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ब्रेस्‍ट कैंसर से मां की मौत, फिर खुद भी खोनी पड़ीं दोनों ब्रेस्‍ट, आज औरों के लिए बनीं हौसले की मिसाल

टीवी की अक्षरा यानि हिना खान को ब्रेस्‍ट कैंसर होने के बाद एक बार फिर ब्रेस्‍ट कैंसर चर्चा में है. हालांकि ब्रेस्‍ट कैंसर भारत में महिलाओं में सबसे ज्‍यादा होने वाला कैंसर है और शहरों में हर 22 में से एक महिला को यह कैंसर हो रहा है. यह कैंसर किसी भी महिला को हो सकता है लेकिन जो सबसे जरूरी चीज है, वह है हौसला. अगर मरीज हिम्‍मत रखे तो न केवल इस कैंसर को हराया जा सकता है बल्कि फिर से अपनी पुरानी जिंदगी जी जा सकती है. आज हम आपको कैंसर सर्वाइवर रूचिका की कहानी, उन्‍हीं की जुबानी सुनाने जा रहे हैं, जिन्‍होंने पहले अपनी मां को ब्रेस्‍ट कैंसर की वजह से खो दिया, फिर खुद कैंसर से जंग लड़ीं, जीतीं और अब कैंसर मरीजों के लिए हौसले की मिसाल बन चुकी हैं.

hindi से बातचीत में ब्रेस्‍ट कैंसर सर्वाइवर रुचिका बघड़‍िया ने बताया, जून 2012 में जब मैं अपनी मां के साथ झारखंड में रह रही थी तो अचानक मां की ब्रेस्‍ट में एक गांठ जैसी महसूस हुई. चूंकि यह गांठ सामान्‍य नहीं थी तो थोड़ा शक हुआ और मां को जांच के लिए अस्‍पताल ले जाया गया. जब कई जांचें हुईं तो पता चला कि उन्‍हें ब्रेस्‍ट कैंसर ही है. उस वक्‍त बड़ा झटका लगा. ऐसी कोई भी आशंका कभी नहीं थी कि ये बीमारी होगी. मां का अच्‍छे अस्‍पतालों में इलाज कराया. उनकी सर्जरी हुई. इसके बाद जब कीमो दी जा रही थी तो एक कॉम्प्लिकेशन सामने आया कि यह कैंसर उनके ब्रेन तक पहुंच गया है और कीमोथेरेपी के बावजूद भी ब्रेन को नहीं बचाया जा सकता था. आखिरकार करीब 10 महीने बाद 2013 में मां ब्रेस्‍ट कैंसर से जूझते हुए गुजर गईं.

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‘इस कैंसर का जख्‍म अभी भरा भी नहीं था और डॉक्‍टरों ने सलाह दी थी कि अपने स्‍तनों की भी जांच करती रहो, तो मैं अक्‍सर अपने ब्रेस्‍ट को भी जांचती रहती थी कि कहीं कोई दिक्‍कत तो नहीं है. करीब 3 साल बाद अचानक मुझे मेरे ब्रेस्‍ट में एक गांठ महसूस हुई. हालांकि इसमें दर्द भी नहीं था तो मुझे भरोसा था कि यह कैंसर नहीं होगा लेकिन अस्‍पताल में दिखाने के बाद जांचें हुईं और मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मुझे भी ब्रेस्‍ट कैंसर था. मां के जाने के बाद यह इतना बड़ा झटका था कि एकबारगी मुझे लगा कि ये क्‍या हो गया. दिल बैठ गया. करीब 1 महीने तक मैं गहरे अवसाद में चली गई.’

‘अब बीमारी तो हो चुकी थी, आखिरकार हिम्‍मत जुटाई, खुद को तैयार किया और साल 2016 से 2017 तक ब्रेस्‍ट कैंसर का इलाज चला. दिक्‍कतें सिर्फ यहीं तक नहीं थमी. ब्रेस्‍ट कैंसर के इलाज के दौरान कुछ जांचें हुईं तो पता चला कि मुझे जेनेटिकली ये कैंसर हुआ था. इसका मतलब था कि मुसीबत बड़ी थी. आखिरकार मेरे ब्रेस्‍ट कैंसर वाले ब्रेस्‍ट को निकालने के कुछ दिन बाद रिप्रोडक्टिव ऑर्गन में जेनेटिक कैंसर सेल्‍स होने की आशंका के तहत दूसरी ब्रेस्‍ट भी निकालनी पड़ी.’

‘ अपोलो अस्‍पताल की ऑन्‍कोलॉजिस्‍ट डॉ. रमेश सरीन मैम के अंडर में मेरा इलाज चला. आखिरकार मैंने अस्‍पताल में ही ब्रेस्‍ट रीकंस्‍ट्रक्‍शन और इंम्‍प्‍लांट भी कराया. ताकि मैं पहले की तरह नॉर्मल दिखाई दे सकूं. साथ ही बीमारी से भी मुझे निजात मिल गई. थोड़ा समय लगा लेकिन फिर मैं अपनी जिंदगी में एक बार वापस लौट पाई. अब जबकि इसे इतने साल हो गए हैं, मैं एक सामान्‍य जिंदगी जी रही हूं.’

जिस साहस से लड़ी जंग, आज उससे दे रहीं हौसला रुचिका बघड़‍िया ने जिस हिम्‍मत से कैंसर की जंग लड़ी और फिर जीती है, आज वे हौसले की मिसाल बन चुकी हैं और अन्‍य कैंसर मरीजों के लिए प्रेरणास्‍त्रोत बन चुकी हैं. वे कहती हैं कि इलाज के दौरान ऐसे कई पल आए जब भावनात्‍मक और मानसिक रूप से टूटने जैसा महसूस हुआ लेकिन फिर खुद की हिम्‍मत, परिवार के सपोर्ट से सब कुछ ठीक हुआ. रुचिका आज अपोलो अस्‍पताल में आने वाले कैंसर मरीजों को कई बार हिम्‍मत देने के लिए जा चुकी हैं और अक्‍सर कैंसर जागरुकता के लिए उन्‍हें बुलाया जाता है.

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Tags: Breast Cancer Se Jung, Health News, Trending news

FIRST PUBLISHED : July 6, 2024, 20:37 IST

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