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OPINION : उपचुनाव में 2-1 की जीत से सरकार के कार्यों और गहलोत की नीतियों को मिली ऑक्सीजन Rajasthan News- Jaipur News- Rajasthan Assembly by-election-2-1 victory gave oxygen to governments actions and Gehlots policies | – News in Hindi

हरीश मलिक

हरीश मलिक पत्रकार और लेखक

दोनों ही दलों में अब जीत-हार पर मंथन होगा और उन नेताओं पर सवालिया निशान उठेंगे जिन्हें इन तीनों विधानसभाओं में उपचुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इनमें कांग्रेस के कुछ मंत्री, प्रदेश प्रभारी, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शामिल हैं.

Source: News18 Rajasthan
Last updated on: May 2, 2021, 9:45 PM IST

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प्रदेश में तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव में 2-1 के जनादेश के मायने साफ हैं. यहां की जनता न​ सिर्फ सहानुभूति की लहर पर सवार थी, बल्कि राज्य सरकार की नीतियों, फैसलों, योजनाओं और कोरोना नियंत्रण में वह कांग्रेस सरकार से संतुष्ट है. तीनों ही जगह दिवंगत विधायकों के परिजन ही जीते. परिणाम कांग्रेस के ढाई साल के काम पर मुहर भी है. सहाड़ा और सुजानगढ़ में कांग्रेस ने भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की और राजसमंद में कड़ी टक्कर दी. दोनों ही दलों में अब जीत-हार पर मंथन होगा और उन नेताओं पर सवालिया निशान उठेंगे जिन्हें इन तीनों विधानसभाओं में उपचुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इनमें कांग्रेस के कुछ मंत्री, प्रदेश प्रभारी, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शामिल हैं.

सहाड़ा में रघु शर्मा ने रचा जीत का पहाड़ा

सहाड़ा विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस ने स्वास्थ्य मंत्री डा.रघु शर्मा को और बीजेनी ने मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग को जिम्मेवारी सौंपी थी. रघु शर्मा ने इस चुनावी समर में पूरे अंक हासिल किए हैं. बीजेपी को नुकसान लादूलाल पितलिया एपीसोड से भी हुआ. जोगेश्वर गर्ग ने जिस तरह से आडियो में धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया उसका जवाब जनता ने नकारात्मक वोटों से दिया. गर्ग दबंगई से पितलिया का नामांकन फार्म तो वापस करा पाए लेकिन अपनी पार्टी प्रत्याशी को जिता नहीं पाए. गर्ग के अलावा बीजेपी ने भीलवाड़ा सांसद सुभाष बहेड़िया, चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी और विधायक विठ्ठल शंकर को भी मैदान में उतारा था. लेकिन बीजेपी नेता कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने की सटीक रणनीति नहीं बना पाए.

सुजानगढ़ में परंपरानुसार चेहरा बदला, पार्टी नहीं

सुजानगढ़ की जनता ने परंपरा के अनुरूप इस बार भी चेहरा तो बदला लेकिन पार्टी नहीं. सहानुभूति की लहर पर सवार होकर जनता ने भंवरलाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल को जीता दिया. कांग्रेस ने प्रभारी मंत्री भंवर सिंह भाटी को जिम्मेदारी दी थी. उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ मिलकर पार्टी प्रत्याशी को भारी मतों से जिताने का मार्ग प्रशस्त किया. दूसरी और बीजेपी यहां स्थानीय गुटबाजी में ही फंसी रही. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ का गृह जिला होने का भी पार्टी प्रत्याशी को कोई फायदा नहीं मिला. खुद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया शेखावाटी से आते हैं लेकिन उनके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर आने से मुश्किल से बच पाए. आरएलपी के सीताराम ने तीसरे स्थान पर रहकर अच्छे वोट हासिल किए.

राजसमंद में कांग्रेसी मंत्री नहीं भेद पाए बीजेपी का गढ़

अब बात करते हैं राजसमंद की. यहां बीजेपी प्रत्याशी दीप्ति माहेश्वरी पांच हजार से ज्यादा मतों से जीती, लेकिन पिछले चुनाव से जीत का अंतर काफी घट गया. 2018 के विधानसभा चुनाव में उनकी मां किरण माहेश्वरी 24620 मतों से जीतीं थीं. राजसमंद में कांग्रेस पार्टी तमाम प्रयास के बावजूद बीजेपी के गढ़ में सेंध नहीं लगा पाई. पार्टी ने प्रभारी मंत्री उदयलाल आंजना को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंपी थी. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने खुद राजसमंद में लगातार बैठकें की. मार्बल व्यापारियों को लुभाने के लिए खान मंत्री प्रमोद जैन भाया को भी मैदान में उतारा, लेकिन उनके प्रयास पार्टी प्रत्याशी को जिताने में नाकाम ही रहे. बस वह बीजेपी प्रत्याशी की जीत का अंतर ही कम करा सके.अब होगा आंकलन, राजे सक्रिय क्यों नहीं रहीं

उपचुनाव में 2-1 के परिणाम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निश्चित रूप से ऑक्सीजन मिलेगी. उन्होंने ऐन चुनावों से पहले सचिन पायलट के साथ मिलकर पार्टी में एकजुटता का संदेश दिया. इससे हाईकमान तक पॉजिटिव वेव पहुंचने के साथ-साथ जमीनी कार्यकर्ताओं को भी बल मिला. दूसरी ओर बीजेपी की राज्य में सबसे बड़ी नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो उपचुनाव से किनारे ही कर लिया. हालांकि पार्टी पदाधिकारी यह दलील देते रहे कि वे​ निजी कारणों से चुनाव प्रचार में नहीं आ पाईं. अब चुनाव में दो सीटों पर हार के बाद इसका आंकलन जरूर होगा कि यदि वसुंधरा राजे उप चुनाव में स​क्रिय रहतीं तो इसका क्या फर्क पड़ता ? हाईकमान अब जरूर जानना चाहेगा कि राजे खुद प्रचार में क्यों नहीं पहुंची ? या फिर पूनिया गुट द्वारा अपेक्षित महत्व न दिया जाना इसका कारण बना ? कारण कुछ भी हो राजे की मौजूदगी जीत-हार के आंकड़ों को कुछ प्रभावित तो जरूर करती.

(डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं.)


ब्लॉगर के बारे में

हरीश मलिक

हरीश मलिक पत्रकार और लेखक

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक. कई वर्षों से वरिष्ठ संपादक के तौर पर काम करते आए हैं. टीवी और अखबारी पत्रकारिता से लंबा सरोकार है.

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First published: May 2, 2021, 3:40 PM IST

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