हाईकोर्ट ने ब्रह्मोस इंजीनियर निशांत अग्रवाल को जासूसी केस से बरी किया

ब्रह्मोस एयरोस्पेस के पूर्व इंजीनियर निशांत अग्रवाल के लिए सोमवार का दिन बड़ी राहत लेकर आया. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने जासूसी के मामले में उन्हें सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट कहा कि निशांत अग्रवाल ने “राष्ट्रहित के खिलाफ” कोई काम नहीं किया है. हालांकि, कोर्ट ने उन्हें लापरवाही का दोषी जरूर माना है, लेकिन जासूसी के गंभीर आरोपों से मुक्त कर दिया. यह फैसला जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस प्रवीण पाटिल की खंडपीठ ने सुनाया.
निशांत अग्रवाल को 2018 में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. पिछले साल जून में एक सत्र अदालत ने उन्हें दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया.
हाईकोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा?
जासूसी का सबूत नहीं: कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ऐसा कोई भी सबूत पेश करने में विफल रहा जिससे यह साबित हो सके कि निशांत ने भारत की एकता, अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालने वाला कोई काम किया.
सिर्फ लापरवाही, गद्दारी नहीं: कोर्ट ने निशांत को इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की गंभीर धाराओं से बरी कर दिया. हालांकि, OSA की धारा 5(1)(d) के तहत उन्हें ‘संवेदनशील जानकारी रखने में लापरवाही बरतने’ का दोषी पाया गया. इसके लिए उन्हें 3 साल की सजा सुनाई गई है.
जेल से रिहाई का रास्ता साफ: चूंकि निशांत 2018 से जेल में हैं और वे पहले ही 3 साल से ज्यादा समय जेल में काट चुके हैं, इसलिए कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया है बशर्ते वे किसी अन्य मामले में वांछित न हों.
‘सेजल कपूर’ और नौकरी का सच
इस केस में एक बड़ा आरोप यह था कि निशांत ने फेसबुक पर ‘सेजल कपूर’ और ‘नेहा शर्मा’ नाम के अकाउंट्स (कथित पाकिस्तानी ऑपरेटिव्स) के साथ संवेदनशील जानकारी साझा की. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि चैट रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि बातचीत एक “जॉब इंटरव्यू” के बारे में थी. निशांत ने अपना बायो-डाटा शेयर किया था और ब्रिटेन के एविएशन सेक्टर में नौकरी के लिए एप्लिकेशन डाउनलोड की थी. यह जासूसी का मामला नहीं लगता.
‘यंग साइंटिस्ट’ था निशांत
कोर्ट ने निशांत के बेहतरीन रिकॉर्ड का भी हवाला दिया. निशांत की एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट (ACR) हमेशा ‘बहुत अच्छी’ या ‘उत्कृष्ट’ रही. उन्हें उनके काम के लिए ‘यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड’ दिया गया था. 2014 से 2018 के बीच 70 से 80 मिसाइलों की डिलीवरी करने वाली कोर टीम का वह हिस्सा थे.
कोर्ट ने तर्क दिया कि निशांत के पास ऑफिस में इससे कहीं ज्यादा संवेदनशील और गुप्त डेटा का एक्सेस था. अगर उनकी नीयत खराब होती, तो वे उस डेटा का दुरुपयोग कर सकते थे, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने ऑफिस कंप्यूटर से डेटा के साथ छेड़छाड़ की हो.
हाईकोर्ट ने माना कि निशांत का आचरण कभी भी राष्ट्रहित के खिलाफ नहीं पाया गया. यह फैसला सुरक्षा एजेंसियों की जांच प्रक्रिया और सबूतों की कमी पर भी सवाल खड़े करता है, जिसके कारण एक होनहार इंजीनियर को जासूस बताकर उम्रकैद की सजा दी गई थी.



