On this very day, hundreds of tribals who were protesting against the tax imposed by the British were fired upon – हिंदी
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दर्शन शर्मा-सिरोही :- साल 1922 में आज ही के दिन कृषि कार्य पर लगने वाले कर के विरोध में एकी आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर गोलियां चलाने से मची भगदड़ में कई लोगों की मौत हो गई थी और काफी संख्या में लोग घायल हुए थे. हालांकि पंजाब के जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद आदिवासियों पर अपनाई गई दमनकारी नीति को इतिहास के पन्नों में तो जगह नहीं मिल सकी. लेकिन यहां के लोकगीतों में इसे आज भी याद किया जाता है. 1997-98 में शहीद स्थल की मिट्टी दिल्ली भेजने के लिए एकत्रित जन समूह में इस विभत्स घटना के साक्षी गोपी पटेल ने तत्कालीन जिला कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी समेत अन्य को पूरी घटना बताई थी.
क्या थी पूरी घटना?
इस कार्यक्रम में शामिल हुए क्षेत्र के इतिहास के जानकार सेवानिवृत प्रधानाचार्य रोहिड़ा के राजेश दवे ने स्थानीय भाषा में गोपी पटेल की बात को सुनकर अधिकारियों को हिंदी भाषा में सुनाया था. इस कार्यक्रम में मंच संचालन करने वाले राजेश दवे बताते हैं कि साल 1922 में सिरोही रियासत को भूला व वालोरिया गांव आदिवासी क्षेत्र होने के कारण यहां से कोई कृषि कर नहीं मिलता था. यहां के पंच-पटेलों को अंग्रेजों ने कहा था कि भूला व वालोरिया गांव को चंवरी कर के रूप में टैक्स देना होगा. चंवरी विवाह समारोह वाले घर के द्वार पर बनवाया जाने वाला एक प्रकार का तोरण होता है.
इस कर के विरोध में आदिवासियों ने एकी आंदोलन किया, जिसका नेतृत्व झाडौल के मोतीलाल तेजावत ने किया. बाद में सिरोही रियासत की सैन्य टुकड़ी अंग्रेज मेजर के साथ भूला-वालोरिया गांव के लिए रवाना हुई. सभा में सेना को तोप व बंदूकों के साथ आते देख आदिवासियों ने अपने बचाव में तीर चला दिए, जिसके जवाब में सेना की तरफ से तोप व गोलियां चलाई गई. इसके बाद सभा में भगदड़ मच गई. दवे के मुताबिक इस भगदड़ व गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई थी. सभा में मौजूद काफी संख्या में आदिवासी गम्भीर रूप से घायल हो गए थे. झोपड़े जलाए जाने से कई परिवार बेघर हो गए थे.
मेजर प्रिचार्ड के हवाले से 50 मृतकों की संख्यावहीं, उस समय के समाचार पत्र में अंग्रेज मेजर प्रिचार्ड के हवाले से प्रकाशित रिपोर्ट में इस घटना में मृतकों की संख्या 50 व घायलों की संख्या 150 बताई गई थी. आज भी इस घटना में मृतकों की संख्या को लेकर अलग-अलग आंकडे सामने आते हैं. क्षेत्र में आज भी स्थानीय भाषा में गाए जाने वाले लोकगीत “भूलो गोम बले रे, रोही रे बेगुल वाजे, वालोरियो गोम बले रे” गीत के माध्यम से अंग्रेजों के दमनकारी प्रयास व आदिवासियों पर हुए अत्याचार के रूप में याद किया जाता है.
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लीलूड़ी बड़ली स्मारक का काम अधूराभूला गांव के पास लीलूड़ी बडली को बजट वर्ष-2012 में 3 करोड़ 25 लाख की लागत से शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की थी. 6 जून 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत ने लीलूड़ी बड़ली में शिलान्यास किया व सवा तीन करोड़ के बजट से बनने वाले इस शहीद स्मारक के साइट प्लान नक्शे का भी अवलोकन किया था. गत वर्ष यहां स्मारक का कार्य शुरू तो हुआ, लेकिन पिछले करीब 5 माह से काम बंद पड़ा है. स्मारक पर कार्यरत चौकीदार को भी 11 माह से वेतन नहीं मिला है.
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FIRST PUBLISHED : May 5, 2024, 10:53 IST