Rajasthan

18 साल की उम्र में खो दिए दोनों हाथ, खूब ताने सहे फिर पैरों से मिट्टी में लिखना सीखा, अब बन गए मैनेजर

कोटा: जब हौसले बुलंद हो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकती है. कोटा के देवकीनंदन मिलखानी की कहानी यही बताती है. वो हाथ नहीं, पैरों से लिखते हैं. पैरों से ही कंप्यूटर भी चला लेते हैं. 18 साल की उम्र में करंट लगने की वजह से वो अपने हाथ गंवा बैठे, लेकिन उनका बुलंद हौसला आज भी कायम है.

पैरों से लिखने वाले देवकीनंदन की कहानी देवकीनंदन मिलखानी की जिंदगी में 18 साल की उम्र तक सबकुछ ठीक चल रहा था. फिर उन्हें करंट लग गया. उन्होंने लोकल 18 से बात करते हुए बताया, ‘करंट की चपेट में आने से मैंने अपने दोनों हाथ खो दिए. इसके बाद पशु चराने का काम शुरू किया. लोगों ने ताने भी मारे कि तुमसे कुछ नहीं हो सकता. लेकिन उसके बाद भी मैंने हार नहीं मानी.’

पैरों से लिखना किया शुरू देवकीनंदन स्कूल में एक टॉपर स्टूडेंट थे और एक बड़ा अधिकारी बनना चाहते थे. एक्सीडेंट के बाद उत्तराखंड में पशु चराने का काम करने लगे थे. तब जंगल में अपने पैरों से अंगूठे और उंगलियों के बीच मिट्टी में लिखने लगे. पेड़ की टहनी से लगातार अभ्यास करते रहे. नियमित प्रैक्टिस के बाद एक दिन ऐसा आया जब वह पैरों से लिखने में पूरी तरह निपुण हो गए. उसके बाद पेन से कागज में लिखने की प्रैक्टिस की और उसमें भी महारत हासिल की. एक साल में पूरी तरह से लिखना सीख गए. अपने मजबूत हौसलों से आज भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति में मैनेजर के पद पर तैनात हैं. सभी काम पैरों से बखूबी करते हैं.

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कई मुश्किलों को किया पार देवकीनंदन ने पहली बार अपने भाई को एक लेटर भी लिखा था. जिसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें फिर से पढ़ाई शुरू करनी है. उन्होंने 1886 में अपनी एसएससी की शिक्षा पूरी की. देवकीनंदन ने बताया, ‘भगवान महावीर समिति का कैंप उत्तराखंड के रानीखेत में लगा हुआ था. मैं भी वहां गया था. लेकिन मेरा हाथ कंधे से कटा हुआ होने की वजह से मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ. मैंने संस्था के फाउंडर को अपनी स्थिति के बारे में बताया कि मैं पांव पर खड़ा होना चाहता हूं और मैं किसी पर डिपेंड नहीं रहना चाहता. मैंने बताया कि मैं अपने पैरों से लिख सकता हूं. जब मैंने लिखकर दिखाया तो लोग पैर से लिखने में पैसे देने लगे. तो मैंने कहा मुझे पैसों की आवश्यकता नहीं है. मुझे जॉब चाहिए.’

खुद कर लेते हैं सारे कामदेवकीनंदन अब भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति में मैनेजर के पद पर तैनात हैं. डॉक्यूमेंट से जुड़े काम करते हैं. अपने पैरों की उंगलियों से पेन पकड़कर अच्छे से लिख लेते हैं और साथ ही कंप्यूटर भी चलाते हैं. जमीन पर एक लकड़ी का तख्त रखकर सभी काम करते हैं. इसी के साथ कागजों में स्टेपलर करना, फाइल में कागज लगाना-निकालना, ऐसे सभी काम वो अच्छे से कर लेते हैं. उनका कहना है कि 38 साल हो गए. वो ऑफिस का सारा काम खुद कर रहे हैं.

Tags: Inspiring story, Kota news, Local18, Yoddha

FIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 12:49 IST

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