Rajasthan

In the 17th century Kota court, people used to play Holi in different ways for several days in royal splendor. – News18 हिंदी

शक्ति सिंह/कोटा राज. रियासत काल के समय में अलग तरह से होली खेली जाती थी. कोटा में रामसिंह दृतीय के समय से उम्मेद सिंह दृतीय के शासन काल त, घोड़ो, नावड़े, व हाथियों की होली खेली जाती थी. सबसे प्रमुख होली, हाथियों की होली होती थी, होली के दिन, कोटा महाराव रामसिंह दृतीय, कोटा गढ़ के जलेबी चौक से हाथियों पर बैठ कर अपने लवाजमे के साथ पुरे ठाठ बाठ के साथ लाडपुरा त होली खेलते हुए जाते थे. महाराव के साथ, बम्बूलिया, कोयला, प्लाईथा, के जागीरदार, सामनत, छोटे देबता, बड़े देवता भी, हाथियों पर बैठकर होली खेलते हुए जाते थे. इस आयोजन में एक मशीन होती थी जिससे केसुले के फूलो के रंग से होली पिचकारी से महाराव खेलते हुए लाडपुरा तक जाते थे.

इतिहासकार फिरोज अहमद ने बताया कि रियासत काल के समय होली का रंग अलग ही देखने को मिलता था. उस समय की होली का चित्रण कोटा गढ़ के महलों में देखने को मिलता है. होली के अवसर पर अश्लील गीतों का भी चलन था जो यहां किन्नरों और पिछड़ी जाति की महिलाओं द्वारा गाए जाते थे. महाराव उम्मेद सिंह के शासनकाल में होली का त्योहार बहुत ही राजसी ठाठ बाट के साथ मनाया जाता था और बहुत आकर्षक होता था. महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के शासनकाल में फाल्गुन सुदी पूर्णिमा के दिन जलेब चौक में राज परिवार द्वारा होलिका दहन किया जाता था. धुलेंडी के दिन नगर में राख और गुलाल से जनता होली खेलती थी. केसुला के फूलों से तैयार रंग से भी राजपरिवार में होली खेली जाती थी.

नावड़ो की होली
नावड़ा की होली का आयोजन चैत्र बुद्धि 3 को होता था. आज के दिन महाराव पतंगी पोशाक में सजकर नावड़े की होली में हिस्सा लेते थे और अपने दरबारी और नगर की जनता के साथ मशीन द्वारा संचालित फव्वारे से होली खेलते थे. यह सुंदर आयोजन चंबल नदी में नावों में बैठकर होता था. जिस नावड़े में महाराव उम्मेद सिंह तख्त पर विराजते थे उसको चित्रकारों द्वारा सजाया जाता था. दरबार के नावड़े में उनके भाई बंधु और जागीरदार साथ होते थे. दरबार के नावड़े के पीछे अन्य नावों में गायक और संगीत बजाने वाले कलाकार और नक्काल और पलटनों के सिपाही होते थे. नदी के दोनों किनारों पर नगर की जनता यह आयोजन देखने के लिए इकट्ठी रहती थी. दरबार नावड़े से दोनों किनारों पर खड़ी जनता पर फव्वारे से रंग डालते हुए आगे बढ़ते जाते थे. यह नज़ारा बड़ा ही अद्भुत होता था.

हाथियों की होली
होली के कार्यक्रमों में हाथियों की होली सबसे सुंदर मनोरंजन का कार्यक्रम था. यह आयोजन बुद चेत्र चार को संपन्न होता था. आज के दिन दरबार उम्मेद सिंह गढ़ में पधारते थे और यहां आकर पतंगी पोशाक और लपेटा धारण कर तैयार होते थे. दिन के 12:00 बजे गढ़ में स्थित चंद्र महल में जाकर अपनी महारानी और रानी के संग होली खेलते थे. उसके पश्चात बोलसरी की ड्योढ़ी से बाहर आकर गढ़ के जलेब चौक में आते थे. आज के दिन राज्य के लगभग 10-11 हाथी जो सजे हुए होते थे गढ़ के चौक में खड़े रहते थे. दरबार की तरफ से जिन जागीरदारों, भाई बंधुओं को हाथियों पर बैठने का हुक्म होता था वही हाथियों पर बैठते थे.

होली का नाहड़
यह भी एक सुंदर होली का ही कार्यक्रम था इस दिन भी महाराव साहिब रंग गुलाल की होली खेलते थे. गढ़ में सुबह व शाम का दरीखाना होता था. इस दरीखाने में जिन को बुलाया जाता था वो दरबार को नज़र करते थे तब दरबार उनको बीड़ा देते थे. आज के दिन शाम के समय जलेब चौक में जेठी अपनी कुश्ती कला का प्रदर्शन करते थे. नक्कारखाने के सामने एक झंडा गाड़ा जाता था जिसे पुरुष उखाड़ते थे. उस समय महिलाएं पुरुषों पर कोड़ा मारती थी. इसी दिन किन्नरों का सरदार महिलाओं को साथ लेकर अश्लील गीत गाता था. इसके पश्चात महाराव साहिब की ओर से उसको गुड़ की भेली भेंट की जाती थी.

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