Holi is incomplete without the shield, this shield is filled with elephants and horses for the safety of the family – News18 हिंदी
मोहित शर्मा/करौली: होली का त्योहार का हिंदू धर्म में दिवाली के बाद दूसरा सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है. जो हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. रंगों की बौछार करने वाले इस खास पर्व को को देशभर में हर साल बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. देशभर में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां इस त्योहार को लेकर कई अनोखे रिवाज पुराने समय से कायम है. एक ऐसा ही अनोखा रिवाज है राजस्थान के करौली में, यहां होली के पर्व से पहले ही शहर के बाजार मिट्टी और गोबर से बनी ढालों से सज जाते हैं. होली के अवसर पर इस ढाल को मिठाइयों से भरने की करौली में राजशाही जमाने की एक खास परंपरा है.
करौली में हर घर में सुख समृद्धि और वैभव की कामना के लिए यह ढाल भरी जाती है. बिना ढाल भरे यहां होली को अधूरा – सा माना जाता है. इस ढाल को भरने के लिए बाजारों में खांड के हाथी-घोड़ा वाली एक अलग से मिठाई भी बनाई जाती है और होलिका दहन वाले दिन शुभ मुहूर्त में इस ढाल को करौली के घरों में भरा जाता है. इसको भरने के लिए घर की रसोइयों में भी विशेष पकवान तैयार किए जाते हैं.
सिर्फ करौली में ही देखा जा सकता है यह रिवाज
स्थानीय लोगों और बड़े बुजुर्गों का ऐसा कहना है कि होली पर ढाल भरने वाला यह अनोखा रिवाज सिर्फ करौली में ही देखा जा सकता है. होली पर ढाल भरने की यहां पर विशेष परंपरा है, जो राजा शाही जमाने से ही चली आ रही है. होली पर सिर्फ करौली में ही यह ढाल बनती है और यहाँ के घरों में ही भरी जाती है.
देशी रजवाड़ो की पहचान है यह परंपरा
स्थानीय निवासी राकेश गुप्ता का कहना है कि होली के अवसर पर करौली पर में निभाई जाने वाली सैकड़ो साल पुरानी ढाल परंपरा रजवाड़ो की पहचान है. जिस प्रकार से रणभूमि में एक सैनिक की सुरक्षा उसकी ढाल करती है. ठीक उसी प्रकार यह ढाल परिवार की सुरक्षा करती है. युद्ध क्षेत्र में यही ढाल स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करके लाती थी. इसलिए करौली में महिलाएं होली वाले दिन इन ढालों को पूजती हैं. हालांकि करौली में अब इन ढालों को अब कोई अपने बच्चों के नाम पर तो कोई अपने सुहाग के नाम पर भरता है.
करौली के राज्याचार्य पंडित प्रकाश चंद जती के मुताबिक करौली में हर घर में यह ढाल परिवार की मंगलकामना, भाई बहनों के स्वस्थ जीवन के लिए लड्डू, पुआ और खांड के खिलौने हाथी घोड़ा से भरी जाती है. करौली में होली वाले दिन हर घर के बड़े बेटे इन ढाल को परिवार की सुख समृद्धि और वैभव की कामना के लिए शुभ मुहूर्त में भरते हैं.
गोबर-मिट्टी और कागज से होती है तैयार
इस ढाल को तैयार करने वाले भी करौली में बहुत कम कारीगर है. खासकर इस कुंभकार समाज के लोग होली के अवसर पर इन्हें हाथों से बनाते हैं. होली पर इस ढाल की मांग भी करौली में जबरदस्त रहती है. इसे तैयार करने वाले कारीगर रविंद्र कुमार प्रजापत का कहना है कि ढाल परंपरा करौली की एक अपनी प्राचीन परंपरा है और सदियों से हमारे बड़े बुजुर्ग भी इन ढालों को बनाते आ रहे हैं. रविंद्र का कहना है कि इसे बनाने वाले करौली में 10 से 15 ही कारीगर है.
होली पर हजारों की संख्या में यह ढाल बिक जाती है. उनका का कहना है कि यह ढाल बड़ी ही मेहनत के साथ गोबर, मिट्टी, कागज और मुल्तानी मिट्टी से हाथों से तैयार की जाती है. पूरी तरह से एक ढाल को तैयार होने में 3 दिन लग जाते हैं और बाजारों में यह ढाल होली पर ₹20 से लेकर ₹50 तक बिकती है.
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FIRST PUBLISHED : March 24, 2024, 10:58 IST