J&K पर कब्जे की थी चाहत, पठानकोट से शुरू हुई साजिश की शुरूआत, ‘बैटल ऑफ बसंतर’ में खाक हुए नापाक मंसूबे
Battle of Basantar: पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को मजबूत कर रही भारतीय सेना अब पाकिस्तान के आंखों में किरकिरी बन चुकी थी. पाकिस्तान को अच्छी तरह से पता था कि भारतीय सेना के होते हुए बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को दबा पाना नामुमकिन है. पूर्वी पाकिस्तान से भारतीय सेना को हटाने के लिए पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी क्षेत्र से मोर्चा खोल दिया. साजिश के तहत, पाक सेना ने राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट और पंजाब के पठानकोट से हमला बोल दिया.
पाकिस्तानी सेना ने रामगढ़ होते हुए जैसलमेर पर कब्जा करने के मंसूबों के साथ राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर हमला किया था. पाकिस्तान ने दूसरा मोर्चा पठानकोट की तरफ से खोला था. इस हमले के पीछे उसकी मंशा थी कि वह शकरगढ़ के टीलों से होते हुए पठानकोट को अपने कब्जे में ले लेगा. पठानकोट पर उसका कब्जा होते ही जम्मू और कश्मीर पहुंचने वाली सैन्य सहायता और रसद आपूर्ति रुक जाएगी और वह बेहद आसानी से जम्मू और कश्मीर पर कब्जा कर अपनी दशकों पुरानी हसरत पूरी कर लेगा.
‘बैटल ऑफ बसंतर’ के जरिए पाक सेना को मिला जवाब
इधर, पाकिस्तान के मंसूबों के बारे में भारतीय सेना को भनक लग चुकी थी. लिहाजा, भारतीय सेना ने शकरगढ़ से महज 23 मील दूर स्थिति पठानकोट को बेस बनाकर सेना जुटाने का काम तेजी से शुरू कर दिया था. साथ ही, पाक सेना शकरगढ़ तक पहुंचे, इससे पहले भारतीय सेना पाकिस्तान के सियालकोट बेस को अपने कब्जे में ले ले. सभी मोर्चों पर तैयारियां पूरी करने के बाद भारतीय सेना पाकिस्तान की तरह से पहल होने का इंतजार करने लगी और यह इंतजार 3 दिसंबर को खत्म हो गया.
पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 की रात युद्ध का आगाज कर दिया. 3 दिसंबर की शाम को लगभग 5:40 बजे पाकिस्तान एयरफोर्स ने उत्तर प्रदेश के आगरा सहित सहित उत्तर-पश्चिमी भारत की 11 एयर फील्ड्स पर हवाई हमला कर दिया. वहीं, राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर पाकिस्तान के 2 हजार जवानों ने 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड के साथ हमला बोल दिया. वहीं दूसरी तरफ, पाक सेना के अपने नापाक मंसूबे लेकर पठानकोट की तरफ कूच कर चुकी थी. पाक सेना सियालकोट बेस से 100 किमी और शकरगढ़ से महज 45 किमी की दूरी पर थी.
शकरगढ़ पर कब्जा कर सियालकोट के करीब पहुंची भारतीय सेना
पाकिस्तानी सेना आगे बढ़ती इससे पहले भारतीय सेना ने जरपाल क्षेत्र स्थिति पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर हमला कर दिया. इसी के साथ, 4 दिसंबर 1971 को ‘बैटल ऑफ बसंतर’ (बसंतर की लड़ाई) की शुरूआत हो गई. देखते ही देखते भारतीय जांबाजों ने दुश्मन को धूल चटा शकरगढ़ पर कब्जा कर लिया और सियालकोट के बेहद करीब पहुंच गए. सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होने के चलते भारतीय सेना ने शकरगढ़ में अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली. वहीं, शकरगढ़ का हाथ से निकलना पाक सेना के लिए शर्मिंदगी का कारण बन चुका था.
पाकिस्तानी सेना शकरगढ़ को वापस लेने के लिए 5 बार हमला किया, लेकिन हर बार उन्हें भारतीय जांबाजों के सामने मुंह की खानी पड़ी. 16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में पाक सेना के सरेंडर कर दिया और उसी के साथ पश्चिमी मोर्चो पर भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहा युद्ध भी खत्म हो गया. चूंकि, पाकिस्तानी सेना द्वारा बिना शर्त समर्पण किया था, लिहाजा, भारत ने युद्ध में जीत पूरी जमीन पाकिस्तान को वापस कर दी थी.
बैटल ऑफ बसंतर में दिखी भारतीय जांबाजों के वीरता की अद्भुत मिसाल
बैटल ऑफ बसंतर में टैंक से टैंक के बीच युद्ध लड़ा गया था. इस युद्ध में भारतीय सेना ने अपने चार टैंक खोकर पाक सेना के 51 टैंक को जमींदोज कर दिया था. बैटल ऑफ बसंतर में हर भारतीय जांबाज ने पराक्रम और वीरता की नई इबारत लिखी. बैटल ऑफ बसंतर में शामिल होने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल और मेजर होशियार सिंह दहिया को भारतीय सेना के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. वहीं, मेजर विजय रतन, लेफ्टिनेंट कर्नल वेद प्रकाश घई, लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल राज मोहन वोहरा और हवलदार थॉमस फिलिप्स को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वहीं, लेफ्टिनेंट कर्नल बीटी पंडित, कैप्टन आरएन गुप्ता और नायब सूबेदार दोरई स्वामी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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FIRST PUBLISHED : December 15, 2023, 23:48 IST