Pithora Tribal Painting Workshop Organized By Rajasthan Studio – पिथोरा आदिवासी चित्रकला शैली, यह धार्मिक अनुष्ठान के समान
राजस्थान स्टूडियो की ओर से आयोजित वर्कशॉप में जयश्री एस. माहापात्रा रूबरू
अनुराग त्रिवेदी
जयपुर. पिथोरा एक अनूठी आदिवासी चित्रकला शैली है जो मूल रूप से गुजरात के राठवा जनजाति और राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में बनाई जाती है। पिथोरा पेंटिंग इन जनजातियों के लिये एक धार्मिक अनुष्ठान के समान है। यह कहना हैआर्टिस्ट जयश्री एस माहापात्रा का। राजस्थान स्टूडियो की ओर से आयोजित ऑनलाइन वर्कशॉप में माहापात्रा ने अपने अनुभव शेयर किए। भारत और राजस्थान की आर्टिस्ट कम्यूनिटी द सर्किल के लिए हुई इस वर्कशॉप में २० प्रतिभागियों ने भाग लिया। वर्कशॉप का आयोजन भारत सरकार के आजादी का अमृत महोत्सव – सेलिब्रेटिंग इंडिया एट 75 के तहत किया गया। जयश्री ने बताया कि आदिवासी लोग देवता से अपनी किसी मन्नत या इच्छा पूर्ति के लिए मुख्य पुजारी के पास जाते हैं और मनन्त पूर्ण होने पर अपने घर के प्रथम कमरे में पिथोरा पेंटिंग बनाने की शपथ लेते है। जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है तो ये पेंटिंग बनाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से तीन लेयर होती है। इसमें दीवार के शीर्ष भाग में सूर्य एवं चांद बनाये जाते हैं। मध्य भाग में पशु, पक्षी एवं देवी देवताओं के चित्र बनाये जाते हैं और सबसे नीचे के हिस्से में आदिवासियों की दैनिंक दिनचर्या को दर्शाया जाता है। इन पेंटिंग को बनाने के लिए चमकीले रंगों का उपयोग किया जाता है। इन पेंटिंग्स में सफेद डॉट्स की सहायता से ऑउटलाइन बनाई जाती है।वर्कशॉप के दौरान जयश्री ने सफेद रंग से पूते हुए वूडन कोस्टर पर हाथी का चित्र बना कर उसमें बॉर्डर बनाया और फिर उसमें काला, लाल, नीला एवं पीला रंग भरते हुए अत्यंत आकर्षक पेंटिंग बनाई। उन्होंने बताया कि इन पेंटिंग को कपड़े पर बना कर होम डेकोर या गिफ्ट आईटम भी बनाये जा सकते हैं। उन्होंने पिथोरा पेंटिंग शैली में बने हुये घोडे और हिरण के चित्र भी साझा किए।