मन पतंग, श्वास डोर! यदि आप सांस लेना जानते तो कभी दवा की जरूरत नहीं पड़ती! | – News in Hindi

केवल एक स्वस्थ कली ही खिल सकती है. उसी प्रकार केवल एक स्वस्थ व्यक्ति ही सफल हो सकता है. तो स्वस्थ होना क्या है? यदि आपके भीतर कड़ापन, बेचैनी या असंतोष है, तो आप स्वस्थ नहीं हैं. यदि मन अस्थिर और अशांत है, तो आप मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं. यदि भावनाएं असंतुलित हैं, तो आप भावनात्मक रूप से स्वस्थ नहीं हैं.
पूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने के लिए मन को शांत, स्थिर और भावनाओं को कोमल रखना आवश्यक है. पूर्ण स्वास्थ्य हमारे भीतर से बाहर और बाहर से भीतर निरंतर प्रवाहित होना चाहिए. संस्कृत में स्व या आत्मा में स्थित होने को स्वास्थ्य कहते हैं.
जब कोई रोग उत्पन्न होता है, तो वह पहले विचार रूप में आता है, फिर ध्वनि रूप में, फिर प्रकाश रूप में आभामंडल (Aura) में प्रकट होता है, और अंततः शरीर में दिखाई देता है.
तो हम अपने भीतर अच्छा स्वास्थ्य कैसे लाएं?
सबसे पहले स्वयं देखें – क्या आप सचमुच स्वस्थ हैं? स्वास्थ्य का अर्थ है, रोग-मुक्त शरीर, कंपन-मुक्त श्वास, तनाव-मुक्त मन, संकोच-मुक्त बुद्धि, आसक्ति-मुक्त स्मृति, समावेशी अहंकार और दुःख से मुक्त आत्मा. समग्र स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, श्वास और ध्यान का अभ्यास आवश्यक है.
श्वास ही जीवन है. हमारा जीवन हमारी श्वास में है. यदि कोई श्वास नहीं ले रहा, तो इसका अर्थ है- वहां जीवन नहीं है. ध्यान, प्राणायाम और योगिक अभ्यासों का मुख्य उद्देश्य प्राण या जीवन ऊर्जा को बढ़ाना है. दरअसल प्राण भावनाओं से भी अधिक सूक्ष्म होता है. जब हम सूक्ष्म स्तर पर ध्यान देते हैं, तो स्थूल स्वतः ठीक हो जाता है. जब आप श्वास को संभालते हैं, तो शरीर स्वस्थ हो जाता है.
यदि आपकी श्वास गरम, हिलती-डुलती, असमान या असहज है, तो यह रोग का संकेत है. श्वास का पैटर्न शरीर में उपस्थित विषाक्त तत्त्वों और संभावित रोगों की सूचना देता है. हमारी श्वास में अनेक रहस्य छिपे हैं. क्योंकि मन की हर भावना के साथ श्वास की एक विशेष लय जुड़ी होती है. हर लय शरीर के किसी विशेष भाग को प्रभावित करती है. जरा ध्यान से देखें. जब हम प्रसन्न होते हैं तो विस्तार का अनुभव होता है और जब दुखी होते हैं तो संकुचन का. हम इन अनुभूतियों को तो महसूस करते हैं, पर उनके बीच संबंध को नहीं पहचानते. इसलिए जब आप सीधे मन को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हों, तो श्वास के माध्यम से मन को नियंत्रित किया जा सकता है.
क्या आपने कभी गिना है कि एक मिनट में आप कितनी बार श्वास लेते हैं?श्वास जीवन की पहली और अंतिम क्रिया है. पूरे जीवन भर हम श्वास लेते रहते हैं, पर उस पर ध्यान नहीं देते. शरीर की लगभग 90 प्रतिशत अशुद्धियाँ श्वास से बाहर निकलती हैं, क्योंकि हम 24 घंटे श्वास लेते हैं, पर अपनी फेफड़ों की क्षमता का केवल 30 प्रतिशत ही उपयोग करते हैं. एक मिनट में हम लगभग सोलह-सत्रह बार श्वास लेते हैं. यदि आप चिंतित हैं तो यह बीस तक बढ़ सकती है, यदि आप क्रोध या अत्यधिक तनाव में हैं तो यह पच्चीस तक जा सकती है. शांत और प्रसन्न होने पर यह लगभग 10 रहती है और ध्यानावस्था में केवल दो-तीन श्वास प्रति मिनट. गहरा ध्यान श्वास की गति को अत्यंत धीमा कर देता है.
मन पतंग के समान है और श्वास उसकी डोर. पतंग जितनी ऊंची उड़ानी हो, डोर उतनी लंबी चाहिए. यदि आप श्वास पर ध्यान देना सीख लें, तो किसी औषधि की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. श्वास अपार ऊर्जा प्रदान करती है और प्राणशक्ति को बढ़ाती है. ऊर्जा के चार स्रोत बताए गए हैं- भोजन, नींद, प्राणायाम (सुदर्शन क्रिया) और ध्यान में बिताए गए क्षण. इन सबका संतुलन समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. सुदर्शन क्रिया के लयबद्ध श्वास-प्रवाह से शरीर की विषाक्तता घटती है और मन में शांति बढ़ती है. शोध से यह प्रमाणित हुआ है कि सुदर्शन क्रिया रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है.
श्वास और मन पर ध्यान देने से हमारा प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) मजबूत होता है. यदि आप शिशुओं को देखें, तो पाएंगे कि वे अत्यंत संतुलित तरीके से श्वास लेते हैं. वे पूरे शरीर से श्वास लेते हैं – जब वे श्वास अंदर लेते हैं, तो पेट बाहर आता है, और जब श्वास छोड़ते हैं, तो पेट भीतर चला जाता है. पर जैसे-जैसे हम तनावग्रस्त होते हैं, यह प्रक्रिया उल्टी हो जाती है. ऐसी बातें कोई सिखाता नहीं, बस सजगता चाहिए. पर हमारा मन इतना व्यस्त, विचारों, निर्णयों और प्रतिक्रियाओं से भरा होता है कि हम प्रकृति की इन सूक्ष्म बातों को देख ही नहीं पाते.
इसलिए साल में एक बार, एक सप्ताह अपने लिए निकालें, जैसे आप कार की सर्विसिंग कराते हैं. उस समय प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहें, सूर्योदय के साथ उठें, हल्का और आवश्यक मात्रा में भोजन करें, व्यायाम करें, योग, प्राणायाम, कुछ समय मौन रखें और प्रकृति का आनंद लें. जब हम प्रकृति से जुड़ते हैं, तो हमारी पूरी प्रणाली पुनर्जीवित हो जाती है. हम ऊर्जावान, उत्साही और प्रफुल्लित अनुभव करते हैं. सबसे महत्त्वपूर्ण है – जीवन में अधिक प्रसन्न रहना. चीजों को बहुत गंभीरता से न लें.
थोड़ा सा आत्मज्ञान, अपने मन, चेतना और भ्रमों के मूल को समझना हमें जीवन को सुंदर बनाने में मदद करता है. हर व्यक्ति में सभी सद्गुण पहले से विद्यमान हैं, बस अज्ञानता की परतों से ढके हैं. हमें केवल उन्हें हटाना है और भीतर छिपे उन गुणों को प्रकट होने देना है.
ब्लॉगर के बारे मेंगुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।
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