Rajasthan

जानें क्या है मेवाड़ राजघराने की रक्ततिलक परंपरा, क्यों रक्त से तिलक कर देते हैं महाराणा की उपाधि?

उदयपुर : मेवाड़ राजवंश में महाराणा की उपाधि बेहद खास मानी जाती है, जिसे रक्त तिलक की प्राचीन परंपरा के तहत प्रदान किया जाता है. हाल ही में चित्तौड़गढ़ में महाराणा विक्रमादित्य के बाद उनके पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ का परंपरागत तरीके से राजतिलक किया गया. इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में सैकड़ों राजपूत समाज के लोग उपस्थित रहे.

रक्त तिलक की परंपरा महाराणा उदय सिंह की मृत्यु के बाद शुरू हुई. उस समय, उनके छोटे पुत्र जयमल ने जबरन राजगद्दी पर कब्जा कर लिया था. तब जागीरदारों ने गोगुंदा के पास एक बावड़ी के किनारे महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया. पूजा सामग्री उपलब्ध न होने के कारण राणा चुंडा के वंशज ने अपने अंगूठे से रक्त निकालकर तिलक किया. यही से इस परंपरा की शुरुआत हुई.

मेवाड़ के 77वें महाराणा का रक्त तिलकइतिहासकार और पूर्व राजघराने के नजदीकी डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती के अनुसार, 452 साल पुरानी इस परंपरा को निभाते हुए सलूंबर के पूर्व राजपरिवार के रावत देवव्रत सिंह ने विश्वराज सिंह मेवाड़ का रक्त तिलक किया. इससे पहले फरवरी 1572 में सलूंबर के तत्कालीन रावत ने कुंवर प्रताप को भी इसी विधि से महाराणा घोषित किया था.

रक्त तिलक मेवाड़ की गहरी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपरा का प्रतीक है. यह केवल राणा चुंडा के वंशजों द्वारा ही किया जाता है, जो मेवाड़ के महाराणाओं को वैधता प्रदान करता है. इस परंपरा ने राजवंश की अस्मिता और एकता को सदियों से कायम रखा है.

Tags: Bihar News, Local18, Udaipur news

FIRST PUBLISHED : November 28, 2024, 08:30 IST

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