More than 900 rare species in danger | 900 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां खतरे में

राजस्थान और गुजरात का वन्यजीवन ( wildlife of Rajasthan ) काफी प्रभावी है और इसे कतई दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है। इन सबसे अलग समस्या यह है कि लगातार बढ़ता प्रदूषण ( pollution ), वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं।
जयपुर
Published: March 04, 2022 04:38:40 pm
राजस्थान और गुजरात का वन्यजीवन काफी प्रभावी है और इसे कतई दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है। इन सबसे अलग समस्या यह है कि लगातार बढ़ता प्रदूषण, वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। भारत में इस समय 900 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं। यही नहीं, विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशों की लिस्ट में दुनियाभर में भारत का सातवां स्थान है। इस बात को गंभीरता से लेते हुए और देशवासियों को इसके प्रति जागरूक करने के मकसद से कू एप पर भारत सरकार सहित राजस्थान तथा गुजरात के कई बड़े नेताओं ने शुभकामनाओं के साथ् ही चिंता भी व्यक्त की है। विश्व वन्यजीव दिवस के प्रति लोगों को जागरूक करने लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा हर साल एक थीम जारी की जाती है, जिससे कि विलुप्त हो रहे वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं की प्रजातियों की सुरक्षा के लिए लोगों में जागरूकता पैदा की जा सके। विश्व वन्यजीव दिवस 2022 की थीम है- पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को ठीक करना। विश्व वन्यजीव दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्वभर में वन्यजीवों की सुरक्षा तथा वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रति लोगों को जागरूक करना है। विश्व के सभी देशों के साथ इस दिन भारत में भी वन्यजीवों हेतु जागरूकता फैलाई जाती है और प्रकृति और मानव के संबंधों को दर्शाया जाता है।

900 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां खतरे में
कुछ ऐसा है इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को 68वें सत्र में 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस की घोषणा की थी। इसी दिन विलुप्तप्राय वन्यजीव और वनस्पति के व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को स्वीकृत किया गया था। वन्यजीवों को विलुप्त होने से रोकने हेतु सर्वप्रथम साल 1872 में जंगली हाथी संरक्षण अधिनियम (वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट) पारित हुआ था।
2014 में मनाया गया था पहली बार
दुनियाभर से लुप्त हो रहे जंगली फल-फूलों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिए 3 मार्च 1973 को यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हुए थे। इस खास दिन की याद में 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 63वें सत्र में तय हुआ कि हर साल 3 मार्च को वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे मनाया जाएगा। 3 मार्च 2014 को पहला विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया।
पांच प्रमुख वाइल्ड लाइफ सैंचुरी में से एक है रणथंभौर नेशनल पार्क
राजस्थान का रणथंभौर राष्ट्रीय अभ्यारणय अपनी खूबसूरती, विशाल क्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां पर्यटक वन्यजीवों को प्राकृतिक माहौल में देखकर काफी रोमांचित होते हैं। यह नेशनल पार्क देश के बेहतरीन बाघ आरक्षित क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यहां बाघ के अलावा चीते, सांभर, चीतल, जंगली सुअर, चिंकारा, हिरण, सियार, तेंदुए, जंगली बिल्ली और लोमड़ी भी पाई जाती है। जानवरों के अलावा यहाँ पक्षियों की लगभग 264 प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं। रणथंभौर को भारत सरकार द्वारा 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया था और 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व में से एक घोषित किया गया था।
कच्छ रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य
भुज से 100 किमी दूरी पर स्थित, कच्छ रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य दुनिया में सबसे बड़ी खारी आर्द्रभूमि में से एक है। बोलचाल की भाषा में ‘फ्लेमिंगो सिटी’ के रूप में जाना जाता है यह लगभग 7505.22 वर्ग किमी के विशाल विस्तार के साथ सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य है। यहाँ विभिन्न वन्यजीवों के जीवाश्मों के देखे जाने का भी हवाला दिया जाता है। यहां अत्यधिक नमक जमा होने से अभयारण्य को एक शुद्ध सफेद सतह मिलती है जो सभी पर्यटकों की बड़ी भीड़ को आकर्षित करती है। लेकिन आपको बता दे कच्छ रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित है, इसीलिए अभयारण्य के कुछ हिस्से जनता के लिए प्रतिबंधित हैं।
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