकसान पहुंचाने की या मारने की कोशिश कर रहा है या बहरूपिये ने असली मां को किडनैप कर लिया है.’ उन्होंने आगे जानकारी देते हुए कहा कि कई मामलों में देखा गया है कि कैपग्रास के मरीज अपने परिवार के असली सदस्य को ढूंढने के लिए घर से बाहर निकल जाते हैं लेकिन असली को नकली या बहरूपिया समझना उनका भ्रम होता है. कई मामलों में जटिलता और भी बढ़ जाती है.
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फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट भस्मे ने बताया कि स्थिति और गंभीर तब हो जाती है जब मरीज को अपना लाइफ पार्टनर ही बहरूपिया लगने लगे. उन्होंने इस बात को समझाने के लिए एक उदहारण दिया और कहा, ‘मान लीजिए किसी महिला को ये विकार हो और उसे उसका पति ही बहरूपिया लगने लगे तो ऐसा संभव है कि उसे अपने पति (कथित बहरूपिया) से प्यार हो जाए. ऐसी स्थिति में महिला इस गिल्ट में जा सकती है कि उसे किसी और शख्स से प्यार हो गया है. ऐसे में अवसाद बढ़ने लगता है और इस स्थिति में कैपग्रास सिंड्रोम के एपिसोड्स बढ़ जाते हैं.’ गंभीर स्थिति में मरीज को धीरे-धीरे अपने आस-पास के सभी लोग बहरूपिये लगने लगते हैं. यहां तक की अपनी मिरर इमेज भी मरीज को इम्पोस्टर के तौर पर नजर आने लगती है.
इस बीमारी का कारण क्या है?
एक्सपर्ट के मुताबिक ये विकार जेनेटिक है. सिजोफ्रेनिया, ट्रॉमा आदि कैपग्रास को बढ़ावा दे सकते हैं. उनका कहना है कि अगर किसी को गंदा माहौल मिले, माता-पिता में से कोई अल्कोहल का सेवन ज्यादा करता हो या मार-पिटाई वाले माहौल में रह कर सिजोफ्रेनिया ट्रिगर हो सकता है. जो आगे चलकर कैपग्रास का रूप ले सकता है.
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अगर ये जेनेटिक है तो गर्भावस्था के दौरान इसे बच्चे तक पहुंचने से रोका जा सकता है?
इस सवाल का जवाब देते हुए एक्सपर्ट ने बताया कि फिलहाल ऐसा नहीं किया जा सकता. उनका कहना है कि सिजोफ्रेनिया की अगर बात करें तो सिजोफ्रेनिया के जेनेटिक मार्कर्स (Genetic markers) पता करने के लिए बहुत ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि फिलहाल कुछ जीन्स हैं जिनकी पहचान की गई है लेकिन फिर भी इतना पर्याप्त डाटा नहीं है, जो ये जानने में मदद कर सके कि कौनसे जीन्स (Genes) के कारण ऐसा होता है. ऐसा करना अभी इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि ये सब जानने के लिए जिन लोगों को सिजोफ्रेनिया है, उनके ऊपर रिसर्च करने की परमिशन चाहिए होगी, जो अभी मुश्किल है.
कैपग्रास सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
– सोशल एंजायटी
– कोई अपना बहरूपिया लगना.
– कैटाटोनिक बिहेवियर
– फ्रीज हो जाना
– चीजें हाथ से छूट जाना
– ढंग से बात न कर पाना
– कुछ मामलों में वायलेंट हो जाना
हांलाकि, जरूरी नहीं है कि सभी मरीजों में ये सारे लक्षण देखने को मिलें.
मरीज फ्रीज हो जाए तो परिवार क्या करे?
अगर मरीज फ्रीज हो जाए तो धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ें. जल्दी में उनकी तरफ न जाएं वरना मरीज की दिक्कतें बढ़ सकती हैं. आप मरीज के पास जा कर धीरे-धीरे आराम से उन्हें हाथ लगा कर सहलाते हुए शांत करने की कोशिश करें. उनकी मसल्स को सहलाएं. मसल्स रिलैक्सेंट भी दिए जा सकते हैं. आप उन्हें ये महसूस कराएं कि आप उनके साथ हैं और वो बिल्कुल सुरक्षित हैं.

फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट और लेखक अजिंक्य भस्मे (Ajinkya Bhasme) कैपग्रास सिंड्रोम (Capgras SYndrome) समेत मेंटल इलनेस के लिए जागरूकता फैलाते हैं.
मरीज वायलेंट हो जाए तो परिवार क्या करे?
इस स्थिति में मरीज के पास न जाएं. अगर आप शुरुआत से ही उन्हें म्यूजिक थेरिपी (Music Therapy) दे रहे हैं तो संगीत की मदद लें. म्यूजिक थेरेपी मरीज को शांत करने के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है. अगर आप पहले से ही ऐसा नहीं कर रहे हैं तो स्लो और शांत करने वाला मेडिटेशन म्यूजिक लगाएं. मरीज को भड़काएं नहीं. पीड़ित की बात पर हां में हां मिलाते रहें. उसे दूर से अपनी बातों में उलझा कर रखें और तब तक मेडिकल हेल्प के लिए डॉक्टर को बुला लें. अगर मरीज सामान फेंक रहा है तो उसे ऐसा करने दें लेकिन अगर मरीज खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे, उस स्थिति में उसके पास जाएं और उसे कंट्रोल करने की कोशिश करें.
क्या इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है?
एक्सपर्ट के मुताबिक कैपग्रास सिंड्रोम क्यूरेबल नहीं है.
इस बीमारी को कंट्रोल कैसे कर सकते हैं?
वैसे तो ये जेनेटिक है लेकिन अजिंक्य ने बताया कि आप मरीज को अच्छा माहौल दे सकते हैं. म्यूजिक थेरेपी भी फायदेमंद है लेकिन एक्सपर्ट का कहना है कि ये जरूरी नहीं है कि कैपग्रास के सभी मरीजों की कंडिशन एक जैसी ही हो. इसलिए ये जरूरी है कि डॉक्टर से सलाह लें.
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केस स्टडीज में कौन ज्यादा ग्रस्त दिखा?
कैपग्रास से जुड़े ज्यादातर मामलों में बच्चों के मुकाबले बड़े इस बीमारी से ग्रस्त दिखे.
मेंटल इलनेस के लिए जागरूकता फैलाने के लिए क्या कर सकते हैं?
लोगों को फिल्मों, कॉमिक, किताबों आदि के जरिए सही तरीके से मानसिक विकारों को समझाने की कोशिश की जा सकती है. बच्चों को भी अपने मेंटल हेल्थ का ध्यान रखने की अहमियत समझाने लिए वीडियो, कॉमिक्स और कार्टून आदि कारगर साबित हो सकते हैं. बचपन से ही स्कूलों में मेंटल हेल्थ अवेयरनेस के बारे में बताया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि वह अपनी किताबों में मेंटल हेल्थ के बारे में बता कर जागरूकता फैलाने की कोशिश करते हैं.
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