राजस्थान में आज भी कायम है मायरा, मामा-नाना लेकर आते हैं, मंगल गीतों से करते हैं स्वागत

रिपोर्ट- मनमोहन सेजू
बाड़मेर. प्रीवेडिंग शूट, हाईटेक रोशनी, डेस्टिनेशन वेडिंग और चकाचौंध की तड़क भड़क वाली शादियों ने एक पवित्र बंधन के महाउत्सव को अलग ही दिशा और दशा प्रदान कर दी है. लेकिन इस सभी से दूर राजस्थान के कई इलाकों में आज भी मायरे की अनूठी परम्परा जारी है.
हजारों बरसों से राजस्थान के गांव ढाणी की इस परम्परा में शादी में दूल्हे औऱ दुल्हन की मां को ना केवल भाई की तरफ से आर्थिक सम्बल प्रदान हो जाता है बल्कि उसे अपनों का साथ भी मिल जाता है. यही वजह है कि आज भी मायरे का स्वागत राजस्थान के मंगल गीतों से होता है. मारवाड़, शेखावटी, ढूंढाड़ क्षेत्र में मामा और नाना की तरफ से अपनी बहन अपनी बेटी के घर शादी में मदद के रूप में एक रिवाज बरसों पहले शुरू किया गया था. इसे मायरा कहा जाता है.
मामा नाना लाते हैं मायरा
मायरे में मामा और नाना और उनके परिवार की तरफ से सोना, चाँदी, गहने, आभूषण, कपड़े, नकद पैसे और उपहार दिए जाते हैं. तेजी से बदलते परिवेश के बावजूद आज भी इस रस्म को पूरी शिद्दत के साथ निभाया जाता है. ढोल, थाली और मंगल गीतों के साथ मायरे में आने वाले सभी मेहमानों का स्वागत किया जाता है.
मायरे का महत्व
शादी में आने वाला हर शख्स मायरे की रस्म का हिस्सा बनता है. मायरे के बारे में हर किसी को जोर से बोलकर बताया जाता है. राजस्थान में राजपूत, राजपुरोहित,चारण,देवासी, मेघवाल,जाट, विश्नोई और राव समुदाय में मायरे के चर्चे हर तरफ होते हैं.
बहन की मदद
तेलवाड़ा निवासी बुजुर्ग सांकलाराम देवासी बताते हैं मायरा प्रथा आज भी निभाई जाती है. भांजे या भांजी की शादी में मामा हैसियत अनुसार नकद, सोने-चांदी के गहने, जमीन उपहार स्वरूप देते हैं. इससे बहन की आर्थिक मदद भी हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED : April 29, 2024, 17:44 IST