Fear Of Owaisi In MVA Govt, Now Deny Permission For AIMIM Rally In Mum – महाराष्ट्र में ओवैसी को रैली करने की अनुमति न देने के पीछे छुपा है महाविकास आघाडी का डर

महाराष्ट्र के 1.3 करोड़ मुसलमान राज्य की 11.24 करोड़ आबादी का 11.56 प्रतिशत हैं। भले ही मुसलमान परंपरागत रूप से कांग्रेस-एनसीपी को समर्थन देते आए हैं, लेकिन इस समुदाय के भीतर कांग्रेस-भाजपा की राजनीति से खुद को अलग करने की भावना बढ़ रही है। राज्य में ओवैसी की पार्टी के उदय ने मुसलमानों को चुनने का एक और विकल्प दिया है।
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी पूरे भारत में अपनी पार्टी का विस्तार करने में लगे हैं। कई राज्यों में उनकी उपस्थिति ने उन राजनीतिक दलों में बेचैनी पैदा कर दी है जो अब तक अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को अपना मूल “वोट बैंक” मानते थे। इस बीच महाराष्ट्र में 27 नवंबर को मुंबई के MMRDA ग्राउंड पर होने वाली AIMIM की रैली को मुंबई पुलिस ने अनुमति नहीं दी है। इस रैली में ओवैसी मुस्लिम आरक्षण से लेकर कई अन्य मुद्दों पर जनता से संवाद करने वाले थे। अनुमति न देने के पीछे का कारण महाराष्ट्र में महाविकस आघाडी का डर माना जा रहा है। ये डर लाजमी भी है क्योंकि महाराष्ट्र में ओवैसी का जनाधार समय के साथ बढ़ा है और ‘वोट कटवा पार्टी’ का टैग तो पहले से ही पार्टी को मिला हुआ है। अचानक से अनुमति न देने का कारण महाराष्ट्र में आने वाले निकाय चुनाव भी हैं।
ओवैसी की घोषणा
महाराष्ट्र में नगर निगम चुनाव होने हैं। AIMIM चीफ ने इस चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। ये घोषणा ओवैसी ने औरंगाबाद के अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान की थी। अब इस घोषणा से महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों में हलचल तो मचनी थी ही खासकर उन पार्टियों में जिन्हें वोटों के बंटने का डर है। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी का प्रभाव बढ़ा है जो चिंता का विषय तो है ही।
AIMIM के रिकॉर्ड्स क्या रहे हैं?
- ओवैसी की पार्टी सबसे पहले वर्ष 2012 में महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा में आई थी। तब इस पार्टी ने नांदेड़ नगर निगम चुनाव की 81 सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी। यहां कांग्रेस और एनसीपी दो ऐसी पार्टियां हैं जिनका मुस्लिम परंपरागत रूप से समर्थन करते रहे हैं। इस नतीजे से एक चीज जो उभर कर सामने आई वो ये कि राज्य के मुस्लिम एक बेहतर विकल्प की तलाश कर रहे थे जो उन्हें ओवैसी की पार्टी में दिखा।
- वर्ष पार्टी ने अक्टूबर 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भायखला और औरंगाबाद में जीत दर्ज की थी। इस जीत के बाद एआईएमआईएम के एक नेता ने अपने बयान में कहा था कि चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया कि “लोग अन्य दलों द्वारा किए गए झूठे वादों से थक चुके हैं और वे केवल विकास चाहते हैं।”
- वर्ष 2015 में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने औरंगाबाद की 113 सीटों वाली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन में अपने 54 प्रत्याशी उतारे थे जिनमें से 25 को जीत मिली थी। इस जीत के साथ ही ये पार्टी प्रदर्शन के मामले में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तब 25 सीटों के साथ AIMIM, शिवसेना के 29 के बाद दूसरे स्थान पर रही, जबकि भाजपा ने 22 सीटें जीतीं थीं।
- वर्ष 2017 में ओवैसी की पार्टी ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में 227 में से दो सीटों पर जीत हासिल कर सभी को फिर से अपने प्रदर्शन से चौंका दिया था। वहीं, एआईएमआईएम ने सोलापुर नगर निगम के चुनावों में पांच सीटें जीतीं थीं।
कितनी सीटों पर है मुस्लिम जनसंख्या का प्रभाव?
2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र के 1.3 करोड़ मुसलमान राज्य की 11.24 करोड़ आबादी का 11.56 प्रतिशत हैं। मुस्लिम समुदाय 14 लोकसभा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनमें धुले, नांदेड़, परभणी, लातूर, औरंगाबाद, भिवंडी, अकोला, ठाणे और मुंबई की छह सीटें शामिल हैं। भले ही मुसलमान परंपरागत रूप से कांग्रेस-एनसीपी को समर्थन देते आए हैं, लेकिन इस समुदाय के भीतर कांग्रेस-भाजपा की राजनीति से खुद को अलग करने की भावना बढ़ रही है। राज्य में ओवैसी की पार्टी के उदय ने मुसलमानों को चुनने का एक और विकल्प दिया है। इसका प्रभाव भी चुनावों में दिखाई दे रहा है। औरंगाबाद हो या नांदेड ओवैसी ने अपने प्रदर्शन से एनसीपी और कांग्रेस की चिंता को बढ़ाने का ही काम किया है।
राज्य के मुसलमानों के लिए बड़ा मुद्दा सफाई, पानी की समस्या, यातायात, पार्किंग, पुनर्विकास और यातायात जैसे मुद्दे काफी महत्वपूर्ण है और ओवैसी इसी पर प्रहार कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के निकाय चुनावों से पहले जिस तरह से ओवैसी मुस्लिम समुदाय की 50 जातियों को आरक्षण देने का मुद्दा उठा रहे हैं, उससे हो सकता है मुस्लिम समुदाय एकजुट होकर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के साथ खड़ा हो जाएं। महाराष्ट्र में अन्य पार्टियां मराठा आरक्षण को लेकर आए दिन बहस करती नजर आती हैं। इस बीच मुस्लिमों के लिए आरक्षण के मुद्दे से उन पार्टियों की नींद उड़ गई है जो मुस्लिम वोट बैंक को लेकर फिक्रमंद थीं। गौर करें तो ओवैसी के नेतृत्व में AIMIM पार्टी राज्य में कांग्रेस एनसीपी जैसी पार्टियों के प्रभाव को कम करने का दम रखती है।