Religion

स्वयं के विकास और प्रगति का पथ है आध्यात्मिकता | spirituality leads you to personal growth and well being

आध्यात्मिकता स्वानुभव आधारित एक ऐसा पंथ है जो ध्यान,चिंतन और अभ्यास पर बल देता है। इसे स्व के साथ जुड़ने की खोज के रूप में देखा जाता है। किसी भी बनी-बनाई परिपाटी पर चलने की बजाय सहज और स्वाभाविक तरीके से प्रकृति और ब्रह्मांडीय सत्ता के दर्शन करना इसके अंतर्गत आता आता है। एक अध्यात्मवादी मूर्तिपूजक नहीं होता या वह आत्मा के अस्तित्व में विश्वास या अविश्वास से नही जुड़ा है। स्प्रिचुएलिटी में वे विश्वास व प्रथाएॅं आती हैं जो किसी खास ढर्रों में नही बंधी हैं बल्कि बिना किसी औपचारिकताओं और नियमों से उनका जन्म हुआ है।

Published: December 22, 2021 04:57:07 pm

आध्यात्मिकता एक ऐसी अवधारणा है जो ‘‘इंटिग्रल थ्योरी ऑफ कॉन्शियसनेस‘‘ के सूत्र पर चलती है। अध्यात्मवादी पदार्थ को नहीं बल्कि एक यूनिवर्सल चेतना को सारे अस्तित्व का मूल स्रोत मानते हैं। वे मानते हैं कि उर्जा और ज्ञान का अंनत स्रोत एक आकाशीय फील्ड यानि क्वांटम वैक्यूम है और इसी से सभी वस्तुओं का नर्माण हुआ है।

spirituality leads you to personal growth and well being

स्वयं के विकास और प्रगति का पथ है आध्यात्मिकता

धर्म और आध्यात्मिकता को समझना जरूरी-
सांस्कृतिक इतिहासकार और योगी विलियम इरविन थॉम्पसन कहते हैं ‘‘धर्म अध्यात्म के समान नहीं बल्कि सभ्यता में आध्यात्मिकता धर्म का रूप ग्रहण करती है।‘‘ हालांकि अमेरिका की 24 प्रतिशत जनसंख्या स्वयं को धार्मिक, पर आध्यात्मिक नहीं के रूप में देखती है। हालांकि दोनों को इस आधार पर अलग किया जाता है कि धर्म बाहय जबकि स्प्रिचुएलिटी भीतर की ओर खोज है।
परंपरागत रूप से धर्म के एक अनुभव के रूप में ही स्प्रिचुएलिटी को देखा जाता है। परंतु धर्म-निरपेक्षता के विकास ने इसके स्वरूप को और अधिक विस्तृत किया है। धर्मनिरपेक्ष आध्यात्मिकता नए विचारों, व्यापक दृष्टिकोण, व्यक्तिगत विकास और पारंपरिक धर्म सिंद्धातों की अपेक्षा अधिक उदार है।

ब्रहमांडीय उर्जा है आध्यात्मिकता का स्रोत
वर्तमान में यह माना जा रहा है कि एक सर्वव्यापी बल/शक्ति/उर्जा/भावना है जो आत्म-दर्शन और आत्म साक्षात्कार से जुड़ी है। अभ्यास , चिंतन और अभ्यास के माध्यम से आंतरिक जीवन का निरिक्षण और विकास करना ही आध्यात्मिक होना है।
शरीर में ही विराट का दर्शन
ज्ञानीजन कहते हैं कि ‘‘शून्य में विराट समाया है और विराट में भी शून्य है। गोरखनाथ की प्रसिद्ध उक्ति भी यही कहती है ‘जो पिंड में है वही ब्रहमांड में है। इसलिए आध्यात्मिकता की खोज अपने शरीर के भीतर ही की जाती हैं। ईश्वर के विराट स्वरूप को इस शरीर के भीतर ही समझा व जाना जा सकता है।

नास्तिक भी मानते हैं आध्यात्मिकता का महत्व
दुनिया के प्रवाह में कार्य-कारण का संबंध मानने वाले नास्तिक भी मानते हैं कि यह पूरा विश्व किसी ना किसी प्रकार से आपस में जुड़ा हुआ है। वे व्यक्ति के विचारों , भावनाओं और शब्दों को एक क्रम में देखते हैं।

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