India-Pakistan Border Barmer Has a Unique Village called-the-village-of-bells-people-have-been-making-bells-for-5-generations

बाड़मेर: किसी गांव से कोई राहगीर गुजरे और उसे घंटियों की आवाज सुनाई दे, तो वह यह सोचेगा कि किसी मंदिर में पूजा-अर्चना हो रही होगी, लेकिन अगर किसी गांव में इन घंटियों की आवाज सुबह से लेकर देर रात तक लगातार बजती रहे तो…सुनकर आपको हैरानी जरूर हुई होगी. बाड़मेर के सियाणी गांव में 50 से 60 परिवारों के सैकड़ों लोगों का पुश्तैनी काम ही घंटियां बनाने का है.
घंटियों वाला गांव
भारत- पाकिस्तान की सीमा पर बसे बाड़मेर में एक ऐसा भी गांव है जहां दिनभर घंटियां बजती रहती हैं और इसी वजह से लोग इसे घंटियों वाला गांव भी कहते हैं. यह गांव है बाड़मेर का सियाणी. बाड़मेर के सियाणी में 50 से 60 परिवारों के सैकड़ों लोगों का पुश्तैनी काम ही घंटियां बनाने का है, जिससे इस गांव की हर गली, हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर घंटियां बजती रहती हैं.
पांचवीं पीढ़ी भी लगी है इस काम में
सैकड़ों बरस पहले, चित्तौड़ से पलायन कर यहां आ बसे गाडोलिया लुहारों के परिवारों ने घंटियां बनाने का काम शुरू किया, जोकि उनकी पांचवीं पीढ़ी तक बदस्तूर जारी है. लोहे, पीतल, जस्ते और तांबे के मिश्रण से इन घंटियों का निर्माण करने में बड़ी मेहनत लगती है. हालांकि, स्थानीय स्तर पर इन्हें इनकी घंटियों का कोई खरीरदार नहीं मिलता, लेकिन इनकी घंटियां पुष्कर पशु मेले, नागौर पशु मेले, बीकानेर ऊंट उत्सव, तिलवाड़ा पशु मेले सहित देश कई पशु मेलों में जबरदस्त डिमांड पर रहती है.
उम्रदराज आंखें तराशती हैं घंटियां
सियाणी में करीब 60 भट्टियों में लोहा व कई अन्य धातुएं लाल होता नजर आता है. वहीं उम्रदराज आंखें, घंटियों को तराशती नजर आती हैं. घंटियां बनाने वाले बुजुर्ग भीमाराम बताते है कि वह बरसों से घंटियां बनाने का काम रहे है. उनके गांव की घंटियां प्रदेशभर के मेलों में पहुंचती हैं. वहीं युवा स्वरूपाराम के मुताबिक आज उनकी पांचवीं पीढ़ी भी घंटियां बनाने का काम कर रही है. इसमें काफी मेहनत लगती है, लेकिन वह अपने बड़े बुजुर्गों के साथ मेलों में जाकर घंटियां बेचते हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 13:19 IST