Ideology of one person is not the ideology of whole society: Kapil Dev | कुछ चुनिंदा लोगों की सेाच व मानसिकता पूरे समाज की मानसिकता नहीं मानी जा सकती: कपिल देव
उन्होंने आगे कहा, “समाज में किसी एक व्यक्ति की सोच या विचारधारा को समूचे समाज की विचारधारा नहीं समझना चाहिये, कुछ चुनिंदा लोगों की सेाच व मानसिकता पूरे समाज की मानसिकता नहीं मानी जा सकती। इस विषय पर जो लोग भी बोल रहे हैं वह उनकी निजी राय हो सकती है, पूरे समाज से उनका कोई संबध नहीं है।”
जीवन के यादगार पलों के बारे में पूछे जाने पर कपिल देव ने कहा, “भारत के लिए खेलना ही उनके लिये यादगार है और जीवन का सबसे बड़ा आनंद भी वही है।” जीवन के संघर्षों को लेकर उन्होंने कहा, “यदि भारत के लिए ना खेल पाता तो यह जीवन संघर्ष लगता लेकिन भारत के लिए खेलने के बाद जीवन संघर्ष नहीं बल्कि कामयाब और असान लगता है। क्रिकेट मेरे लिये संघर्ष नहीं बल्कि एक ख़ूबसूरत यात्रा थी। जीवन संघर्ष तो वास्तव में उन लोगों के लिए है जो पटरी पर सामान लगा कर बेच रहे हैं और उन्हें यह चिंता है कि घर में आज खाना बन पायेगा या नहीं।”
जब उनसे पूछा गया कि क्रिकेट में आने का विचार कैसे आया, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “बचपन में पढ़ाई में मन नहीं लगता था और स्कूल से क्रिकेट खेलने के लिये पढ़ाई से हर हफ़्ते 3 दिन की छुटटी मिलती थी इसलिये क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया। जब उनसे जीवन में पाए गए सफ़लता का राज़ पूछा गया तो उन्होंने कहा, “उन्होंने कहा कि जीवन में किसी की भी सफ़लता का राज़ काम के प्रति समर्पण, उत्साह व जोश होता है और सभी को अपने जीवन में अपने काम के प्रति समर्पण व उत्साह को बनाये रखना चाहिए तभी सफलता के मुकाम पर पहुंचा जा सकता है।”
West Bengal: सीएम ममता बनर्जी को गाली देने के आरोप में कोलकाता पुलिस ने YouTuber को किया गिरफ्तार
अपने हीरो और आदर्श को लेकर कपिल देव ने कहा, “समय के साथ साथ हीरो बदलते रहना चाहिए। मेरा बचपन में कक्षा का मानीटर हीरो होता था, उसके बाद जीवन में जैसे-जैसे नए लोग मिलते गए हीरो भी नए बनते गए।” उन्होंने कहा कि जो केवल किसी एक को ही अपना हीरो मानकर रूक जाता है उसकी सफ़लता भी वहीं रूक जाती है।
क्रिकेट खेलने को लेकर माता पिता से प्रोत्साहन मिलने के सवाल पर उन्होंने स्पष्ट कहा कि माता पिता से उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला लेकिन इसमें माता पिता की ग़लती नहीं क्योंकि उस समय खेल में या संगीत आदि अन्य गतिविधियों से जीवन नहीं बनता था और सभी माता पिता अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने के बजाय पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा करना चाहते थे। मगर आज स्थितियां बदल गई हैं आज इन खेलों के प्रति आकर्षण व पैसा बढ़ा है जिससे माता पिता भी अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं।