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मैं तो इसे रोज खा सकता हूं…क्‍या हो अगर प्रतिदिन खाया जाए मोमो? शरीर में आते हैं ये बदलाव, जानिए एक्‍सपर्ट की राय

Last Updated:November 26, 2025, 09:03 IST

शाम का वक्त था, ऑफिस से लौटते हुए अर्जुन की नजर फिर उसी मोमो वाले ठेले पर टिक गई. हर दिन की तरह आज भी स्टीम से उठती खुशबू ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. “मैं तो इसे रोज खा सकता हूं,” वह हंसते हुए बोला. लेकिन उसे शायद नहीं पता कि ये छोटे-छोटे मोमो धीरे-धीरे उसके शरीर में क्‍या बड़ा बदलाव ला रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि रोजाना मोमो खाना स्वाद के पीछे छिपा ऐसा जाल है, जो लंबे समय में पाचन, दिल और शुगर बैलेंस तक को नुकसान पहुंचा सकता है.

Eating Momo Side Effects: मेट्रो शहरों में मोमो सबसे फेमस स्‍ट्रीट फूड बन चुका है. नेपाल और तिब्‍बत से आया यह स्‍नैक आज दिल्‍ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्‍सा बन गया है. स्टीम्‍ड, फ्राइड, अचारी, अफगानी, तंदूरी या पेरी- पेरी, वेरिएशन इतने हैं कि कई लोग इसे रोज खाने की आदत बना लेते हैं. लेकिन क्‍या रोज मोमो खाना सच में सही है? विशेषज्ञ इस पर गंभीर चेतावनी देते हैं.

इंडियन एक्‍सप्रेस ने जब आयुर्वेदिक डॉक्‍टर और न्यूट्रिशनिस्‍ट डॉ. अंजना कालिया (Bloom Clinix) से बात की तो उन्‍होंने बताया कि मोमो हाई कार्ब लेकिन लो फाइबर और लो प्रोटीन वाली डिश है. वह बताती हैं कि रोजाना मोमो खाने से पाचन धीमा हो जाता है और शरीर में सूजन, गैस तथा थकान जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं. उनके मुताबिक, मोमो के साथ मिलने वाली चटनी में मौजूद सोडियम और अनहेल्दी फैट पाचन तंत्र और दिल की सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं.

डॉ. कालिया कहती हैं कि नियमित रूप से मोमो खाने से एसिडिटी, ब्लोटिंग और कब्‍ज जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं.इसमें मौजूद मैदा में फाइबर बेहद कम होता है, जिससे आंतों की मूवमेंट धीमी होती है और पाचन बिगड़ता है. इतना ही नहीं, मोमो पोषण की तुलना में कैलोरी अधिक देते हैं, इसलिए धीरे–धीरे वजन भी बढ़ने लगता है.

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विशेषज्ञों के अनुसार, चटनी और फिलिंग में मौजूद हाई सोडियम और ट्रांस-फैट ब्‍लड प्रेशर बढ़ा सकते हैं और कोलेस्‍ट्रॉल लेवल को खराब कर सकते हैं. खासकर फ्राइड मोमो में तेल की मात्रा अधिक होती है, जिससे LDL यानी ‘खराब’ कोलेस्‍ट्रॉल बढ़ सकता है. लंबे समय में यह दिल की सेहत के लिए खतरा बन सकता है.

मोमो में रिफाइन कार्ब्स की मात्रा अधिक होती है, जिससे ब्‍लड शुगर तेजी से बढ़ता और घटता है. डॉ. कालिया बताती हैं कि यह पैटर्न इंसुलिन सेंसिटिविटी को कम कर सकता है और लॉन्ग टर्म में वजन व शुगर बैलेंस बिगाड़ सकता है. यही वजह है कि डायबिटीज के मरीजों को मोमो सीमित मात्रा में ही खाने की सलाह दी जाती है.

हालांकि स्टीम्‍ड मोमो फ्राइड वरायटी की तुलना में बेहतर माने जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर वे भी मैदा से बने हैं तो इन्हें रोज खाना हेल्दी नहीं है. असली फर्क मोमो की सामग्री, उसकी फिलिंग और पोर्शन साइज तय करता है कि वह कितना हेल्दी या अनहेल्दी होगा.

हाल के दिनों में बाजरा, ज्वार, गेहूं या मल्टीग्रेन से बने मोमो भी लोकप्रिय हो रहे हैं. ये फाइबर, विटामिन और मिनरल्स का बेहतर स्रोत होते हैं. लेकिन डॉ. कालिया चेतावनी देती हैं कि सबसे हेल्दी मोमो भी रोज खाने पर शरीर को जरूरी दूसरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते, इसलिए संतुलन सबसे जरूरी है.

इसलिए एक्‍सपर्ट यह सलाह देते हैं कि मोमो को रोज की आदत न बनाएं, बल्कि हफ्ते में 1–2 बार ही खाएं. कोशिश करें कि स्टीम्‍ड मोमो लें और फ्राइड से बचें. साथ में सूप या सलाद शामिल करें ताकि पेट भरा रहे और ओवरईटिंग से बचा जा सके. अगर आप घर पर होल ग्रेन, सब्जियों और लीन प्रोटीन वाली फिलिंग के साथ मोमो बनाते हैं, तो यह सबसे हेल्दी विकल्प साबित होगा.

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November 26, 2025, 09:03 IST

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