Missed call to phaltu and antima girls getting weird names in rajasthan know exact reason

जयपुर. आपका नाम ही आपकी पहचान होता है. नाम यह भी बताता है कि माता-पिता और रिश्तेदारों की सोच बच्चे की प्रति कैसी है. राजस्थान में कुछ समुदायों में तीसरी और चौथी बेटियों के नाम कुछ इस तरह से रखे जाते हैं जो स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि वो ‘अवांछित’ हैं. इन नामों और इनके जो भावार्थ हैं, उस पर आप भी गौर कीजिए: धापू (तंग आ चुके हैं), रामघानी (हे भगवान! हमें बहुत बेटियां दे दीं) , हैचुकी (बस बहुत हो चुकीं), अंतिमा (उम्मीद है कि ये अंतिम है) आदि-आदि. केवल पारंपरिक नाम ही, कुछ आधुनिक नाम मसलन ‘मिस्ड कॉल’, ‘नाराजी’ और ‘फालतू’ भी आपको सुनाई देंगे, जिनका मतलब अप्रिय ही है. सवाई माधौपुर की हेचुकी शर्मा कहती है कि वो जब बड़ी हो जाएगी तो अपना नाम बदल लेगी. उसका कहना है कि मुझे अपने नाम से शर्मिंदगी महसूस होती है. यह मुझे हरपल याद दिलाता है कि मैं अपने परिवार पर बोझ हूं और मेरा जब जन्म हुआ, तब मेरे परिवार वाले खुश नहीं थे. वह अपने परिवार की चौथी संतान हैं. उसकी तीसरी बहन का नाम धापू (तंग आ चुके हैं) है.
अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, कुछ इसी तरह की कहानी टोंक जिले के देवरी गांव की मंचिता मीणा की है. मंचिता ने अपनी मां से छोटी बहन का नाम ‘रामघनी’ (हे भगवान! हमें बहुत बेटियां दे दीं) न रखने की बहुत मिन्नतें की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मंचिता का कहना है, ‘मेरे दादा-दादी ने यह नाम दिया. अगर घर में तीसरी बेटी जन्म लेती है तो इसी तरह का नाम रखते हैं. मैंने अपनी मां से कहा था कि कम से कम नाम तो अच्छा रख दीजिए लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी. अब सभी कागजात में रामघनी नाम लिखा जा चुका है.’
देवरी गांव में ही रहने वाले भारत मीणा के तीन बेटियां हैं. चौथी संतान बेटा है, जो कि सबसे छोटा है. जब दूसरी और तीसरी संतान के रूप में बेटियां पैदा हुईं तो परिवार ने उनका नाम ‘अंतिमा’ और ‘मिस्ड कॉल’ रख दिया. वह बताते हैं, ‘अंतिमा नाम इसलिए रखा क्योंकि वह हमारी तीसरी बेटी थी. मिस्ड कॉल नाम इसलिए रखा क्योंकि हमें बेटा चाहिए था लेकिन बेटी पैदा हुई. इस तरह से हमने बेटे को मिस किया तो नाम मिस्ड कॉल रख दिया.’ हालांकि भरत मीणा चौथी संतान के रूप में बेटे को पाकर खुश हैं.
ज्यादातर परिवार चाहते हैं कि उनके दो बेटों हों ताकि अगर किसी एक को दुर्भाग्यवश कुछ हो जाए तो दूसरा उसकी जगह ले सके. लसाड़िया गांव की रहने वाली संपत मीणा के घर में सबसे पहले बेटे का जन्म हुआ. फिर दूसरे बेटे की चाह में चार बेटियां पैदा हो गईं. परिवार ने उनके नाम हैरान कर देने वाले रख दिए. तीसरी बेटी का नाम ‘नाराजी’ तो चौथी का नाम ‘गारंटी’ रख दिया. इस तरह के नाम रखने की यह परंपरा इतनी चलन में है कि बेटियों को भी इनमें कुछ गलत नहीं लगता. गारंटी का कहना कि स्कूल में कई लड़कियों के नाम इसी तरह हैं, इसलिए हमें कुछ भी आसामान्य नहीं लगता.
बेटे की चाह में महिलाएं कितनी संतानें?
यह पूछे जाने पर कि बेटे की चाह में महिलाएं कितनी संतानों को जन्म देती हैं? इस पर गांव की एक अन्य महिला काजोड़ी मीणा का कहना है कि चार-पांच बेटियों के बाद तो लोग यहां बेटे का मोह छोड़ देते हैं लेकिन पास के ही गांव बेगमपुरा में बेटे की आस में एक महिला ने 10 बेटियों को जन्म दिया. अंत में उन्होंने अपने भतीजे को गोद ले लिया. काजोड़ी मीणा ने भी अपनी तीसरी बेटी का नाम नाराजी रखा है.
पश्चिमी राजस्थान में ‘माफी’ नाम बहुत कॉमन
पश्चिमी राजस्थान में ‘माफी’ नाम बहुत कॉमन है. बाड़मेर के एक स्कूल में पढ़ाने वाले सरकारी शिक्षक श्याम चौधरी का कहना है कि कई लड़कियों के नाम ‘माफी’ रखे जाते हैं जिसका मतलब है कि परिवार भगवान से दूसरी बेटी को जन्म देने की माफी मांग रहा है.
आदिवासी एकेडमी गुजरात के डायरेक्टर मदन मीणा इस विषय पर शोध कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘यह सब कुछ यहां सामान्य है लेकिन जैसे-जैसे लड़कियां शिक्षित हो रही हैं, वह अपने नाम पर शर्मिंदा होने के बजाय उस पर गर्व महसूस कर रही हैं.’ हालांकि शहर में जाकर लड़कियां अपना नाम बदल लेती हैं.
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