Patrika Exclusive Bill Gates Interview How to Prevent the Next Pandemi | How to Prevent the Next Pandemic? भारत से सबक सीख सकती है दुनिया, ‘पत्रिका’ को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बिल गेट्स ने बताई वजह

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टीकाकरण निश्चित रूप से एक मुख्य तरीका है लेकिन और भी कई महत्त्वपूर्ण साधन हैं, जो महामारी के प्रकोप से बचा सकते हैं, जैसे मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, बेहतर जांच व इलाज। इन सबके इस्तेमाल से भविष्य की महामारियों से बचा जा सकता है।
मुझे विश्वास है कि अगर हम नए रोगाणु का पता लगने के शुरुआती 100 दिनों में ही कारगर कदम उठा लें तो भविष्य में किसी भी महामारी के प्रकोप में लोगों की जान जाने और अर्थव्यवस्था में गिरावट की आशंका कोविड-19 के मुकाबले एक प्रतिशत से भी कम रह जाएगी। ये कदम हो सकते हैं शुरूआती चेतावनी के समय में ही जांच की जाए, जब वायरस पकड़ में आए।
बल्कि प्रभावी उपचारों की भी जरूरत है, जिन्हें व्यापक स्तर तक त्वरित उपलब्ध करवाया जा सके और हमें अभिनव उपचार की जरूरत है ताकि संक्रमित लोगों की जल्दी जांच हो सके। साथ ही ऐसे उपाय किए जा सकें जो बाकी लोगों को संक्रमित न करे।

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वाकई यह देखना अद्भुत था, जिस प्रकार भारत ने बड़ी ही तेजी से देशवासियों को कोविड-19 की 1.8 अरब डोज लगवाई। गेट्स फाउंडेशन ने सीरम इंस्टीट्यूट को जोखिम पर वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई और उसके साथ एक द्वितीय स्रोत समझौता किया ताकि कोविशील्ड वैक्सीन की निर्माण क्षमता बढ़ाई जा सके। और अब भारत निम्न आय वाले देशों को भी वैक्सीन उपलब्ध करवा रहा है।
विश्व भारत से कई तरह के सबक सीख सकता है, जैसे निगरानी तंत्र को कैसे आधुनिक बनाया जाए? टीबी, एचआइवी, एचपीवी और अन्य बीमारियों की जांच व पहचान कैसे की जाए? और बाकी देशों के साथ वैक्सीन डोज साझा करने की क्षमता भी महत्त्वपूर्ण घटक होगी।
मीडिया, खास तौर पर स्थानीय मीडिया ने सुरक्षित व्यवहार को प्रोत्साहित करने में निर्णायक भूमिका निभाई है। भारत में स्वास्थ्य संबंधी मिथकों को तोड़ने में भी। महामारी संकट काल में हमें मीडिया पर भरोसा करना चाहिए ताकि जनता तक सही सूचना तुरंत पहुंचे।
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– देश में पहले से चले आ रहे टीकाकरण और पोलियो उन्मूलन अभियान की सफलता से बने वैक्सीन डिलिवरी इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ भारत को मिला। डिजिटल नवाचार, जैसे नए कोविन प्लेटफॉर्म से भी लोगों को वैक्सीन लगवाने में सहायता मिली, प्रति सेकेंड औसतन 400 वैक्सीन लगा कर रेकॉर्ड कायम किया।
बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण प्रयास किए गए। इसी के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वास्थ्य पेशेवरों व फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों के लिए अभ्यास सत्र चलाए। यह ‘सम्पूर्ण समाज’ के ही दृष्टिकोण का नतीजा है कि देश यह एतिहासिक उपलब्धि हासिल कर सका।
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द्वितीय स्रोत समझौतों से ही संभव हो पाया है कि किसी कम्पनी की वैक्सीन की एक बड़ी खेप किसी अन्य फर्म द्वारा बनाई जाए। दो वर्ष से भी कम समय में एकल निर्माता एस्ट्राजेनेका ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट सहित 15 देशों की 25 फैक्ट्रियों के साथ द्वितीय स्रोत समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
यह अद्भुत है! फार्मास्युटिकल कम्पनियां ने एक दूसरे के साथ अपनी ‘कम्पाउंड लाइब्रेरी’ साझा करने की भी बात कही है ताकि महामारी के दौरान नए उपचारों को गति दी जा सके। हमें इस प्रकार के सहयोग को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

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विश्व स्वास्थ्य में आई प्रगति से स्पष्ट है कि क्या संभव हैः चेचक का उन्मूलन, गरीबी व शिशु मृत्यु दर को कम से कम पचास फीसदी घटाना, एक साल से कम समय में सुरक्षित और प्रभावी कोविड वैक्सीन उपलब्ध करवाना। भारत जैसे देश इस प्रगति के लिए धन्यवाद के पात्र हैं।
परन्तु विश्व को नए तरह के निवेश भी करने हैं, जैसे पहले कभी नहीं किए गए ताकि हमारे तंत्र और साधन का लाभ सबको मिले, न कि केवल संपन्न देशों व समुदायों को। अगर हम आर एंड डी, रोग नियंत्रण एवं प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य तंत्र सुदृढ़ करने में निवेश के लिए सही कदम उठाते हैं तो हम बीमारी को उसके प्रकोप के साथ ही पहचानने और रोकथाम में सक्षम होंगे, इससे पहले कि वे महामारी बन जाएं।
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मैंने वर्ष 2021 के शुरू में किताब लिखना शुरू किया। तब हम महामारी के दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रहे थे। उस वक्त लोगों की जानें जा रही थीं और आर्थिक हालात भयावह थे। हालांकि यह आज की स्थिति के मुकाबले काफी कम था। इससे भी बड़ी चिंता है कि ऐसा होना नहीं चाहिए था।
विश्व स्वास्थ्य विशेषज्ञ सालों से महामारी के लिए तैयार रहने को लेकर निवेश का आह्वान करते आए हैं लेकिन दुनिया इसमें विफल रही है। अगर हम अभी सही निवेश करें तो इस महामारी को खत्म कर सकते हैं और हमें फिर से ऐसी मानवीय व आर्थिक तबाही का सामना नहीं करना पड़ेगा।