Rajasthan

On a gesture from Aman of Kota, the Shahenshah Pigeon comes flying high in the sky, thus giving special hours of training. – News18 हिंदी

रिपोर्ट-शक्ति सिंह
कोटा. पुराने जमाने में जब मोबाइल फोन, ई मेल और तमाम सोशल साइट्स नहीं थे. तब संदेश भेजने के लिए कबूतर ही थे. पहले और दूसरे विश्व युद्ध में कबूतरों ने ही सेना तक संदेश पहुंचाए. वक्त के साथ चीजें काफी बदल गयीं. पहले चिट्ठी, फिर फोन और अब इंटरनेट ने सारा सीन बदल दिया. कबूतर इतिहास की बात हो गए. लेकिन शौक का क्या करें. शौकीन लोग अब भी कबूतर पालते हैं और फिर उन्हें संदेसे ले जाने की ट्रेनिंग देते हैं.

इंसान और पशु-पक्षियों की दोस्ती हम सब जानते हैं. इंसान से ज्यादा वफादार कबूतर होते हैं. यूपी के आरिफ और सारस पक्षी की दोस्ती हम सबने देखी पढ़ी और सुनी. हालांकि इस निःस्वार्थ दोस्ती को जुदाई का दंश झेलना पड़ा और यह घटना देश में कुछ दिन के लिए चर्चा का केंद्र बनी रही. सारस और आरिफ की दोस्ती से मिलती-जुलती एक और कहानी है अमन और उसके कबूतर शहंशाह की. इस बार लोकेशन राजस्थान का कोटा शहर है.

साये की तरह साथ है शहंशाह
अमन को बचपन से कबूतर पालने का शौक है. कबूतर के छोटे बच्चे लेकर आए और उन्हें ट्रेनिंग देने लगे. 2 साल में ये कबूतर इतने ट्रेंड हो गए कि अमन के इशारे पर उड़ान भरने लगे. अमन के पास अभी दो कबूतर हैं. इनमें से एक है शहंशाह. वो तो अमन का इतना भक्त है कि एक इशारे पर आसमान से लौट आता है. वो चौबीसों घंटे साये की तरह अमन के साथ रहता है. अमन उसे अपने हाथों से दाना खिलाते हैं. जब वो मोटरसाइकिल चलाते हैं तो शहंशाह उनके साथ खुले आसमान में उड़ते हुए रेस लगाता है. लोग भी अमन और शहंशाह के इस याराना के कायल हो गए हैं.

10 दिन में कबूतर ट्रेंड
अमन ने बताया कबूतर जब पांच से छह सप्ताह का होता है तभी से वो उसे ट्रेंड करने लगते हैं. जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, उन्हें कुछ दूर ले जाकर छोड़ दिया जाता है, जहां से वो आराम से लौट आते हैं. धीरे-धीरे दूरी बढ़ाई जाती है इस तरह से 10 दिन में कबूतर लगभग 30 किमी से लौटने में सक्षम हो जाते हैं.

एक बार में 800 किमी का सफर
पक्षी विशेषज्ञ ने बताया संदेश भेजने के लिए पेपर पर मैसेज लिखकर उसे एक कैप्सूल में डालकर पक्षी के पैर में बांध दिया जाता है. इसे लेकर कबूतर 55 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ सकते हैं. वह एक बार में 800 किमी तक की दूरी तय कर सकते हैं.

कबूतर के दिमाग में दिशा सूचक
रिपोर्ट के मुताबिक, कई शोध में ये बात सामने आयी है कि कबूतर के दिमाग में पाए जाने वाली 53 कोशिकाओं के एक समूह की पहचान हो गयी है. इसी की मदद से कबूतर दिशा की पहचान और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का निर्धारण करते हैं. साथ ही ये सामने आया है कि चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति व्यवहार के मामले में हर तंत्रिका की अपनी अलग विशेषताएं हैं. लेकिन हर कोशिका उत्तर-दक्षिण दिशा और ऊपर-नीचे की पहचान कर सकती है. कबूतर की ये कोशिकाएं ठीक वैसे ही काम करती हैं जैसे कोई दिशा सूचक, दिशाओं की जानकारी देता है. इसके अलावा रास्ते में आने वाली चीजों की दूरी जानने में भी इससे मदद मिलती है.

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