Rajasthan

Poem- Anamika Gupta – कविता-मां की कोख में उजड चली

अनामिका गुप्ता

पहन के पायल मैं आंगन में
छन छन छन छनकाऊंगी
पकड़े उंगली बाबा की
शान से फिर इतराऊंगी
ममता के आंचल में छुप कर
मैं बार-बार इठलाऊंगी
सपने नए-नए नित बुनकर
फिर सच में उन्हें बनाऊंगी
सखी सहेलियों के संग मिलकर
गुड्डे गुडिय़ों का ब्याह रचाऊंगी
ख्वाब बुन रही एक नन्ही कली
नहीं अभी तक जो थी खिली
बुनते बुनते…….
मधुर सुनहरे सपनों पर
अचानक
निर्ममता की धार चली
पीढिय़ां रचने वाली भावी मां
मां की कोख में उजड़ चली
सांसें उसकी उखड़ चली
मुरझा गई एक नन्ही कली

—————–

दे रही अग्नि परीक्षाएं

जीती ही कहां
वो जी भर कर
पलती है सदा कई बंधनों में
अनगिनत दायरों में
तड़पती रह जाती हैं भावनाएं
पिंजरे के पंछी की भांति
कहां जिंदगी उसे सुकून दे पाती है
मसल दी जाती है कभी
कोख में
जला दी जाती है जिंदा
दहेज की खातिर
लूट ली जाती है कभी सरे बाजार
हवस के दरिंदों द्वारा
कुलटा-कुलछिन भी कहलाती है
जब बेटा नहीं दे पाती है
तमगा मिलता है बांझ का
जब औलाद नहीं जन पाती है
फिर भी जी रही हर हाल
दे रही अग्नि परीक्षाएं हर घड़ी
ना जाने कितनी स्त्रियां
अपनी बेबसी की
समाज के हर एक मोड़ पर
सर झाुकाए वजूद अपना भुलाए
हां…
आज भी अपने अस्तित्व से लड़ती
बेबस नारी है वो

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj