Rajasthan

Karwa Chauth Special : मिट्टी के करवा के बिना क्यों अधूरा है करवा चौथ, जानें इसका महत्व

निशा राठौड़/उदयपुर. हिन्दू धर्म में करवा चौथ का व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं. इस दिन रात्रि में चांद की पूजा करने का भी महत्व है. महिलाएं चांद की पूजा करने के बाद ही व्रत को तोड़ती हैं. इस साल करवा चौथ का पर्व 1 नवंबर को है. ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के दिन पूजा में मिट्टी के करवे का प्रयोग करना चाहिए. यह बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है.

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करवा है पंच तत्वों का प्रतीक

ज्योतिषाचार्य डॉ. अलकनंदा शर्मा ने बताया की करवा पंच तत्वों का प्रतीक माना जाता है. मिट्टी के करवा में पांच तत्व होते हैं, जैसे कि जल, मिट्टी, अग्नि, आकाश, वायु. जिससे व्यक्ति का शरीर भी बना है. करवा में मिट्टी और पानी मिलाया जाता है. पानी में मिट्टी को गलाकर करवा बनाया जाता है. यह भूमि और जल तत्व का प्रतीक है. उसके बाद इसे धूप और हवा से सुखाकर तैयार किया जाता है पश्चात आग में पकाया जाता है. हमारी संस्कृति में पानी को परम ब्रह्म माना गया है. सभी जीवों की उत्पत्ति यहीं से हुई है.

इसलिए मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर ही पति अपनी पत्नी का व्रत खोलें. यह पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर दांपत्य जीवन में सुखी बनाने की कामना करते हैं. साथ ही मिट्टी के बर्तन से पानी पीने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

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