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World Environment Day-#NAval daga# | World Environment Day- पर्यावरण संरक्षण का पर्याय हैं नवल डागा

हमारे आसपास कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जिन्हें कुछ हटकर करने का जुनून होता है और इसी के सहारे वह अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। ऐसे ही एक इंसान है नवल डागा। राजधानी जयपुर के मालवीय नगर इलाके में रहने वाले नवल डागा पर्यावरण संरक्षण का पर्याय बन चुके हैं।

जयपुर

Published: June 05, 2022 09:17:39 pm

विश्व पर्यावरण दिवस आज
44 साल से कर रहे पर्यावरण सरंक्षण
पर्यावरण की पाठशाला है नवल डागा का घर
पर्यावरण संरक्षण का पर्याय हैं डागा दम्पत्ति
राखी हजेला जयपुर
हमारे आसपास कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जिन्हें कुछ हटकर करने का जुनून होता है और इसी के सहारे वह अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। ऐसे ही एक इंसान है नवल डागा। राजधानी जयपुर के मालवीय नगर इलाके में रहने वाले नवल डागा पर्यावरण संरक्षण का पर्याय बन चुके हैं। 13 जुलाई 1977 से पेड़, पानी और वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रहे डागा अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग आने वाली वस्तुओं पर पर्यावरण से जुड़े, मुद्दों के मुहावरे, दोहे और लोकोक्तियों को अनूठे अंदाज में प्रिंट करके उनको आमजन तक पहुंचाने और आमजन को पर्यावरण बचाने के लिए पे्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए वह पानी, पेड़, वन, वन्यजीव संरक्षण से जुड़े तकरीबन 6822 प्रकार के आइटम बनाते हैं और इन आइटमों पर 14 भारतीय भाषाओं में पर्यावरण संरक्षण का संदेश लिखा होता है। खास बात हैं कि यह संदेश वह खुद लिखते हैं और एक संदेश कभी रिपीट नहीं होता। उनकी पत्नी शारदा डागा भी इस मुहिम में लगातार उनका साथ दे रही हैं।
प्रकृति प्रेम का अनूठा उदाहरण है घर
01 दिसंबर 1956 को जयपुर में जन्मे नवल डागा का घर ही प्रकृति प्रेम का अनूठा उदाहरण है। उनका पूरा घर गिलोय और जीवंती की बेलों से ढक रखा है। गर्मियों में जब बाहर का तापमान 45 डिग्री होता है, तो उनके घर के अंदर 36 डिग्री। आईएएस और आईएफएस की तैयारी करने वाले युवा और कोचिंग देने वाले उनके यहां टीचर्स उनके यहां आते हैं।
लकड़ी के सामान के लिए नहीं कटती लकड़ी
उनके यहां तैयार होने वाले लकड़ी वाले प्रॉडक्ट्स के लिए वह कभी पेड़ नहीं काटने देते। कबाड़ के लकड़ी, कांच, प्लास्टिक, कागज, गत्ता, फ्लेक्स, विनाइल आदि से काम चला लेते हैं। इनके यहां बनने वाले लकड़ी के आइटम्स में कहीं भी कोई कील प्रयोग नहीं की जाती। डागा का कहना है कि हम नहीं चाहते कि आपके जीवन में कहीं भी कोई कील, कोई कांटा या शूल हो। इतना ही नहीं अब तक साढ़े पांच सौ से अधिक किताबें लिखकर खुद ही उसका प्रकाशन भी कर चुके हैं। इन पुस्तकों की खास बात यह है कि यह रीसाइकिल पेपर से तैयार की गई हैं। नवल डागा के मुताबिक उनके पिता हमेशा अपनी जेब में पेन, पेपर और पोस्टकार्ड रखे रहते थे। रोजाना वह कम से कम दस पोस्टकार्ड लिख नहीं लेत, अन्न.जल ग्रहण नहीं करते थे। डागा के पास आज भी पिता के ऐसे साढ़े छत्तीस हजार से अधिक पोस्टकार्ड संग्रहित हैं। उनकी ज्यादातर पुस्तकें पर्यावरण विषय पर हैं।
रिसाइकिल फूलों से तैयार होता है शरबत
घर आने वाले मेहमानों को उनके यहां रीसाइकिल किए हुए फूलों का शरबत पिलाया जाता है। गोविंद देव जी के मंदिर में चढऩे वाले फूलों को खरीद कर उन्हें डागा रीसाइकिल करते हैं और उस फूल से ताजा शरबत तैयार किया जाता है। इतना ही नहीं घर पर 395 गमले हैं जिन्हें ड्रिप के जरिए 9 मिनट में पानी पिलाया जाता है। घर की छत पर भिंडी, तुरई, करेला, घीया, गवार, टिंडा, टमाटर, बैंगन, मिर्च, पालक, खरबूजा, ककड़ी, कोला, सेम बलोर, फ्रेंच बीन, एक्सप्रेस बीन, चंदलिया जैसी सब्जियों की खेती की जाती है। छत पर बंदर नहीं आने इसके लिए कपड़े की विशेष डिजाइन की फील तैयार की गई है। 20 बाई 50 साइज का प्लाट है जिसमें 776 स्कवायर फीट में निर्माण है। छत पर 10 फीट ऊंचा लोहे का एक स्ट्रक्चर बनाया गया है जिसमें 100 मीटर लंबी एलईडी लाइट लगाई गई है। हर गमले पर नम्बर है, गमले के नीचे उसी नम्बर का टब है और सभी गमलों और टबों पर दोहे हैं।
कपड़े पर बुनाई कर लिखते हैं संदेश
इनके यहां चौदह भारतीय भाषाओं में तैयार होने वाले साढ़े छह हजार से अधिक आइटमों में से लगभग तीन सौ प्रकार के कुशन कवर हैं। लगभग साढ़े पांच सौ गौत्रीय आइटम हैं। एक हजार से अधिक तरह की खुद की रचित श्रद्धांजलियां हैं। साढ़े बारह सौ से अधिक प्रकार के गिफ्ट आइटम हैं, जिन्हे वह केवल अपने यहां आने वाले लोगों को भेंट करते हैं। उनके इस स्वउत्पादित वस्तुओं में सौ तरह के झोले, साठ तरह के चैक बुक कवर, गुल्लक, साड़ी के फॉल, मोबाइल स्टैंड, पेन स्टैंड, चाबी स्टैंड, गिलास, ट्रे, टाइल्स, छाते, राखियां, खटिया बुक्स, अख़बार, तकिया, पंखी,पेपर वेट, ट्रैवलिंग बेग, चाय प्लेट,गाय को रोटी खिलाने का कवर, पर्स, झाड़ू, कमर बेल्ट, माचिस कवर, फाइल कवर आदि हैं। डागा कपड़े पर बुनाई कर उसपर भी पर्यावरण संबंधी संदेश लिखते हैं। नवल और शारदा डागा का कहना है कि आप भले ही दो साल तक पौधे नहीं लगाओ लेकिन जो पहले से लगे हैं उन्हें भी बचा लिया तो पर्यावरण संरक्षण अपने आप ही हो जाएगा। वही पानी बचाने पर जोर देते हुए उनका कहना है कि कहीं पानी के लिए पानी नहीं है तो कहीं पानी की बरबादी होती है। आरओ से निकलने वाले पानी का भी उपयोग किया जा सकता है। यदि हम ऐसा करते हैं तो पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगे।

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