National

कैसी थी हैदराबाद निजाम की शाही रसोई, 16 तरह की बिरयानी 45 किस्म के कबाब, हर महीने लाखों का खर्च

हाइलाइट्स

शाही रसोई में होता 100 से ज्यादा लोगों का स्टाफहर महीने का किचन का बजट ही होता था लाखों में48 तरह के दोप्याजा तो बनती थी16 तरह की खिचड़ी

प्रत्येक निज़ाम की खानपान की विरासत अलग-अलग थी, जिसमें आमतौर पर फ़ारसी, तुर्की और देशी दक्कन के स्वादों का मिश्रण था. उनकी शाही रसोई में 15 से ज़्यादा तरह की बिरयानी , 18 तरह के पुलाव , 16 तरह की खिचड़ी , 48 तरह के दो-प्याज़ा , 21 तरह के खोरमा , 45 तरह के कबाब और 29 तरह के नान बना करते थे.

निज़ामों के शाही किचन में तरह तरह के उम्दा स्वाद वाले व्यंजन बना करते थे. कहा जाता है कि उनका रसोईघर भारतीय रजवाड़ों में बेमिसाल था. जहां फारसी, तुर्की और साउथ के व्यंजनों के साथ तरह तरह के प्रयोग हुए. नए-नए तरह के व्यंजन विकसित हुआ.

चैटजीपीटी की सर्च के अनुसार, हैदराबाद के निज़ाम की शाही रसोई भव्यता, वैभव और बेमिसाल पाककला की मिसाल थी. यह न केवल शाही परिवार के लिए बल्कि महल में मौजूद कर्मचारियों, अधिकारियों और मेहमानों के बड़े समूह के लिए भी भोजन उपलब्ध कराती थी.

आजादी से पहले मोटा था किचन का बजटनिज़ाम की रसोई आजादी से पहले के भारत में सबसे ज़्यादा ख़र्च किए जाने वाले शाही रसोई में एक थी. अपने चरम पर इस रसोई का वार्षिक बजट लाखों रुपये में था, जो उस समय के लिए लिहाज से चौंका देने वाली रकम थी. ऐसा कहा जाता है कि निज़ाम की रसोई इतनी ज़्यादा ख़र्चीली थी कि भोजन और दावतों का खर्च अक्सर अन्य प्रशासनिक लागतों से ज़्यादा होता था.


हैदराबाद निजाम की शाही रसोई देश के सारे रजवाड़ों में शायद सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा कर्मचारियों वाली थी. (Image generated by Leonardo AI)

एक समय के भोजन में रोज 40 व्यंजन बनते थेनिज़ाम और उनके दरबार के लिए रोज़ाना का भोजन कोई साधारण बात नहीं थी. विदेशी मसाले, दुर्लभ सामग्री और आयातित खाद्य वस्तुएं आम थीं. विशेष रसोइये विस्तृत मेनू तैयार करते थे. अक्सर एक ही भोजन के लिए 40 व्यंजन तक शामिल होते थे.

बिरयानी से लेकर हलीम और कबाब तकरसोई में मुगलई, तुर्की, अरबी और फारसी पाककला परंपराओं का मिश्रण था, जो अब हैदराबादी व्यंजन के रूप में जाना जाता है. बिरयानी, हलीम, शिकमपुर कबाब, क़ुबानी का मीठा और डबल का मीठा जैसे व्यंजन नियमित रूप से बनाए जाते थे.

कई रेसिपी अब भी सीक्रेटनिजाम की शाही रसोई में बनने वाली कई डिशेज की रेसिपी किसी गुप्त रहस्य से कम नहीं थी. वो केवल उन शाही रसोइयों के पास होती थी, जो निजाम की रसोई में पीढ़ियों से काम करते चले आ रहे थे. कई व्यंजन विशेष रूप से निज़ाम के लिए बनाए गए थे, जिसमें मसालों और स्वादों को इस तरह से मिलाया गया था कि वे फेमस बन गए. इन्हें नवाब के महल से बाहर शायद ही कोई बना पाता था.

कितनी थी शाही रसोई के कर्मचारियों की संख्याकहा जाता है कि देश में तब नवाब की रसोई में जितना बड़ा स्टाफ था, वैसा शायद ही किसी राजा या नवाब के पास रहा हो. उनके किचन में सैकड़ों लोग काम करते थे, जिनमें ये लोग शामिल थे-विशेषज्ञ शेफ़ (खानसामा): विभिन्न व्यंजनों के विशेषज्ञ.सूस शेफ़ और सहायक: सामग्री तैयार करने और मसाला लगाने के लिए ज़िम्मेदार.बेकर्स और डेज़र्ट विशेषज्ञ: ब्रेड, पेस्ट्री और डेज़र्ट बनाते थे.फ़ूड टेस्टर: सुनिश्चित करते थे कि व्यंजन निज़ाम के उच्च मानकों को पूरा करें और ज़हर से सुरक्षित हों.रसद कर्मचारी: ताजे मांस, दुर्लभ मसालों और आयातित वस्तुओं के लिए जीवित पशुओं सहित सामग्री की खरीद का प्रबंधन करते थे.सर्विस और सुपरवाइजर :अत्यंत सटीकता के साथ भोजन परोसने का समन्वय करते थेरसोई सहायक : जो रसोई से जुड़े तमाम कामों में हाथ बंटाते थे.

बड़े पैमाने पर होती थीं दावतेंनिज़ाम की रसोई त्योहारों, दावतों और राजकीय कार्यक्रमों के दौरान हज़ारों लोगों के लिए भोजन तैयार कर सकती थी. ऐसे अवसरों पर, अस्थायी कर्मचारियों को भी नियुक्त किया जाता था.

रोज कितने लोगों के लिए रायल किचन बनाती थी खानासामान्य दिनों में भी रसोई में सैकड़ों लोगों को भोजन परोसा जाता था, क्योंकि निज़ाम के महल में अधिकारियों, नौकरों और परिवार के सदस्यों का एक बड़ा दल रहता था.


निजाम को ना केवल कुलचे पसंद थे बल्कि ये उनके राज्य के झंडे पर भी उकेरे गए थे.

किचन में कैसे उपकरण और साधन थेरसोई में थोक में खाना पकाने के लिए बड़े पैमाने पर तांबे और पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता था. बर्तनों पर अक्सर शाही चिह्न उकेरे जाते थे. कुछ पर चांदी या सोना जड़ा होता था.निज़ाम की रसोई भोजन तैयार करने की जगह से कहीं ज़्यादा थी; इसने एक ऐसी विरासत छोड़ी जो आज भी भारतीय व्यंजनों को प्रभावित करती है.

वो व्यंजन जो निजाम बहुत पसंद करते थे, जो उनके किचन में ही सबसे पहले ईजाद हुए या फिर बेहतर किए गए या बाहर खाए जाते थे लेकिन निजाम की कैंटीन में वो काफी बेहतर अंदाज में बनाए गए. ये व्यंजन अब पूरे देश में जबरदस्त हिट हैं.

1. कुलचाकुलचा एक प्रिय चपटी रोटी है, जिसका ऐतिहासिक महत्व आसफ जाही राजवंश से जुड़ा हुआ है. किंवदंती है कि पहले निज़ाम, मीर कमर-उद-दीन को हैदराबाद के शासक बनने की अपनी यात्रा शुरू करने से पहले सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन ने सात कुलचे परोसे थे. संत ने भविष्यवाणी की थी कि मीर कमर-उद-दीन का वंश सात पीढ़ियों तक शासन करेगा, प्रत्येक कुलचे के लिए एक पीढ़ी. इस भविष्यवाणी और रोटी के प्रति प्रेम के सम्मान में, आसफ जाही राजवंश ने कुलचे को अपने झंडे पर प्रतीक के रूप में अपनाया.


हैदराबाद के निजाम को हलीम खासतौर पर पसंद थी, जो यमन के एक अरब सुल्तान द्वारा हैदराबाद में लाई गई थी.

2. हलीमहलीम मूल रूप से एक अरबी व्यंजन है, जिसे छठे निज़ाम, मीर महबूब अली खान के शासन के दौरान अरब प्रवासियों द्वारा हैदराबाद में पेश किया गया था. इसे सातवें निज़ाम, मीर उस्मान अली खान के शासनकाल में अपनाया गया और हैदराबादी व्यंजनों में शामिल किया गया. यमन के एक अरब प्रमुख सुल्तान सैफ नवाज़ जंग बहादुर ने शहर में हलीम को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि उन्होंने इस व्यंजन को निज़ाम के दरबार में पेश किया. यह व्यंजन जल्द ही राजघरानों का पसंदीदा बन गया. ये अब हैदराबाद में मुख्य व्यंजन बना हुआ है.

3. पत्थर का गोश्तकिंवदंती है कि पत्थर का गोश्त 19वीं सदी में मीर महबूब अली खान के शिकार अभियानों में से एक के दौरान जरूरत के अनुसार बनाया गया. अभियान के दौरान शाही रसोइयों के पास शिकार किए गए मेमने को पकाने के लिए उचित उपकरण नहीं थे. उन्होंने एक गर्म ग्रेनाइट स्लैब का उपयोग करने का फैसला किया. स्लैब को चारकोल पर गर्म किया गया. उस पर धीरे-धीरे पकाने के लिए मैरीनेट किए गए मेमने को रखा गया. जो व्यंजन बना उसे ‘पत्थर पर मांस’ कहा गया. निजाम को ये इतना पसंद आया कि उनके रोज के मेनू में शामिल कर लिया.


पत्थर का गोश्त एक शिकार अभियान के दौरान जंगल में निजाम के खानसामों द्वारा बनाया गया, जो निजाम को इतना पसंद आ गया कि उनके मेनू में नियमित रूप से शामिल हो गया.

4. उस्मानिया बिस्किटउस्मानिया बिस्किट का हैदराबाद के शाही परिवार से खास संबंध है. इस बिस्किट के बारे में सबसे लोकप्रिय कहानी यह है कि इसे उस्मानिया जनरल अस्पताल के शाही रसोई में मरीजों के लिए आहार पूरक के रूप में बनाया गया था. एक और कहानी बताती है कि इसे मीर उस्मान अली खान की लालसा को संतुष्ट करने के लिए बनाया गया था, जो एक ऐसा नाश्ता चाहते थे जिसमें मीठा और नमकीन का सही संतुलन हो.

5. जौजी का हलवाजौजी का हलवा हैदराबाद में 19वीं सदी की शुरुआत में मुहम्मद हुसैन द्वारा पेश किया गया, जो एक तुर्की आप्रवासी थे, जिन्होंने नामपल्ली में अपनी दुकान खोली थी. उनके बनाए हलवे ने मीर उस्मान अली खान का ध्यान आकर्षित किया, जिन्हें स्वादिष्ट मिठाइयों का शौक था. वे हलवे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हुसैन की दुकान का नाम तुर्की के राजा हमीद के नाम पर रख दिया , जो निज़ाम के रिश्तेदार थे.

Tags: Community kitchen, Food, Food Stories, Hyderabad, Sweet Dishes

FIRST PUBLISHED : November 18, 2024, 15:46 IST

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj