अगर घर में नहीं है सुख शांति तो श्राद्ध पक्ष में करें यह काम, जानें कब से शुरू हैं पितृपक्ष-no happiness-peace in-house then do this work during Shraddha Paksha, know when does Pitru Paksha start

जयपुर. हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार व्रत-त्योहार आते है. हिंदुओं में मनुष्य के गर्भधारण से लेकर मृत्यु के बाद तक कई संस्कार होते हैं. अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है. व्यक्ति के मरने के बाद भी भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है. जिसे हम श्राद्ध कहते हैं. वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है. लेकिन, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन की अमावस्या तक पूरे पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है.
पंडित घनश्याम शर्मा ने बताया कि इस बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 17 सितंबर को है. इस दिन से पितृपक्ष आरंभ हो जाएगा. पैतृक अमावस्या पितृ विसर्जन 2 अक्टूबर को होगा जिसे महाल या पर्व के रूप में मनाया जाएगा. इस दौरान षष्ठी व सप्तमी का श्राद्ध 23 सितंबर को होगा. वहीं 28 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं होगा.
पितरों की आत्मा शांति के लिए ये करेंधर्म विशेषज्ञ चंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि श्रद्धा के समय भगवान की पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं. इसको लेकर मान्यता है कि यदि विधि-विधान के अनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर वस्त्र दान देना चाहिए. इससे घर में सुख शांति व प्रसन्नता बनी रहती है व वंश वृद्धि भी होती है.
पिंडदान से धन-धान्य की होती है प्राप्तिचंद्रप्रकाश ढांढण ने बताया कि पितृपक्ष में पितरों को आस रहती है कि उनके पुत्र व पौत्रादि सहित आदि पिंडदान कर उन्हें संतुष्ट करेंगे. पितरों का तर्पण तिल, जल और कुश से किया जाता है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ को पिंडदान करने वाला हर व्यक्ति दीर्घायु, पुत्रपौत्राद, यश स्वर्ग, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन और धन-धान्य को प्राप्त करता है. पितृ कृपा से उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कैसे निर्धारित होता है श्राद्ध का दिनजिस तिथि को पिता, माता या दोनों का निधन हुआ है, पितृपक्ष में उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए. इस दौरान पूर्वज अपने परिजनों के समीप विभिन्न रूपों में आते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं. परिजन से संतुष्ट होने पर पूर्वज आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या यानी 2 अक्टूबर को पूरे होंगे.
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FIRST PUBLISHED : September 16, 2024, 19:15 IST