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Mohini Ekadashi: Learn worship method and muhurt | मोहिनी एकादशी: इस व्रत से सभी पाप और दुखों का होगा अंत, जानें पूजा की विधि

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यधिक महत्व है। एकादशी को कई रूपों में मनाया जाता है और इस पावन दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। वैशाख मास में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह एकादशी 22 मई, शनिवार को मनाई जाएगी। मान्यता के अनुसार मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के पाप तथा दुःखों का नाश होता है। 

शास्त्रों के अनुसार प्राचीन समय में देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस दौरान मंथन से कई सारी चीजें निकलीं। लेकिन जब अमृत निकला तो इसे पाने के लिए  देवता और दानवों में युद्ध होने लगा। तब भगवान विष्णु ने इसी तिथि पर मोहिनी रूप में अवतार लिया था और अमृत लेकर देवताओं को इसका सेवन करवाया था। इस दिन कैसे करें भगवान विष्णु की पूजा और क्या है मुहूर्त, आइए जानते हैं…

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शुभ मुहूर्त
इस बार मोहिनी एकादशी को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोग इसे 22 मई को मना रहे हैं तो कुछ लोग 23 मई को मना रहे हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार मोहिनी एकादशी 22 मई, सुबह 9.30 बजे शुरू हो रही है, जो कि अगले दिन 23 मई को सुबह करीब 6.40 तक रहेगी। इस तिथि के कारण दो दिन एकादशी व्रत किया जा रहा है।  

महत्व
पौराणिक ​कथाओं के ​अनुसार, माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम और महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिउ इस एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से किया था। इसलिए इस एकादशी को बेहद फलदायी और कल्‍याणकारी माना गया है। मान्यता है कि इस एकादशी को व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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व्रत और पूजा विधि
इस दिन सूर्यादय से पूर्व उठकर नित्यक्रमादि से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ-सूथरे कपड़ें पहनें और व्रत का संकल्प लें। साफ सुथरे कपड़े पहनकर दाहिने हाथ में जल लेकर व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थान पर एक चौकी रखें उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। इसके बाद मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने दीपक जलाएं। भगवान विष्णु को अक्षत, मौसमी फल, नारियल, मेवे व फूल चढ़ान के साथ ही तुलसी के पत्ते अवश्य रखें। इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्‍णु की आरती उतारें। अब सूर्यदेव को जल अर्पित करें, साथ ही एकादशी की कथा सुनें और सुनाएं।

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