Rajasthan

Jaipur BJP will make Sachin Pilot an issue to persuade angry Gujjars in assembly elections 2023 Gujjars defeated BJP to make Sachin CM

हाइलाइट्स

प्रदेश के 12 जिलों में प्रत्याशियों की जीत-हार पर खासा असर डालते हैं 6 फीसदी गुर्जर मतदाता
जानिए, तीन बड़ी वजह जिनके चलते गुर्जर मतदाता बीजेपी से छिटक करके कांग्रेस के पाले में चले गए

(एच.मलिक)

टोंक. गुर्जर बेल्ट ने पिछले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में सचिन पायलट को सीएम बनाने के लिए कांग्रेस को न सिर्फ एकमुश्त वोट दिए, बल्कि बीजेपी (BJP) का सूपड़ा भी साफ कर दिया. लेकिन, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद गहलोत वर्सेज पायलट (Gehlot Vs Pilot) की सियासी लड़ाई में सचिन मुख्यमंत्री नहीं बने. नाराज गुर्जरों (Gurjar community) को मनाने के लिए बीजेपी इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट को मुद्दा बनाएगी. वह जनता को बताएगी कि कांग्रेस (Congress) सिर्फ गुर्जरों का वोट लेती है, जब उनको अहम ओहदा देने की नौबत आती है तो पलट जाती है. अब देखने वाली बात ये होगी कि विधानसभा चुनाव 2023 में ऊंट किस करवट बैठता है. गुर्जर किसके खाते में वोट करते हैं. प्रदेश के कुछ जिलों में प्रत्याशियों की जीत-हार का फैसला गुर्जर ही करते हैं. इतना ही नहीं, सूबे की सरकार बनाने-बचाने में भी गुर्जरों का अहम रोल रहता है.

इस साल होने वाले चुनाव के लिए दोनों पार्टियों की नजर गुर्जर समुदाय के मतदाताओं पर है. प्रदेश की करीब 40 सीटों पर गुर्जरों का प्रभाव माना जाता है. कट्टर विरोधी मीणा समाज के कांग्रेस समर्थक होने के चलते गुर्जरों को परंपरागत रूप से बीजेपी समर्थक माना जाता है. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की वजह से गुर्जर समुदाय का रुख कांग्रेस पार्टी की ओर हुआ. गुर्जर वोटरों ने कांग्रेस को वोट सचिन के मुख्यमंत्री बनने की आस में दिया. लेकिन कांग्रेस ने उनको सिर्फ डिप्टी सीएम बनाया और वह भी अंदरुनी लड़ाई में छिन गया.

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गुर्जर वोटरों ने बीजेपी का किया सूपड़ा साफ
गुर्जरों की एकजुटता का असर पिछले चुनाव में नजर आया. बीजेपी ने गुर्जर समाज के 9 लोगों को प्रत्याशी बनाया, जबकि कांग्रेस ने इस समाज के 12 प्रत्याशियों को टिकट दिया. गुर्जर समाज से 8 विधायक जीत कर सदन में पहुंचे. इनमें 7 प्रत्याशी कांग्रेस के और बसपा के जोगिन्दर सिंह अवाना रहे. इस चुनाव में गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया. बीजेपी के नौ गुर्जर प्रत्याशियों में से एक भी नहीं जीत पाया. मांडल से कालूलाल गुर्जर, खेतड़ी से दाताराम गुर्जर, देवली उनियारा से राजेंद्र गुर्जर,कोटा साउथ से प्रहलाद गुंजल, नगर से अनिता सिंह, बाड़ी से जसवंत सिंह, डीग से जवाहर सिंह, गंगापुर सीट से मानसिंह को बीजेपी प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन सभी हार गए.

अब ‘गुर्जरों की विरोधी कांग्रेस’ की रणनीति
दरअसल, पिछले विधानसभा चुनावों में हार के बाद के बीजेपी के मंथन में यह भी सामने आया कि उसके पास कोई बड़ा और असरदार गुर्जर नेता नहीं है, जबकि कांग्रेस के पास गुर्जरों के बड़े चहरे के रूप में प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट थे. तब बीजेपी ने गुर्जरों के बडे़ चेहरे की तलाश की, जो आरक्षण आंदोलन के नेता कर्नल किरोड़ी बैंसला पर खत्म हुई. इसलिए बैंसला को पार्टी में शामिल किया गया. बैंसला का अब निधन हो चुका है. बीजेपी के पास पायलट की टक्कर का कोई प्रदेश स्तरीय गुर्जर नेता नहीं है. इसलिए ‘गुर्जरों की विरोधी कांग्रेस’ की रणनीति पर अमल किया जाएगा.

लोकसभा चुनाव में गुर्जरों ने बीजेपी को जिताया
राजस्थान के 12 जिलों और 11 संसदीय सीटों में गुर्जर समाज का प्रभाव देखने को मिलता है. भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनू जिलों को गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. गुर्जरों ने 2018 में सचिन के लिए कांग्रेस को वोट दिया, लेकिन पायलट को सीएम न बनाने के वे खफा हो गए. इसके बाद 2019 में हुए संसदीय चुनाव में गुर्जर प्रभाव वाली सभी 11 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. ये सीटें थीं- टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण, कोटा, बारां-झालावाड़, धौलपुर-करौली, दौसा, झूंझुनू और अलवर।

गुर्जरों का है इन 40 सीटों पर बड़ा प्रभाव
टोंक व सवाई माधोपुर जिले में टोंक, निवाई, देवली उनियारा, मालपुरा, सवाई माधोपुर, गंगापुर, खंडार, भीलवाड़ा जिले में आसींद, मांडल, शाहपुरा, जहाजपुर, सहाड़ा, मांडलगढ़, अजमेर जिले में पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, जयपुर जिले में दूदू, कोटपूतली, जमवारामगढ़, विराटनगर, दौसा में बांदीकुई, दौसा, लालसोट, सिकराय, महवा, कोटा में पीपल्दा, बूंदी में केशोरायपाटन, हिंडौली, खानपुरा, झुंझुनूं में खेतड़ी, भरतपुर में नगर, कामां, बयाना, धौलपुर में बाड़ी, बसेड़ी, करौली में टोडाभीम, सपोटरा, बारां-झालावाड़ में मनोहरथाना, अलवर में बानसूर व थानागाजी सीट पर गुर्जर समाज का बड़ा प्रभाव है.

तीन वजह…इसलिए गुर्जर वोटर बीजेपी से छिटक गए

  1. गुर्जर आरक्षण आंदोलन में मौतों पर नाराजगी
    डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से गुर्जर आरक्षण का विवाद प्रदेश में चल रहा है. आरक्षण आंदोलन के दौरान बीजेपी कार्यकाल में ही सबसे ज्यादा गुर्जर गोलियों के शिकार बने. बीजेपी ने गुर्जर समाज को 5% आरक्षण देने का वादा तो किया, लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया. ऐसे में गुर्जर समाज को उम्मीद है कि पायलट के नेतृत्व में समाज को न्याय मिलेगा.
  2. सचिन पायलट की गुर्जर समाज में सर्वाधिक पकड़
    बीजेपी के पास गुर्जरों का प्रदेश स्तर का कोई बड़ा नेता नहीं है. दूसरी ओर कांग्रेस में पायलट की छवि साफ-सुथरी और युवा नेता की हैं. वह सांसद से लेकर केंद्र में मंत्री और प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं. इसलिए उनकी पकड़ गुर्जर समाज में सबसे ज्यादा है. यह भी बड़ी वजह बनी, जिसके चलते पिछले चुनाव में कांग्रेस के सबसे अधिक गुर्जर विधायक जीते.
  3. बीजेपी को वोट नहीं डालने का कौल लिया गया
    प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सचिन पायलट ने गुर्जर बेल्ट के साथ प्रदेशभर में खूब मेहनत की. इसी का परिणाम रहा कि वो सुस्त पड़ी कांग्रेस को न सिर्फ लड़ाई में वापस लाए, बल्कि जिता भी दिया. पायलट चुनाव के दौरान ही सीएम पद की रेस में शामिल हो गए थे. इसलिए गुर्जरों ने एक स्वर में कांग्रेस को जिताने का फैसला लिया. गुर्जरों ने तय किया कि उनके क्षेत्र में अगर कोई कांग्रेस के टिकट पर मीणा भी प्रत्याशी लड़ेगा तो उसे वोट डाले जाएंगे, लेकिन बीजेपी को वोट नहीं डालने का कौल लिया गया. ताकि सचिन पायलट सीएम पद के लिए मजबूती से अपना पक्ष रख सकें.

Tags: Assembly election, Tonk news

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