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भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल: स्थायित्व और प्रोफेशनलिज्म का प्रतीक

नई दिल्ली: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी NSA किसी भी देश के लिए बड़ा अहम पद होता है. आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से जुड़े मसले कैसे हल करने हैं, सरकारों को NSA ही बताते हैं. इतने महत्वपूर्ण पद पर कौन बैठा है, कितने समय से बैठा है और क्या कर रहा है, इससे संबंधित देश के सिक्‍योरिटी अपरेटस का बड़ा क्लियर आइडिया मिलता है. इस नजरिए से भारत और पाकिस्तान को देखें तो फर्क साफ जाहिर हो जाता है. पड़ोसी मुल्क में दो साल से भी अधिक समय से NSA का पद खाली पड़ा था. अब वहां सेना ने NSA की कुर्सी पर भी अपना बंदा बिठा दिया है. दूसरी ओर, अमेरिका में महज 100 दिन में NSA को पद छोड़ना पड़ा. फिर आता है भारत, जहां बीते 11 सालों से अजीत डोभाल पूरी शिद्दत से NSA की जिम्मेदारियां निभा रहे हैं.

ये तीन तस्वीरें इन देशों के सिस्टम की चाल ही नहीं, सोच की भी पहचान हैं. अमेरिका जहां वाइट हाउस के भीतर वफादारी की राजनीति में टॉप पोस्ट दांव पर लगा देता है. वहीं पाकिस्तान में सिविलियन शासन को किनारे कर फौज कूटनीति और खुफिया डोमेन पर काबिज है. इसके उलट, भारत का मॉडल स्थायित्व और प्रोफेशनल अप्रोच की मिसाल है. जहां डोभाल जैसे पेशेवर अधिकारियों के जरिए सिस्टम में निरंतरता बनी रहती है.

ट्रंप ने की वाल्ट्ज की छुट्टी

2025 के अमेरिका में उथल-पुथल जारी है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों के भीतर ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्ट्ज को हटा दिया. दरअसल वाल्ट्ज पर ट्रंप का भरोसा डगमगाने लगा था. वाल्ट्ज ने यमन में अमेरिकी सैन्य ऑपरेशन से जुड़ी एक ग्रुप चैट में एक पत्रकार को गलती से जोड़ लिया था. इस एक चूक ने ट्रंप को नाराज कर दिया और वाल्ट्ज को जाना पड़ा.

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ये पहली बार नहीं हुआ. ट्रंप के पहले कार्यकाल में छह NSA, चार डिफेंस सेक्रेटरी और दो सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बदले गए थे. यह सवाल तो वाजिब है कि क्या अमेरिका जैसी सुपरपावर भी राष्ट्रीय सुरक्षा नेतृत्व में स्थायित्व नहीं ला पा रही?

अब नजर भारत पर डालिए. 2014 से नेशनल सिक्योरिटी का एक ही चेहरा है, अजीत डोभाल. वह पिछले 11 साल से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं. डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद लोगों में शामिल हैं. जिस स्थायित्व की कमी वॉशिंगटन में है, वह नई दिल्ली में एक मिसाल बन चुका है.

अजीत डोभाल: चेहरा एक, काम अनेक

डोभाल भारतीय सुरक्षा नीति के आर्किटेक्ट माने जाते हैं. वो 1968 बैच के आईपीएस अफसर हैं. केरल कैडर से आते हैं. खांटी जासूस हैं और आज देश के हर बड़े रणनीतिक फैसले में शामिल रहते हैं. वह कीर्ति चक्र जैसे सर्वोच्च शांति वीरता सम्मान पाने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं.

जब ट्रंप का पहला कार्यकाल चल रहा था, तब भारत में डोभाल को हर छमाही किसी नए अमेरिकी NSA से तालमेल बिठाना पड़ता था. माइकल फ्लिन, एचआर मैकमास्टर, जॉन बोल्टन, रॉबर्ट ओ’ब्रायन और दो एक्टिंग NSA… सबके साथ डोभाल को काम करना पड़ा. बावजूद इसके, अमेरिका का भारत को सपोर्ट लगातार बना रहा. यही फर्क है स्थायित्व और अस्थिरता में.

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पाकिस्तान के तो क्या कहने!

अब बात पाकिस्तान की. वहां दो साल से NSA का पद खाली पड़ा था. लेकिन जैसे ही पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक स्ट्राइक की, PAK को याद आया कि अरे, अपना तो कोई NSA ही नहीं है! आनन-फानन में लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद असीम मलिक को NSA भी बना दिया गया. दिलचस्प ये है कि मलिक इस वक्त ISI के डायरेक्टर जनरल भी हैं. यानी अब पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी सीधे फौज के हाथ में है. NSA अब प्रधानमंत्री को नहीं, आर्मी चीफ असीम मुनीर को रिपोर्ट करेगा.

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मलिक की नियुक्ति भारत को इशारा

ये बदलाव सिर्फ प्रशासनिक नहीं है, कूटनीतिक भी है. भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी बैकचैनल बातचीत हुई, वो NSA स्तर पर ही हुई. 2016 में जनरल (रिटायर्ड) नासिर जंजुआ और डोभाल की मुलाकात बैंकॉक में हुई थी. 2020-21 में डोभाल और पाकिस्तान के NSA मोईद यूसुफ के बीच कई गुप्त वार्ताएं हुई थीं. अब जब पाक NSA खुद फौज का अफसर है, तो यह भारत को इशारा है कि बात करनी है, तो सीधे GHQ रावलपिंडी से करनी होगी, इस्लामाबाद से नहीं.

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